vinod upadhyay

vinod upadhyay

बुधवार, 25 मई 2011

भोपाल रेलवे स्टेशन को उड़ाने की धमकी

भोपाल। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के रेलवे स्टेशन और एयरपोर्ट आतंकियों के निशोन पर हैं। पुलिस मुख्यालय के सूत्रों के अनुसार लश्कर-ए-तैयबा ने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर जो धमकी भरा खत भेजा है, उसमें भोपाल जंक्शन, हबीबगंज रेलवे स्टेशन और राजा भोज एयरपोर्ट को भी उड़ाने की धमकी दी गई है। हालांकि, भोपाल पुलिस ने आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि नहीं की है। लेकिन सूत्रों ने बताया कि आतंकी हमलों की आशंका के मद्देनजर रेलवे स्टेशन और एयरपोर्ट की सुरक्षा बढ़ा दी गई है।

उल्लेखनीय है कि लश्कर-ए-तैयबा ने नई दिल्ली और जालंधर रेलवे स्टेशन पर एक धमकी भरा खत भेजा है, जिसमें देश के प्रमुख रेलवे स्टेशनों को उड़ाने की धमकी दी गई है। लश्कर ने सोमवार को पंजाब के फगवाड़ा स्थित एक मंदिर के पुजारी को भी धमकी भरी चिट्ठी भेजी थी, जिसमें वैष्णों देवी मंदिर सहित कई प्रमुख मंदिरों पर हमले की चेतावनी दी गई थी। लश्कर ने खत में अमरनाथ यात्रा पर न जाने की धमकी दी थी और कहा था कि यदि लोग अमरनाथ यात्रा पर गए, तो उन्हें गंभीर परिणाम भुगतना होगा।
फर्जीवाड़ा किया तो पहले जेल, फिर सुनवाई!
भोपाल. जो लोग जिंदगीभर की कमाई से अपने लिए मकान या प्लॉट खरीदते हैं, उनके सपनों को बिल्डर व कॉलोनाइजर की जालसाजी से बचाने के लिए भोपाल व नर्मदापुरम संभाग के कमिश्नर मनोज श्रीवास्तव ने कानून बनाने का मसौदा सरकार को भेजा है। यदि सरकार ने इस पर गौर कर कानून बना दिया, तो जमीन का फर्जीवाड़ा करने वालों को सीधे जेल जाना होगा। जालसाज पहले जेल जाएंगे, उनके जेल में रहते हुए ही मामले की सुनवाई होगी। आरोप साबित हुआ, तो सालभर की सजा काटनी होगी और जुर्माना भी देना होगा।
जमीन हड़पने वाले भूमाफिया राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत भी अपराधी होंगे। सूत्रों के अनुसार मध्य प्रदेश प्रिवेंशन ऑफ डेंजरस एक्टिविटीज ऑफ लैंड ग्रैबर्स एक्ट के तहत ऐसी व्यवस्था बनाने पर विचार चल रहा है, जिसमें जालसाज बिल्डरों की करतूतों को पहले से जानकर उनके खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित हो सके।
मिनाल रेसीडेंसी में सरकारी जमीन पर बने मकानों के अवैध होने के बाद सरकार का ध्यान फिर इस दिशा में गया है। अफसरों का कहना है कि अब फिर किसी के साथ मिनाल जैसा फर्जीवाड़ा न हो इसके लिए ऐसा कानून जरूरी है।
आंध्रप्रदेश की तर्ज पर हो कानून
भोपाल कमिश्नर द्वारा भेजे गए मसौदे के अनुसार बिल्डरों के गैरकानूनी कामों पर शिकंजा कसने के लिए प्रदेश में आंध्र प्रदेश की तर्ज पर यह कानून बनाया जाना चाहिए। वहां ऐसे लोगों को तीन महीने के लिए जेल का प्रावधान है। आरोप साबित होने पर जेल व जुर्माना हो सकता है।
रासुका भी लगेगा: शासन को भेजे प्रस्ताव में उल्लेख है कि राज्य सुरक्षा कानून में संशोधन करके इसमें जमीन हड़पने वालों पर भी सजा निर्धारित की जानी चाहिए।
क्या है दिक्कत
यूरोपीय देशों में बिल्डर और कॉलोनाइजर के लिए निर्धारित योग्यता जरूरी है। हमारे यहां ऐसा न होने से यह तय करना मुश्किल है कि कौन लोग बिल्डर और कॉलोनाइजर हैं? अधिकारियों का कहना है कि कानून बनता है तो बिल्डरों व कॉलोनाइजरों को चिह्न्ति करने का काम भी जल्दी पूरा कर लिया जाएगा।
जमीन हड़पने वालों पर कार्रवाई के उद्देश्य से शासन को प्रस्ताव भेजा गया है। अभी तक शासन धोखाधड़ी होने के बाद कार्रवाई करता है।""
मनोज श्रीवास्तव,कमिश्नर,भोपाल एवं नर्मदापुरम संभाग

