vinod upadhyay

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मंगलवार, 15 जुलाई 2014

उलटे पड़े कांग्रेस के दाव...दिग्विजय भी घिरे

व्यापमं फर्जीवाड़ा......
शिवराज ने ठोकी ताल तो थम गया कांग्रेस का मनगढ़ंत बवाल
भोपाल। विधानसभा के बाद लोकसभा चुनाव में मप्र से सफाए की कगार पर पहुंची कांग्रेस के लिए व्यापमं फर्जीवाड़ा संजीवनी (बड़े मुद्दे)के रूप में मिला है। लेकिन उसके नेताओं की करतूतों (पूर्व के भ्रष्टाचारों)ने इस संजीवनी की जड़ में पहले से ही ऐसा मट्ठा डाल रखा है कि वह पौधा (आंदोलन) हरा-भरा होने से पहले ही मुरझाने लगा है। भाजपा सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान को घेरने के प्रयास में कांग्रेस का दाव अब उस पर ही उलटा पड़ गया है। सदन से लेकर सड़क तक सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस ने जीतने प्रयास की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान,उनके मंत्रियों और पार्टी पदाधिकारियों ने सबूत के साथ विफल कर दिया। वक्त की नजाकत को देखते हुए पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने भी मौके का फायदा उठाने की कोशिश की लेकिन वे अपने ही जाल में फंस गए। यही नहीं उन्हें हाईकोर्ट से भी फटकार सुनने को मिली। यह तथ्य सत्य है कि पिछले 8 सालों में व्यापमं द्वारा आयोजित भर्ती और प्रवेश परीक्षाओं में लगभग 1000 करोड़ रूपए से अधिक का भ्रष्टाचार हुआ है। भ्रष्टाचार का खुलाशा होते ही सरकार ने 26 अगस्त 2013 को फर्जीवाड़े की जांच और भ्रष्टाचारियों की पड़ताल का जिम्मा एसटीएफ को सौंपा। एसटीएफ ने अपनी अभी तक की जांच निर्विवाद रूप से की है और इस फर्जीवाड़े में लिप्त छोटे से कर्मचारी से लेकर बड़े अधिकारी या फिर रसूखदारों के खिलाफ सबूत मिलते ही कार्रवाई की है। एसटीएफ की इन कार्रवाईयों में अभी तक सरकार की ओर से कोई भी हस्तक्षेप नहीं किया गया है। ऐसे में कांग्रेस ने मनगढ़ंत और सुनी-सुनाई खबरों को आधार बनाकर मुख्यमंत्री और भाजपा सरकार को घेरने की योजना बनाई और विधानसभा में वर्तमान बजट सत्र के दौरान स्थगन प्रस्ताव के तहत सरकार को चुनौती दी।
शिवराज की ललकार...कांग्रेस हुई बे-जबाब पिछले एक साल से व्यापमं मामले में सरकार और अपने ऊपर लगने वाले बेबुनियादी आरोपों के बावजुद रक्षात्मक रूख अख्तियार कर रखे शिवराज सिंह चौहान ने विधानसभा में जब स्थगन प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान ताल ठोकते हुए कहा कि कांग्रेस ने शेर को जगा दिया है,अब वह मेरी एक-एक बात सुने। मैं चुनौती देकर कहता हूं कि, अगर मुझ पर या मेरे परिवार पर लगे आरोप साबित हुए तो, मैं संन्यास ले लूंगा। मुख्यमंत्री की इस चुनौती के बाद विपक्ष के नेता सत्यदेव कटारे औरउनके अन्य सहयोगी सदस्य बगले झांकने लगे और चर्चा से भागते दिखे। आलम यह था कि शिवराज दो दिनों तक विधानसभा में कांग्रेस को चुनौती देते रहे और कांग्रेसी विधायक उनकी बात सुनने की बजाय हंगामा करते रहे।
