vinod upadhyay

vinod upadhyay

गुरुवार, 24 मई 2018

मां शारदा के दरबार में

कहते हैं मां हमेशा ऊंचे स्थानों पर विराजमान होती हैं। उत्तर में जैसे लोग मां दुर्गा के दर्शन के लिए पहाड़ों को पार करते हुए वैष्णो देवी तक पहुंचते हैं। ठीक उसी तरह मध्य प्रदेश के सतना जिले में भी 1063 सीढ़ियां लांघ कर माता के दर्शन करने जाते हैं। सतना जिले की मैहर तहसील के पास त्रिकूट पर्वत पर स्थित माता के इस मंदिर को मैहर देवी का मंदिर कहा जाता है। मैहर का मतलब है मां का हार। मैहर नगरी से 5 किलोमीटर दूर त्रिकूट पर्वत पर माता शारदा देवी का वास है। पर्वत की चोटी के मध्य में ही शारदा माता का मंदिर है। पूरे भारत में सतना का मैहर मंदिर माता शारदा का अकेला मंदिर है। इसी पर्वत की चोटी पर माता के साथ ही श्री काल भैरवी, भगवान, हनुमान जी, देवी काली, दुर्गा, श्री गौरी शंकर, शेष नाग, फूलमति माता, ब्रह्म देव और जलापा देवी की भी पूजा की जाती है। माता शारदा के दर्शन के लिए मैं भी अपनी पत्नी दुर्गावती और भतीजों राज उपाध्याय और प्रांजल उपाध्याय के साथ गया। मां शारदा का आकर्षण ऐसा है कि हम पूरी तन्मयता से आगे बढ़ते रहे। करीब 1000 सीढिय़ों की चढ़ाई के बाद हम लोग सड़क मार्ग से माता के दर पर पहुंचे। इस दौरान अन्य श्रद्धालुओं से माता के बारे में बहुत कुछ जानने को भी मिला। आल्हा और उदल करते है सबसे पहले माँ के दर्शन क्षेत्रीय लोगों के अनुसार अल्हा और उदल जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध किया था, वे भी शारदा माता के बड़े भक्त हुआ करते थे। इन दोनों ने ही सबसे पहले जंगलों के बीच शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी। इसके बाद आल्हा ने इस मंदिर में 12 सालों तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था। माता ने उन्हें अमरत्व का आशीर्वाद दिया था। आल्हा माता को शारदा माई कह कर पुकारा करता था। तभी से ये मंदिर भी माता शारदा माई के नाम से प्रसिद्ध हो गया। आज भी यही मान्यता है कि माता शारदा के दर्शन हर दिन सबसे पहले आल्हा और उदल ही करते हैं। मंदिर के पीछे पहाड़ों के नीचे एक तालाब है, जिसे आल्हा तालाब कहा जाता है। यही नहीं, तालाब से 2 किलोमीटर और आगे जाने पर एक अखाड़ा मिलता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां आल्हा और उदल कुश्ती लड़ा करते थे। क्या है मंदिर से जुड़ी कहानी- माना जाता है कि दक्ष प्रजापति की पुत्री सती शिव से विवाह करना चाहती थी। उनकी यह इच्छा राजा दक्ष को मंजूर नहीं थी। वे शिव को भूतों और अघोरियों का साथी मानते थे। फिर भी सती ने अपनी जि़द पर भगवान शिव से विवाह कर लिया। एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता भगवान शंकर को नहीं बुलाया। शंकर जी की पत्नी और दक्ष की पुत्री सती इससे बहुत आहत हुईं। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा। इस पर दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर को अपशब्द कहे। इस अपमान से दुखी होकर सती ने यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी। भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला, तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। उन्होंने यज्ञ कुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कर कंधे पर उठा लिया और गुस्से में तांडव करने लगे। ब्रह्मांड की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने ही सती के शरीर को 52 भागों में विभाजित कर दिया। जहां भी सती के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। अगले जन्म में सती ने हिमवान राजा के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिवजी को फिर से पति रूप में प्राप्त किया। माना जाता है कि यहां मां का हार गिरा था। हालांकि, सतना का मैहर मंदिर शक्ति पीठ नहीं है। फिर भी लोगों की आस्था इतनी अडिग है कि यहां सालों से माता के दर्शन के लिए भक्तों का रेला लगा रहता है। माता शारदा की मूर्ति की स्थापना विक्रम संवत 559 में की गई थी। मूर्ति पर देवनागरी लिपि में शिलालेख भी अंकित है। इसमें बताया गया है कि सरस्वती के पुत्र दामोदर ही कलियुग के व्यास मुनि कहे जाएंगे। दुनिया के जाने-माने इतिहासकार ए कनिंग्घम ने इस मंदिर पर विस्तार से शोध किया है। इस मंदिर में प्राचीन काल से ही बलि देने की प्रथा चली आ रही थी, लेकिन 1922 में सतना के राजा ब्रजनाथ जूदेव ने पशु बलि को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया। त्रिकूट पर्वत पर मैहर देवी का मंदिर भू-तल से छह सौ फीट की ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर तक जाने वाले मार्ग में तीन सौ फीट तक की यात्रा गाड़ी से भी की जा सकती है। मैहर देवी मां शारदा तक पहुंचने की यात्रा को चार खंडों में विभक्त किया जा सकता है। प्रथम खंड की यात्रा में चार सौ अस्सी सीढ़ियों को पार करना होता है। मंदिर के सबसे निकट त्रिकूट पर्वत से सटा मंगल निकेतन बिड़ला धर्मशाला है। इसके पास से ही येलजी नदी बहती है। द्वितीय खंड 228 सीढ़ियों का है। इस यात्रा खंड में पानी व अन्य पेय पदार्थों का प्रबंध है। यहां पर आदिश्वरी माई का प्राचीन मंदिर है। यात्रा के तृतीय खंड में एक सौ सैंतालीस सीढ़ियां हैं। चौथे और अंतिम खंड में 196 सीढ़ियां पार करनी होती हैं। तब मां शारदा का मंदिर आता है।