बोट क्लब होगा नो व्हीकल जोन,याट क्लब के पास पार्किग

भोपाल. न्यू मार्केट और दस नंबर मार्केट के बाद अब बोट क्लब भी जल्द ही नो-व्हीकल जोन बनेगा। शुरुआत में शाम 4 से रात 10 बजे तक यहां वाहनों की आवाजाही पर रोक रहेगी। इसके बाद पूरे दिन यहां वाहनों पर रोक लगेगी। इसके पहले यहां याट क्लब पंप हाउस के पास नया पार्किग स्थल बनाया जाएगा।
वन विहार रोड स्थित बोट क्लब पर छुट्टियों के दिन ट्रैफिक का दबाव इतना होता है कि सैलानियों का घूमना दूभर हो जाता है। पिछले दिनों प्रशासन ने याट क्लब पंप हाउस के पास जो अतिक्रमण हटाया है, वहां नगर निगम पार्किग स्थल बना रहा है। इसके विकसित होते ही वाहनों को आगे ले जाने पर रोक लग जाएगी।
फिर अटक गया चौक बाजार का मामला
चौक बाजार को नो-व्हीकल जोन बनाए जाने का काम फिर लटक गया है। अब नगर निगम यहां पार्किग स्थल विकसित कर रहा है, ताकि चौक बाजार पूरी तरह नो-व्हीकल जोन बन जाए। इस इलाके के आसपास कुल 11 स्थानों पर पेड पार्किग होगी।
बोट क्लब को जल्द ही नो-व्हीकल जोन बनाया जाएगा। इससे सैलानियों को सहूलियत होगी।""
निकुंज श्रीवास्तव,कलेक्टर
भोपाल. । रेल प्रबंधन पर वेंडर (खाने-पीने की चीजों को बेचने वाले) भारी पड़ रहे हैं। चौंकिए नहीं, यह सच है और यदि फिर भी यकीन नहीं तो ग्वालियर स्टेशन स्थित आरआरआई (रूट रिले इंटर लॉकिंग) केबिन के पास करीब हर दिन दोहराए जा रहे इस वाकए को देखा जा सकता है। जहां रेल प्रबंधन की मर्जी के खिलाफ वेंडरों द्वारा ग्वालियर से गुजरने वाली प्रत्येक नॉन स्टॉपेज ट्रेनों को चेन पुलिंग कर रोका जा रहा है।
खास बात यह है कि ग्वालियर में नॉन स्टॉपेज ट्रेनों को चेन पुलिंग कर रोके जाने की जानकारी स्थानीय रेल प्रबंधन व आरपीएफ को भी है। बावजूद इसके सभी चुप्पी साधे हैं। रेलवे से जुड़े सूत्रों की मानें तो नॉन स्टॉपेज ट्रेनों को चेन पुलिंग कर रोकने की इन घटनाओं के पीछे वेंडरों और ट्रेन ड्राइवरों की मिलीभगत भी है, क्योंकि जिस तरीके से चेन पुलिंग के बाद ट्रेन अगले डेढ़-दो मिनट में फिर से रफ्तार पकड़ तेज होती है, वह आमतौर पर थोड़ा मुश्किल है। बता दें कि चेन पुलिंग के बाद ट्रेन को रफ्तार पकडऩे में कम से कम चार से सात मिनट का समय लगता है। इधर आरआरआई केबिन के आंकड़ों पर नजर डालें तो आंध्रप्रदेश संपर्क क्रांति एक्सप्रेस, यूपी संपर्क क्रांति व यशवंतपुर संपर्क क्रांति एक्सप्रेस जैसी कई ऐसी ट्रेनें हैं, जिन्हें ग्वालियर में (अप व डाउन दोनों ओर से) चेन पुलिंग कर रोका जाता है।
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कैमिकल से पकाए जा रहे फल

खाने से हो सकती है बीमारी
फल खाने से पहले सावधान!
विनय उपाध्याय
भोपाल. । सावधान अगर आप चिलचिलाती धूप में गर्मी की तपन से राहत पाने के लिए मौसमी फलों का सहारा लेने का मन बना रहे हैं तो पहले जांच कर लीजिए कहीं इन फलों को पकाने में कैल्शियम कार्बाइड का इस्तेमाल तो नहीं किया गया है और अगर किया गया है तो इस तरह के फलों को खाने व खरीदने से इंनकार कर दीजिए, क्योंकि डॉक्टरों का कहना है कि इस तरह के केमिकल युक्त फल या अन्य खाद्य सामग्री का सेवन करने से नपुंसकता, उल्टी, डायरिया जैसी गंभीर बीमारियां होने की संभावना अधिक पैदा हो जाती है।
भीषण गर्मी में जरा सी राहत अथवा जीभ के स्वाद के लिए चिंताजनक बीमारियों को आमंत्रित करना ठीक नहीं है। भीषण गर्मी की मार को देखते हुए तथा खाद्य विभाग की एतलाली का भरपूर फायदा उठाने के उद्देश्य से थोक व खेरिज फल विक्रेताओं ने कम लागत में अधिक मुनाफा कमाने के लिए केमिकल युक्त फल फल्हारी को बाजारों में बिक्री हेतु सप्लाई कर दिया जाता है। सूत्रों की मानें तो खाद्य अधिनियम में प्रतिबंध के बावजूद यहां खुलेआम केले, पपीता, सेवफल, संतरा, आम आदि को पकाने के लिए केमिकलों का जमकर उपयोग कर फलों को पकाया जा रहा है और इन केमिकल युक्त फलों को बाजार में आसानी से खपाया जा रहा है। इससे लोगों के स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ रहा है। वहीं यहां के नागरिकगण इस कलाकारी से अनभिज्ञ हैं। खतरों के इस खेल से अंजान लोग जमकर मौसमी फलों का जायका ले रहे हैं। यही कारण है कि कार्बाइड से पके फल बाजार में धड़ल्ले से बेचे जा रहे हैं। फलों को पकाने के लिए कैल्शियम कार्बाइड के टुकड़े फलों के बीच रखे जाते हैं, जिससे निकलने वाली एसिटिलीन गैस फलों को शीघ्र पका देती है, परंतु इससे इनके स्वाद और पौणरिकता कमी आ जाती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि कैल्शियम कार्बाइड में पाए गए फलों के सेवन से पाचन क्रिया और तंत्रिकातंत्र पर बिपरीत प्रभाव पड़ता है। फलों को जल्दी पकाने और उन पर रंगत लाने में भी यह उपयोग किया जाता है। बहरहाल जनता को अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए स्वयं को ऐसे फलों से दूर रहना चाहिए।