कांग्रेस ने नहीं,भाजपा ने उठाया व्यापमं मामला जिस व्यापमं फर्जीवाड़े को लेकर कांग्रेस हंगामा कर रही है,उसको मुख्यमंत्री और भाजपा नेताओं ने सामने लाया है। इस बात को शिवराज सिंह चौहान ने भी सदन में स्वीकार करते हुए कहा कि हमें जैसे ही इस मामले का पता चला हमने एसटीएफ को जांच सौंप दी। हम छात्रों के भविष्य के साथ हो रहे खिलवाड़ की जड़ तक जाना चाहते थे। उन्होंने कहा कि यदि एसटीएफ दबाव में काम कर रही होती तो बड़े-बड़े अधिकारियों-नेताओं पर कार्यवाही नहीं होती। चौहान ने कहा कि मेरे रहते हुए नौजवानों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ नही हो सकता। उन्होंने कांग्रेस द्वारा लगाए गये आरोपों पर आपत्ति जताते हुए कहा कि कलंक के गुब्बारे में परिवार को घसीटने की कोशिश की गई। कांग्रेस ने इस मुद्दे को सड़क से लेकर सदन तक में निराधार आरोपों के जरिए भ्रम फैलाने का काम किया है। इस मामले में देश भर में कुछ इस तरह का प्रोजेक्ट किया गया कि मध्यप्रदेश में बड़ा घोटाला हो गया हो। मुख्यमंत्री नेे कहा कि असल में कांग्रेस चाहती है कि इस मामले में किसी तरह से अपने आलाकमान तक हर पल की रिपोर्ट पहुंचे। और तीसरी पारी का विकेट चला जाए। लेकिन कांग्रेस को मैं बता देना चाहता हूं कि मंै अंगद का पांव हूं,कोई क्रिकेट का विकेट नहीं हूं,जो गिर जाऊंगा। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि व्यापमं घोटाले को जिस तरह से कांग्रेस प्रचारित कर रही है वह उसकी हताशा का नतीजा है। उनके पास कोई मुद्दे ही नहीं है। हम सदन में इस बारे में चर्चा करने जाते हैं तो सच का सामना नहीं करना चाहते। उन्होंने कहा कि हमने भर्ती के लिए पारदर्शी प्रणाली लागू की है। उसी का परिणाम है कि 3 लाख 58 हजार भर्तियों में से करीब 238 भर्तियों में गड़बड़ी की शिकायत मिली है। जिनकी जांच करवाई जा रही है। आरोपियों को सजा दी जाएगी और उनके साथ कोई नरमी नहीं बरती जाएगी।
मंत्रियों ने संभाला मोर्चा,तो फुर्र हो गए दिग्गी
विधानसभा में शिवराज की ललकार के बाद पस्त हो रहे कांग्रेसियों को बल प्रदान करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह भी आरोपों की बंदूक लेकर व्यापमं घोटाले में कूद गए हैं। दिग्विजय ने जहां मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर पूरे मामले की जांच प्रक्रिया पर सवाल उठाया और सीबीआई जांच की मांग की है। वहीं, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर नए आरोप लगाते हुए उन्हें खुली चुनौती भी दी कि अगर उनमें दम है तो वह उनके (दिग्विजय के) खिलाफ कार्रवाई करें। दिग्विजय सिंह ने कहा कि 1993 से लेकर अभी तक प्रदेश में जितनी भी नियुक्तियां हुई हैं, सभी की सीबीआई जांच होनी चाहिए। फिर क्या था। सदन के अंदर शिवराज के आक्रामक रुख को देखते हुए पूरी कैबिनेट उनके साथ खड़ी हो गई। कैबिनेट के पांच वरिष्ठ सदस्यों ने दिग्विजय सिंह के खिलाफ मोर्चा संभाला और मुख्यमंत्री के हर फैसले का खुलकर बचाव किया। साथ ही , दिग्विजय सिंह के आरोपों का जवाब भी दिया। शिवराज कैबिनेट के वरिष्ठ सदस्य गौरीशंकर शैजवार , कैलाश विजयवर्गीय , भूपेन्द्र सिंह , उमाशंकर गुप्ता और नरोत्तम मिश्र ने दिग्विजय के आरोपों पर बिन्दुवार सफाई दी। शिवराज के मंत्रियों ने कांग्रेस के शासनकाल में रेवडिय़ों की तरह नौकरियां बांटने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि हमने पारदर्शी व्यवस्था बनाने के लिए व्यापमं में बदलाव किए। नौकरी की शर्तों पर बदलाव 1997 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को देखते हुए किए गए थे। उन्होंने कहा कि दिग्विजय का चीफ जस्टिस को खत लिखना दरअसल कोर्ट की कार्यवाही को प्रभावित करने की कोशिश है। दरअसल उनके कार्यकाल की जांच के सरकार के फैसले से वह घबरा गए हैं। कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि एसटीएफ की जांच में किसी भी संघ नेता का नाम नहीं आया है। प्रदेश सरकार के मंत्रियों के आक्रामक रूख को देखते हुए दिग्विजय सिंह राजधानी से बाहर चले गए हैं।
पहली किस्त में 16 अपात्रों की नियुक्तियां आईं सामने
व्यापमं में हुई परीक्षाओं की सीबीआई जांच को लेकर अड़ी कांग्रेस खुद अपने जाल में घिर गई है। मुख्यमंत्री ने कांग्रेस के शासन काल में हुई भर्तियों को भी जांच के दायरे में लेने के निर्देश दिए हंै। इससे कांग्रेस कार्यकाल भी हुई भर्ती का फर्जीवाड़ा उजागर होने के बाद कांग्रेस के तीखे तेवर अब फीके हो गए हैं। भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कार्यकाल की नोटशीट और संविदा शिक्षक भर्ती में फर्जीवाड़े के दस्तावेजों को सार्वजनिक कर कांग्रेसियों को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। इससे तिलमिलाई कांग्रेेस जब तक पलटवार करती सरकार ने 175 ऐसी नियुक्तियों की सूची जारी कर दी, जो नियम अनुसार नहीं थी। पहली किस्त में दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में नियम विरूद्ध की गई 16 नियुक्तियां सामने आई हैं। इसमें अपात्रों को पात्र बनाकर उपयंत्री से लेकर संविदा शिक्षक तक की नियुक्ति की गई।
इनकी हुई थी फर्जी नियुक्ति
राजवेंद्र सिंह आत्मज हरिप्रसाद सिंह उपयंत्री. वि/यां। रामबदन शर्मा संविदा शाला शिक्षक वर्ग-3। सीता मिश्रा पुत्री एलएन मिश्रा संविदा शाला शिक्षक वर्ग-3। वंदना मिश्रा पत्नी स्व. अमित मिश्रा सहायक ग्रेड-3 रीवा जिला के किसी भी विभाग में। ममता सौहगौरा पत्नी प्रमोद सौहगौरा संविदा शाला शिक्षक वर्ग-3। सुनीता मिश्रा पुत्री लोकनाथ मिश्रा संविदा शाला शिक्षक वर्ग-3। देवेंद्र चतुर्वेदी आत्मज वाल्मीक चतुर्वेदी संविदा शाला शिक्षक वर्ग-3। मंयक भूषण शुक्ल पिता स्व. रामनिवास शुक्ल संविदा शाला शिक्षक वर्ग-3। राजेश कुमार शुक्ला आत्मज रामनरेश शुक्ला संविदा शाला शिक्षक वर्ग-3। इंद्रलाल शर्मा हैंडपंप मैकेनिक मैकेनिक पीएचई सहायक शिक्षक, स्कूल शिक्षा विभाग। उमा मिश्रा पत्नी विरेंद्र मिश्रा संविदा शाला शिक्षक वर्ग-3। कु.