vinod upadhyay

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बुधवार, 25 मई 2011

एक दशक में 58.61 फीसदी महँगी बिजली

विनय उपाध्याय
भोपाल. दो जून की रोटी और सादा जीवन जीने के लिए तिल-तिल पिस रहा आम आदमी अब और दुर्दशा का सामना करेगा। पेट्रोल के दामों के बाद अब बिजली के दाम भी उसकी जेब को छलनी कर देंगे। खाने-पीने की वस्तुओं के दाम पहले से ही काफी चढ़े हैं और इस पर ये च्करंटज् गरीब का आटा और गीला कर देगा।
प्रदेश में बिजली बीते एक दशक में औसत 52.47 फीसदी तक महंगी हो गई है। उस पर भी इस बार 6.14 प्रतिशत की औसत बढ़ोत्तरी और कर दी गई। इस तरह 2001 से 2011 तक कुल 58.61 प्रतिशत बिजली की औसत कीमत बढ़ गई हैं। ऐसा कोई साल नहीं है, जबकि बिजली की कीमतों में कमी की गई हो। केवल राहत इतनी रही कि इस साल की तरह एक-दो बार बिजली की कीमतें पहले के मुकाबले कम बढ़ाई गई। लेकिन ऐसा जब भी हुआ, उसके दूसरे साल इस राहत की पूरी कसर निकाल ली गई।
मप्र विद्युत नियामक आयोग ने पहली बार 2001-02 में बिजली दरें घोषित की थी। प्रदेश के इतिहास में सबसे अधिक दर बढ़ोत्तरी 2001-02 में 14.73 प्रतिशत हुई थी। इसके बाद 2004-05 में 14.47 प्रतिशत औसत दर बढ़ाई गई। इसके बाद से 2006-07 में करीब पांच प्रतिशत दर बढ़ाई गई थी। वहीं पिछले साल 2009-10 में 3.61 प्रतिशत दर बढ़ोत्तरी की गई। इसके अलावा 2007-08 में मात्र एक प्रतिशत और 2008-09 में तीन प्रतिशत दर बढ़ोत्तरी की गई थी। दरअसल, कोयले के दाम बढऩे के अलावा महाराष्ट्र, दिल्ली और उत्तरप्रदेश की बिजली से मप्र की तुलना करना भी उपभोक्ताओं को भारी पड़ गया है। इन राज्यों की औसत लागत के अध्ययन के बाद हीं मध्यप्रदेश में बिजली लागत तय की गई। इन राज्यों में कही भी सवा चार रुपए से कम औसत लागत नहीं है। मप्र में बिजली की लागत पिछले साल की 4 रुपए 22 पैसे प्रति यूनिट से बढ़ाकर 4 रुपए 29 पैसे आंकी गई है। उस पर ट्रांसमिशन सहित अन्य खर्चों को पाटने के लिए उपभोक्ताओं की जेब खाली करना तय कर लिया गया।
27 में से महज 6.14
राहत की बात यह कि बिजली कंपनियों ने 27 प्रतिशत तक दर बढ़ोत्तरी मांगी थी, लेकिन आयोग ने महज 6.14 प्रतिशत मानी। महंगाई की औसत दर 9 प्रतिशत है, उस लिहाज से इसे राहत भी कहा जा सकता है।
सबसिडी का बोझ
सरकार करीब तेरह सौ करोड़ रुपए से ज्यादा सालाना किसानों और एकबत्ती कनेक्शन पर सबसिडी देती है। यह राशि 1500 करोड़ से ज्यादा है। दर बढ़ोत्तरी के बाद इसमें भी करोड़ों की बढ़ोत्तरी होना है। इससे सरकार पर भी बोझ बढ़ जाएगा।नियामक आयोग के अध्यक्ष राकेश साहनी का कहना है कि बिजली की कीमतें तो बढऩा ही है, क्योंकि बिजली की लागत बढ़ जाती है। जब तक समस्त सेवाओं की कीमतों में कमी नहीं होती, तब तक बिजली की कीमत में राहत मिलना मुश्किल ही है।
वर्ष प्रतिशत
2001-02 14.73
2004-05 14.47
2006-07 05.00
2007-08 01.00
2008-09 03.00
2009-10 03.61
2010-11 10.66
2011-12 06.14
नोट- वर्ष-2006 के पहले आयोग ने नियमित रूप से हर साल दर घोषित नहीं की थी।
लाख बिजली उपभोक्ता प्रदेश में
80
लाख घरेलू उपभोक्ता
65
करोड़ सालाना की बिजली चोरी
1500

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