स्पर्श में नहीं लग रहा मन

सर्वे के काम में नगर निगम के अधिकारियों की लापरवाही

विनय उपाध्याय
भोपाल. । नि:शक्तों के लिए शुरू की गई योजना स्पर्श अपने पहले ही चरण में दम तोड़ती नजर आ रही है। योजना का दूसरा चरण जून में पूरा होना है लेकिन नगर निगम के अधिकारी और कर्मचारियों की लापरवाही से सर्वे का काम ही अभी तक पूरा नहीं हो सका है। जबकि गिनती पूरी कर 30 मई को आंकड़े सौंपने हैं।
मध्यप्रदेश शासन द्वारा नि:शक्तों के लिए स्पर्श योजना शुरू की जा रही है। योजना के प्रथम चरण के तहत शहर में कितने नि:शक्त हैं इसके लिए घर-घर सर्वे किया जाना था। जिला प्रशासन ने सर्वे के इस काम की जिम्मेदारी नगर निगम के शासकीय योजना विभाग को सौंपी थी लेकिन एक माह बीतने के बाद भी नि:शक्तों की गिनती का काम पूरा नहीं हो पाया है।
हालात ये हैं कि योजना के दूसरे चरण की योजना तय करने के लिए 30 मई को बैठक होने जा रही है लेकिन आंकड़े अभी तक उपलब्ध नहीं हैं। सूत्रों का कहना है कि दरअसल निगम के शासकीय योजना विभाग ने यह जिम्मेदारी सभी संभागीय कार्यालयों को सौंपी थी जिसके अनुसार उन्हें अपने-अपने संभाग के नि:शक्तों का घर-घर जाकर सर्वे करना था। घर-घर सर्वे का काम पूरा हुआ या नहीं इस बात का तो भगवान ही मालिक है, लेकिन बैठक की तिथि जैसे-जैसे नजदीक आती जा रही है शासकीय योजना विभाग इस प्रयास में लगा है कि सभी अधिकारी सर्वे की जानकारी सौंप दें। उधर संभागीय अधिकारियों के कान में जूं तक नहीं रेंग रही है।
़हकीकत यह है कि बार-बार फोन करने के बाद भी सोमवार को शाम तक एक भी संभागीय अधिकारी ने सर्वे की जानकारी नहीं सौंपी थी। जानकारी देने में हर कोई आना-कानी कर रहा है। सूत्रों का कहना है कि दरअसल भीषण गर्मी के कारण नगर निगम के अधिकारी- कर्मचारी सर्वे का काम ही पूरा नहीं कर पाए इसलिए जानकारी देने में टाला-मटोली कर रहे हैं।
मौखिक आंकड़े दिए
अभी तक की जानकारी के अनुसार संभागीय अधिकारियों ने योजना प्रभारी को टेलीफोन के माध्यम से आंकड़े तो दिए हैं, लेकिन उन आंकड़ों को सही ठहराने वाले सर्वे फॉर्म किसी ने नहीं पहुंचाया है। योजना प्रभारी का कहना है कि मौखिक जानकारी को सही नहीं माना जा सकता। जब सभी को सर्वे फॉर्म दिया गया था तो वह उपलब्ध कराना चाहिए ताकि पुष्टि हो सके।
इस योजना के तहत शहर के अस्थि, दृष्टि या श्रवण बाधित नि:शक्तों को पहले चरण में चिन्हित किया जाना है। दूसरे चरण में इनके लिए मेलों का आयोजन किया जाएगा जिसमें उन्हें कृत्रिम अंगों के साथ ही अन्य उपकरण भी वितरित किए जाएंगे। इसके अलावा नि:शक्तों को शासन की ओर से हर माह सहायता राशि दी जाएगी।