प्रभा तिवारी पुत्री जगजाहिर तिवारी संविदा शाला शिक्षक वर्ग-3। जयप्रकाश शर्मा आत्मज चिंतामणि शर्मा संविदा शाला शिक्षक वर्ग-3। राजेश कुमार मिश्रा आत्मज शंभुनाथ संविदा शाला शिक्षक वर्ग-2। रमाशंकर चतुर्वेदी आत्मज वाल्मीक चतुर्वेदी संविदा शाला शिक्षक वर्ग-3। कांग्रेस की कारगुजारी उजागर होने के बाद विधानसभा में व्यापमं घोटाले की सीबीआई जांच कराने की मांग पर अड़े कांग्रेसी बैकफुट पर आ गए हंै। दस्तावेजों में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने अपनी नोट शीट में भर्ती नियमों को शिथिल करते हुए इन लोगों की सिफारिश की थी।
खंगाली जा रही Óदिग्गी राजÓ की गड़बडिय़ां
व्यापमं घोटाले में दिग्विजय सिंह की चुनौती के बाद प्रदेश सरकार ने उनके मुख्यमंत्रित्व काल में हुई गड़बडिय़ों का चिठ्ठा तैयार करवा रही है। पुराने रिकॉर्ड खंगालकर पुलिस संदिग्ध मामले तलाशने में जुटी है। शासकीय विभागों में हुई भर्तियों में पर विशेष फोकस है। 1993 से 2003 तक के कांग्रेसी शासन में शासकीय विभागों में नौकरी लगवाने के लिए झांसा देकर रुपए ऐंठने वाले व अन्य धोखाधड़ी के मामलों का रिकार्ड एकत्रित किया जा रहा है। इन मामलों में फंसे हुए आरोपियों के बारे में भी पता लगाया जा रहा है। इसमें आरोपी का नाम, पता व अन्य जानकारियां जुटाई जा रही है। साथ ही आरोपी वर्तमान में कहां है और क्या कर रहा है। मामलों में यह भी देखा जा रहा है कि धोखाधड़ी करने वाले ऐसे कितने आरोपी हैं जिन्हें सजा हुई है और कितने बेकसूर साबित हुए हैं। साथ ही लोकायुक्त, ईओडब्ल्यू और पुलिस में दर्ज कांग्रेसी नेताओं के केसों की फाइलों को खंगालने का काम तेज हो गया है। शिक्षा, पंचायत, ग्रामीण विकास और नगरीय प्रशासन जैसे विभाग में नियुक्ति, पदोन्नित सहित अन्य मामलों में हुई अनियमितताओं पर दर्ज जांचों को आधार बनाकर सिलसिलेवार ढंग से हमले की रणनीति बनाई गई है। इसके लिए इन विभागों के जांच एजेंसियों में दर्ज प्रकरणों की फेहरिस्त तैयार कराई जा रही है। जिला अधिकारियों से भी सात बिन्दुओं के एक फार्मेट में प्रकरणवार जानकारी तलब की गई है। सूत्रों का कहना है कि पलटवार की इस धारा को और धारदार बनाने के लिए स्कूल शिक्षा विभाग के साथ पंचायत, ग्रामीण विकास और नगरीय प्रशासन से उन केसों की जानकारी एकत्र करवाई जा रही है, जिसमें लोकायुक्त, ईओडब्ल्यू या फिर पुलिस प्रकरण दर्ज हुए हों। विभाग के साथ जिलों से भी पुराने मामलों की जानकारी मांगी गई है। संविदा शिक्षक मामले में तो 1997 से 2000 तक के प्रकरण सात बिन्दुओं के फार्मेट में मांगी गई है। इसमें जिले का नाम, प्रकरणों की संख्या, लोकायुक्त या पुलिस प्रकरण, दोषी अधिकारी-कर्मचारी, दिया गया दण्ड और रिमार्क मांगा गया है। रिमार्क में ये बताना है कि किसके कहने पर नियम विरुद्ध काम किए गए थे। यदि इसके संबंध में दस्तावेज हैं तो उसे अलग से मांगा गया है।