एक दशक में 58.61 फीसदी महँगी बिजली

विनय उपाध्याय
भोपाल. दो जून की रोटी और सादा जीवन जीने के लिए तिल-तिल पिस रहा आम आदमी अब और दुर्दशा का सामना करेगा। पेट्रोल के दामों के बाद अब बिजली के दाम भी उसकी जेब को छलनी कर देंगे। खाने-पीने की वस्तुओं के दाम पहले से ही काफी चढ़े हैं और इस पर ये च्करंटज् गरीब का आटा और गीला कर देगा।
प्रदेश में बिजली बीते एक दशक में औसत 52.47 फीसदी तक महंगी हो गई है। उस पर भी इस बार 6.14 प्रतिशत की औसत बढ़ोत्तरी और कर दी गई। इस तरह 2001 से 2011 तक कुल 58.61 प्रतिशत बिजली की औसत कीमत बढ़ गई हैं। ऐसा कोई साल नहीं है, जबकि बिजली की कीमतों में कमी की गई हो। केवल राहत इतनी रही कि इस साल की तरह एक-दो बार बिजली की कीमतें पहले के मुकाबले कम बढ़ाई गई। लेकिन ऐसा जब भी हुआ, उसके दूसरे साल इस राहत की पूरी कसर निकाल ली गई।
मप्र विद्युत नियामक आयोग ने पहली बार 2001-02 में बिजली दरें घोषित की थी। प्रदेश के इतिहास में सबसे अधिक दर बढ़ोत्तरी 2001-02 में 14.73 प्रतिशत हुई थी। इसके बाद 2004-05 में 14.47 प्रतिशत औसत दर बढ़ाई गई। इसके बाद से 2006-07 में करीब पांच प्रतिशत दर बढ़ाई गई थी। वहीं पिछले साल 2009-10 में 3.61 प्रतिशत दर बढ़ोत्तरी की गई। इसके अलावा 2007-08 में मात्र एक प्रतिशत और 2008-09 में तीन प्रतिशत दर बढ़ोत्तरी की गई थी। दरअसल, कोयले के दाम बढऩे के अलावा महाराष्ट्र, दिल्ली और उत्तरप्रदेश की बिजली से मप्र की तुलना करना भी उपभोक्ताओं को भारी पड़ गया है। इन राज्यों की औसत लागत के अध्ययन के बाद हीं मध्यप्रदेश में बिजली लागत तय की गई। इन राज्यों में कही भी सवा चार रुपए से कम औसत लागत नहीं है। मप्र में बिजली की लागत पिछले साल की 4 रुपए 22 पैसे प्रति यूनिट से बढ़ाकर 4 रुपए 29 पैसे आंकी गई है। उस पर ट्रांसमिशन सहित अन्य खर्चों को पाटने के लिए उपभोक्ताओं की जेब खाली करना तय कर लिया गया।
27 में से महज 6.14
राहत की बात यह कि बिजली कंपनियों ने 27 प्रतिशत तक दर बढ़ोत्तरी मांगी थी, लेकिन आयोग ने महज 6.14 प्रतिशत मानी। महंगाई की औसत दर 9 प्रतिशत है, उस लिहाज से इसे राहत भी कहा जा सकता है।
सबसिडी का बोझ
सरकार करीब तेरह सौ करोड़ रुपए से ज्यादा सालाना किसानों और एकबत्ती कनेक्शन पर सबसिडी देती है। यह राशि 1500 करोड़ से ज्यादा है। दर बढ़ोत्तरी के बाद इसमें भी करोड़ों की बढ़ोत्तरी होना है। इससे सरकार पर भी बोझ बढ़ जाएगा।नियामक आयोग के अध्यक्ष राकेश साहनी का कहना है कि बिजली की कीमतें तो बढऩा ही है, क्योंकि बिजली की लागत बढ़ जाती है। जब तक समस्त सेवाओं की कीमतों में कमी नहीं होती, तब तक बिजली की कीमत में राहत मिलना मुश्किल ही है।
वर्ष प्रतिशत
2001-02 14.73
2004-05 14.47
2006-07 05.00
2007-08 01.00
2008-09 03.00
2009-10 03.61
2010-11 10.66
2011-12 06.14
नोट- वर्ष-2006 के पहले आयोग ने नियमित रूप से हर साल दर घोषित नहीं की थी।
लाख बिजली उपभोक्ता प्रदेश में
80
लाख घरेलू उपभोक्ता
65
करोड़ सालाना की बिजली चोरी
1500

छ: माह बाद भी नहीं मिली अंकसूची

विनय उपाध्याय
भोपाल. । इन दिनों राज्य ओपन स्कूल परीक्षा की व्यवस्थाएँ बेहाल हैं। परीक्षा हुए 10 माह हो गए लेकिन परीक्षार्थी अंकसूची के लिए भटक रहे हैं। अंकसूची के अभाव में वे अगली कक्षा में प्रवेश नहीं ले पा रहे हैं। जिन्हें अंकसूचियाँ मिली हैं इसमें भी कई प्रकार की गलतियाँ हैं इसे सुधारने के लिए भोपाल के चक्कर काटना पड़ रहे हैं।
अगस्त 2010 में ओपन स्कूल परीक्षा आयोजित हुई थी। रिजल्ट भी घोषित हुए तो आधे-अधूरे। हजारों परीक्षार्थियों को अब तक अंकसूची ही नहीं मिली हैं। कइयों की अंकसूची में विषयों के सामने उत्तीर्ण अंकित है और नीचे अंतिम निर्णय अनुत्तीर्ण का दिया गया है। त्रुटि सुधार के लिए दिए आवेदनों पर लंबे समय से कोई विचार नहीं हो रहा है। ऐसे में अगली कक्षा में प्रवेश ले चुके विद्यार्थियों को अंकसूची के अभाव में प्रवेश निरस्त करना पड़ रहा है। इनमें सबसे ज्यादा परेशान बारहवीं के परीक्षार्थी हो रहे हैं। कइयों ने अंकसूची आने के पहले ही व्यावसायिक परीक्षाओं के फार्म भर दिए थे या कॉलेज में प्रवेश के पैसे भर दिए थे। इससे हजारों बच्चों का पूरा एक साल खराब हो रहा है।
अंकसूची मिली नहीं, पूरक की अंतिम तिथि 30
अब तक हजारों परीक्षार्थियों के पास अंकसूची नहीं पहुँची है और परीक्षा संचालक द्वारा पूरक परीक्षा की अंतिम तिथि 30 मई घोषित कर दी है। बिना अंकसूची देखे किस आधार पर पूरक के आवेदन किए जाएँगे? उधर 2010 दिसंबर में होने वाली परीक्षा भी अब तक आयोजित नहीं होने से भी परीक्षार्थी परेशान हैं। वे छ: माह से परीक्षा का इंतजार कर रहे हैं।
क्षेत्रीय कार्यालय खोलने की घोषणा हवा
शासन ने माध्यमिक शिक्षा मंडल की तरह सभी संभागों में राज्य ओपन स्कूल के क्षेत्रीय कार्यालय खोलने, अधिकारी-कर्मचारी नियुक्त करने की घोषणा किए सालभर हो गया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई है। परीक्षा संबंधी कोई भी परेशानी होने पर विद्यार्थियों को सीधे भोपाल के ही चक्कर लगाना पड़ते हैं। शासन के एक माह में ही क्षेत्रीय कार्यालय खोलने के आदेश की हवा निकल गई।

20 साल, 70 सुनवाई और..खुद के ही खिलाफ अदालत में सरकार

विनय उपाध्याय
भोपाल. नौकरशाही की दिशाहीन दखलंदाजी से कैसे तबाह हो रही है शिक्षा, इसका ताजा उदाहरण है माध्यमिक शिक्षा मंडल का यह मामला। मध्यप्रदेश सरकार ने अपने ही एक फैसले के खिलाफ अदालत में मुकदमा लड़ा।
हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक। 20 साल में 70 सुनवाइयां। इस बीच शिक्षा मंडल में सात चेयरमैन आए और गए। अब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के 25 साल पुराने फैसले को ही सही ठहराया है।
इसी के खिलाफ खुद सरकार 1991 से यह केस लड़ रही थी। शिक्षा मंडल की एक्जीक्यूटिव कमेटी ने 1985 में निर्णय लिया था कि पत्राचार कोर्स के सीनियर लेक्चरर और असिस्टेंट प्रोफेसर को मिलाकर एक कैडर बनाया जाए।
इसका पदनाम असिस्टेंट प्रोफेसर होगा। एक ही वेतनमान होगा। फरवरी 1986 में सरकार ने मंडल के इस निर्णय को मंजूरी दे दी। इसी साल चौथा वेतनमान आया, जो जनवरी 1990 में लागू हुआ।
लेकिन चौथे वेतनमान का फायदा मंडल में सीनियर लेक्चरर और असिस्टेंट प्रोफेसर को उनके पुराने कैडर व वेतनमान के मुताबिक अलग-अलग घोषित किया गया। जबकि चार साल पहले ये दोनों ही पद एक ही कैडर में तब्दील हो चुके थे।
तब मंडल में 27 सीनियर लेक्चरर (जो असिस्टेंट प्रोफेसर हो चुके थे) पदस्थ थे। उन्होंने इस विचित्र फैसले की तरफ मंडल के अफसरों का ध्यान खींचा।
जब कुछ नहीं हुआ तो 18 सीनियर लेक्चरर जबलपुर हाईकोर्ट में गए। अदालत में इनकी दलील थी कि सरकार के ही फैसले से हम असिस्टेंट प्रोफेसर बने हैं। इसी के अनुरूप वेतनमान लागू होना चाहिए था।
जुलाई 2009 में मंडल के तत्कालीन अध्यक्ष एचसी जैन ने कोर्ट में कहा कि सीनियर लेक्चरर और असिस्टेंट प्रोफेसर के स्केल अलग होने चाहिए। अदालत ने पूछा कि आप यह आदेश कैसे दे सकते हैं? जब एक्जीक्यूटिव कमेटी दूसरा फैसला ले चुकी है तो याचिका दाखिल होने के बाद आप उलट निर्णय कैसे ले सकते हैं?
इन बीस सालों में असिस्टेंट प्रोफेसरों ने हर चेयरमैन से कहा भी कि इस केस में सरकार अपने ही फैसले के खिलाफ अदालत में है। यह हास्यास्पद है। मंडल को अपना पुराना फैसला याद क्यों नहीं आ रहा? लेकिन चेयरमैन का एक ही जवाब होता-'मामला चूंकि कोर्ट में जा चुका है, इसलिए वहीं तय होने दीजिए।Ó
इन बीस सालों में 18 में से 12 असिस्टेंट प्रोफेसर रिटायर हो गए और दो का देहावसान हो गया। इस वक्त सिर्फ चार ही मंडल में पदस्थ हैं। अदालत के आदेश से करीब एक करोड़ रुपए का एरियर इन्हें दिया जाना है।Ó
शिक्षा मंडल ने करीब पांच लाख रुपए वकीलों की फीस पर फूंके। मामले के वकील राकेश श्रोती कहते हैं कि शिक्षा की सर्वोच्च संस्थाओं का यह हाल पूरी व्यवस्था की कहानी बयान करता है। ऐसे तमाम मामले हैं, जिनमें टीचर सालों साल तक भटकते रहते हैं।
अब तक सात चेयरमैन.
1985 से अब तक शिक्षा मंडल में ये चेयरमैन रहे-एचसी जैन, धर्मेंद्र नाथ, ताजवर रहमान साहनी, शशि जैन, यूके सामल, एसके चतुर्वेदी और राकेश बंसल।
अदालत में चार बार अपीलें
1991- हाईकोर्ट में मंडल के निर्णय के खिलाफ सीनियर लेक्चरर की याचिका।
1995- जस्टिस एके माथुर का फैसला-सीनियर लेक्चरर चाहे गए वेतनमान के हकदार।
1996- शिक्षा मंडल ने जस्टिस माथुर के समक्ष उनके फैसले पर पुनरीक्षण याचिका। याचिका खारिज।
1997- अपने निर्णय पर अड़ा शिक्षा मंडल दो जजों की खंडपीठ में। यह याचिका भी खारिज।
1998- मंडल सुप्रीम कोर्ट की शरण में। जाने-माने वकील पीपी राव ने पैरवी की।
2000- चीफ जस्टिस एएस आनंद ने मामले को वापस हाईकोर्ट भेजा।
2005- हाईकोर्ट का आदेश-पांच फीसदी ब्याज के साथ चाहा गया वेतनमान दीजिए।
2006- शिक्षा मंडल फिर सुप्रीम कोर्ट में। एडिशनल सालिसिटर जनरल मोहन पाराशरन ने पैरवी की।
2011- आठ अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट का फैसला- एरियर पर ब्याज छोड़कर 1991 से चाहा गया वेतनमान दिया जाए।
विनय उपाध्याय
भोपाल. प्रदेश के 28 शहर-कस्बों में केंद्र सरकार की मदद से चल रहे वाटर सप्लाई के प्रोजेक्ट रुक गए हैं। आलम ये है पांच साल गुजर चुके हैं और 40 फीसदी काम भी पूरा नहीं हो पाया है। इसकी वजह है पैसे की कमी।
ठेकेदारों ने भी भुगतान नहीं होने से काम रोक दिए हैं। जिन जगहों के प्रोजेक्ट रुके हैं उनमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विधानसभा क्षेत्र बुदनी की तीन नगर पंचायतें भी शामिल हैं। जबकि इन वाटर सप्लाई प्रोजेक्टों पर इसलिए ध्यान दिया जाना चाहिए था, क्योंकि इन शहरों में तीन-चार दिन में एक बार ही पानी की सप्लाई हो रही है। इस संबंध में नगरीय प्रशासन विभाग के सूत्रों का कहना है कि समय सीमा में काम नहीं हो पाने के कारण ही केंद्र सरकार से स्वीकृत 560 करोड़ रुपए के प्रोजेक्टों की लागत बढ़कर करीब 670 करोड़ रुपए हो गई है। सरकार ने इस योजना के लिए बजट में राशि का प्रावधान नहीं किया है।
केंद्र सरकार ने 29 मार्च 2006 को प्रदेश के 31 निकायों के लिए अर्बन इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट स्कीम फॉर स्मॉल एंड मीडियम टाउन (यूआईडीएस एसएमटी) योजना स्वीकृत की थी। इसके तहत इंटेकवेल, वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट और निकाय क्षेत्र में पाइप लाइन बिछाई जानी है। योजना के लिए 80 प्रतिशत राशि केंद्र से मिलनी है, जबकि 10-10 फीसदी राशि राज्य शासन व स्थानीय निकाय को वहन करना है।
योजना के क्रियान्वयन के लिए बनी स्टेट लेवल कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार ने मात्र 13 निकायों के लिए दूसरी किस्त जारी की है, जबकि 10 निकायों का प्रस्ताव छह माह से केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय में अटका हुआ है।
पानी की मांग 14,850 एमएलडी (मिलियन लीटर डेली)
प्रति व्यक्तिमांग - 135 लीटर
सप्लाई - 2,970 एमएलडी (मिलियन
लीटर डेली)
प्रति व्यक्ति
सप्लाई - 27 लीटर
कुल मांग का 20 प्रतिशत (प्रदेश के शहरी क्षेत्र की आबादी 1 करोड़ 10 लाख के हिसाब से)
दस दिन बाद पानी
शाजापुर की बडग़ांव नपं में 10 दिन में एक बार पानी मिलता है। शुजालपुर और सोयतकला नगर पंचायत में सात दिन में एक बार ही सप्लाई होती है।
22 निकाय ऐसे हैं, जो तीन दिन में पानी सप्लाई करते थे।
41 निकाय दो दिन छोड़कर पानी देते थे। अब इनकी संख्या 41 हो गई है।
112 निकाय एक दिन छोड़कर पानी की आपूर्ति करते थे।
185 निकाय रोजाना पानी की सप्लाई करते थे।
(नगरीय प्रशासन व विकास विभाग से प्राप्त आंकड़े -यह स्थिति 10 अप्रैल 2011 की है)
इसलिए रोकी राशि
केंद्र ने राशि इसलिए रोकी है, क्योंकि निकायों ने रिफॉर्म की शर्तो पर अमल नहीं किया है। केंद्र सरकार की शर्त थी कि निकायों को अपनी आय बढ़ाने के साथ आर्थिक ढांचा मजबूत़ करना होगा, लेकिन इस दिशा में काम नहीं हो पाया है।
मांगा है लोन
ठेकेदार द्वारा काम बंद करने की जानकारी मुख्यमंत्री को दे दी गई है। उनके सचिव को शासकीय पत्र भी भेजा गया है। निकाय की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए शासन से 1.22 करोड़ रु.का लोन मांगा है।
सुभाष पंजाबी, अध्यक्ष, नगर पंचायत, बुधनी

दो माह से रुका है बुदनी प्रोजेक्ट

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विधानसभा क्षेत्र बुदनी की 17 हजार आबादी को 3 एमएलडी (मिलियन लीटर डेली) नर्मदा के पानी की आपूर्ति करने के लिए इस योजना के तहत 1.94 करोड़ रुपए स्वीकृत हुए थे। दिसंबर 2009 में इंटेकवेल, वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण शुरू हुआ।
टेंडर में घरों तक पानी पहुंचाने के लिए पाइप लाइन बिछाया जाना भी शामिल था। लेकिन इंटेकवेल और ट्रीटमेंट प्लांट निर्माण का काम ही शुरू हो पाया, वह भी अधूरा है, जबकि यह प्रोजेक्ट दिसंबर 2010 में पूरा होना था। इस काम के लिए निकाय को अब तक 87.57 लाख रुपए मिले हैं।
ठेका कंपनी एड्रोइट एसोसिएट ने दो माह पहले काम रोक दिया था। वर्तमान में बुदनी में ट्यूबवेल के माध्यम से लोगों को(40 लीटर प्रतिव्यक्ति) पानी की सप्लाई होती है, लेकिन यह आबादी के हिसाब से पर्याप्त नहीं है। इस योजना के तहत रेहटी और नसरुल्लागंज में भी पानी की सप्लाई होनी है, लेकिन प्रोजेक्ट धीमी गति से चल रहे है।

मप्र में 60 फीसदी से ज्यादा बच्चे कुपोषित

विनय उपाध्याय
भोपाल. मध्य प्रदेश एक बार फिर गलत वजह से चर्चा में है। ताजा मामला राज्य में बच्चों के कुपोषण को लेकर है।मध्य प्रदेश में पूरक पोषण आहार पर करोड़ों रुपये खर्च किए जाने के बाद भी कुपोषण के मामले बढ़ते जा रहे हैं। प्रदेश में इस समय 60 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं।
बच्चों के अधिकारों की वकालत करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) ने मध्य प्रदेश के दस जिलों में किए गए सर्वे के आधार पर दावा किया है कि यहां कुपोषित बच्चों की संख्या 60 फीसदी से ज्यादा है।
प्रदेश में इस समय 34 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं।
महिला बाल विकास मंत्री रंजना बघेल ने कहा कि वर्ष 2009-10 में 69 लाख 69 हजार से अधिक बच्चों का परीक्षण किया गया, जिनमें से 46 लाख 34 हजार से ज्यादा बच्चे सामान्य पाए गए, वहीं 23 लाख 34 हजार बच्चे कुपोषित पाए गए। इन बच्चों का वजन सामान्य से कम था।
बघेल ने बताया कि इन कुपोषित बच्चों को चार श्रेणियों में बांटा गया है। कुपोषित कुल 23 लाख 24 हजार बच्चों में से एक लाख 37 हजार बच्चे ऐसे हैं जो गंभीर स्थिति यानी तीसरी व चौथी श्रेणी के हैं। उन्होंने बताया कि कुपोषण को रोकने के लिए पूरक पोषण आहार पर पिछले वित्त वर्ष में 51,166 लाख रुपए खर्च किए गए।
क्राई का कहना है कि पूरे राज्य में आदिवासी समुदाय के 74 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। चौंकाने वाला तथ्य तो यह है कि राजधानी भोपाल की पुनर्वास कॉलोनियों के 49 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार पाए गए हैं। संस्था के प्रदेश में इस सर्वे को पूरा करने वाले विकास संवाद के प्रशांत दुबे का कहना है कि सिर्फ रीवा जिले में अकेले 83 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार पाए गए हैं।
रीवा में 2006 से 2009 के बीच करीब 15 हजार बच्चों की कुपोषण से मौत हो चुकी है जबकि अन्य जिलों में भी कुपोषित बच्चों का आंकड़ा सरकारी आंकड़े से बहुत अधिक है। संस्था द्वारा राजधानी भोपाल की पुनर्वास कॉलोनियों में कराए गए शोध के आंकड़े और भी ज्यादा चौंकाने वाले मिले हैं। भोपाल के लगभग 11 रिसेटमेंट कॉलोनियों से इक_ा किए गए आंकड़ों से पता चला है कि यहां के 49 फीसदी बच्चे कुपोषण से ग्रसित हैं। जबकि इन्हीं इलाकों के 20 फीसदी बच्चे गंभीर कुपोषण के शिकार पाए गए हैं।
दिल्ली में क्राई की निदेशक योगिता वर्मा का कहना है कि भले राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान राज्य के सभी महिलाओं के मामा होने का दावा करें। लेकिन वे अभी भी राज्य के मासूम बच्चों को कुपोषण से निजात दिलाने में नाकाम साबित हुए हैं। राज्य बच्चों के बेहतर देखभाल के लिए जरूरी आंगनबाड़ी का भी पूरी इंतजाम नहीं करा पाए हैं। अभी भी पूरे मध्य प्रदेश में लगभग 47 प्रतिशत आंगनबाडिय़ों की कमी हैं।
क्राई की निदेशक ने आगे कहा कि राज्य सरकार को सबसे पहले यह कबूलने की जरूरत है कि यहां कुपोषित बच्चों की संख्या सरकारी आंकड़े से कहीं अधिक है, तभी इसे रोकने की सही शुरुआत हो सकेगी। क्राई के एक अन्य सदस्य आरबी पाल का कहना है कि राज्य में रहने वाले आदिवासी समुदाय के लगभग 74 फीसदी बच्चे भी कुपोषण के शिकार पाए गए हैं।
आरबी का कहना है कि अगर राज्य में कुपोषण को हटाना है तो सरकार को तुरंत आंगनबाड़ी और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत चलने वाले योजनाओं को दुरुस्त करने की जरूरत है। इसके अलावा महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना को भी बेहतर ढंग से लागू करने की दरकार है।

मंगलवार, 4 जनवरी 2011

'बलात्‍कारी' भाजपा विधायक की जान लेने वाली महिला की पिटाई

पूर्णिया. बिहार में पूर्णिया सदर से भाजपा विधायक राज किशोर केशरी की हत्या कर दी गयी है। हत्‍या का आरोप स्‍थानीय महिला शिक्षक रूपम पाठक पर है।

मंगलवार की सुबह रूपम पाठक विधायक से मिलने उनके आवास पर पहुंचीं। वह शॉल ओढ़े हुई थीं। उन्होंने शॉल के भीतर चाकू छिपा रखा था। विधायक के पास पहुंचते ही रूपम ने उन पर चाकू से 3 वार किए। बुरी तरह घायल विधायक को तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया, लेकिन बचाया नहीं जा सका।

रूपम ने केशरी पर बलात्‍कार का आरोप लगाया था। बताया जाता है इस बारे में उन्‍होंने 5 महीने पहले एफआईआर भी दर्ज कराई थी। इस पर कोई कार्रवाई नहीं होने से उन्‍होंने कानून हाथ में लेने का फैसला किया। विधायक की हत्या के बाद उनके समर्थकों ने महिला को पीट-पीटकर बुरी तरह जख्मी कर दिया। इसके बाद उन्‍हें अस्‍पताल में भर्ती कराया गया है। डॉक्‍टर उनकी हालत नाजुक बता रहे हैं।

मां की मौत का शोक मना रहे बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने गठबंधन की सहयोगी भाजपा के विधायक की हत्‍या पर शोक जताया है। उन्‍होंने मामले की जांच के आदेश दिए हैं। लेकिन राज्‍य के उप मुख्‍यमंत्री और भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने दिवंगत विधायक को पाक-साफ बताते हुए महिला पर ही सवाल उठाए हैं। उन्‍होंने कहा कि महिला की मानसिक स्थिति को लेकर शक है। विधायक को महिला की शिकायत के मामले में क्‍लीन चिट मिली थी। खुद रूपम ने भी विधायक के पक्ष में बयान दिया था। ऐसे में पूरी तहकीकात के बाद ही निश्चित रूप से कुछ कहा जा सकता है। मोदी ने महिला को विवादास्‍पद बताते हुए कहा कि उनका परिवार में भी झगड़ा चल रहा है। महिला के पति मणिपुर में रहते हैं और वह खुद पूर्णिया में स्‍कूल चलाती हैं। संपत्ति को लेकर परिवार के साथ मुकदमेबाजी में भी वह फंसी हुई हैं।

मोदी ने विपक्ष के इस आरोप को गलत बताया कि यह हत्‍याकांड राज्‍य में कानून-व्‍यवस्‍था की पोल खोल रहा है। उन्‍होंने कहा कि यह राज्‍य में खराब कानून-व्‍यवस्‍था से जुड़ा मामला नहीं है।