एसटीएफ से कराएगी जांच
शिवराज सरकार कांग्रेस शासनकाल में हुई नियुक्तियों की जांच एसटीएफ से कराएगी। मुख्यमंत्री ने यह निर्णय ले लिया है। दिग्विजय सिंह के शासनकाल की 700 के करीब कथित गलत नियुक्तियों का ब्यौरा सरकार ने जुटाया है। विधानसभा के पूर्व स्पीकर श्रीनिवास तिवारी भी लपेटे में आए हैं। दो सैकड़ा से अधिक मामले केवल रीवा के दिग्विजय सिंह के राज में हुई ऐसी नियुक्तियों की फाइलें निकाली गई हैं, जिनमें या तो नियमों को पूरी तरह शिथिल किया गया है या फिर नियुक्ति के लिये जरूरी प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया। एक प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी के मार्गदर्शन में करीब एक दर्जन अधिकारियों की टीम इस काम में एक पखवाड़े से लगी थी। टीम ने जो मामले निकाले हैं उनमें दो सैकड़ा से अधिक मामले अकेले रीवा और आसपास के क्षेत्रों से ही जुड़े हुए हैं। दिग्विजय सरकार के समय जिन कांग्रेस नेताओं के परिजनों को नौकरियां दी गई थीं। उनके नाम भी सरकार ने निकाल लिये हैं। ये मामले भाजपा की जानकारी में लाये जायेंगे और पार्टी इन्हें जनता के बीच ले जायेगी।
व्यापमं घोटाले की आंच एबीवीपी ने मोड़ी दिग्विजय की ओर
एबीवीपी ने आरोप लगाया कि व्यापमं घोटाले के मुख्य आरोपी नितिन महेन्द्रा की नियुक्ति दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल के दौरान की थी। मध्यप्रदेश के भोपाल में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पूर्व महासचिव विष्णु दत्त शर्मा ने कहा, 'व्यापमं घोटाले का असली सूत्रधार महेन्द्रा को मुख्यमंत्री रहते सिंह ने वर्ष 1995 में नियुक्ति दी थी और वर्ष 1998 में उसे बिना बारी के पदोन्नति भी प्रदान की।Ó उन्होने दावा किया है कि वर्ष 1998, 1999, 2000 एवं 2001 में भी पीएमटी घोटाला हुआ, जिसके जनक महेन्द्रा ही थे और उसे तत्कालीन मुख्यमंत्री सिंह ने दबा दिया था। इसकी जांच भी एसटीएफ से कराई जानी चाहिए। शर्मा ने यह भी दावा किया है कि व्यापमं घोटाले के मुख्य आरोपी पंकज त्रिवेदी, धनराज यादव, भरत मिश्र, डॉ.अजय शंकर मेहता और कई अन्य आरोपियों के वकील कांग्रेस प्रवक्ता अजय गुप्ता हैं, जो दिग्विजय सिंह के निजी मुकदमों में लगभग बारह वर्षो से लगातार पैरवी कर रहे हैं। गौरतलब है कि घोटाले में गिरफ्तारी के वक्त महेन्द्रा व्यापमं में सिस्टम एनॉलिस्ट के पद पर और पंकज त्रिवेदी परीक्षा नियंत्रक के पद पर पदस्थ थे।
एक साल में कईयों की खुली पोल
मप्र व्यवसायिक परीक्षा मंडल में घोटाले का पर्दाफाश हुए 6 जुलाई 2013 को पीएमटी में फर्जीवाड़े के जरिए मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश से हुई थी। इसके बाद एक के बाद एक व्यापमं की विभिन्न भर्ती व प्रवेश परीक्षाओं में फर्जीवाड़ा सामने आया और छात्र-छात्राओं, दलाओं, रसूखदार अधिकारियों से लेकर राजनेता तक जांच के घेरे में आए, आरोपी बने और उन्हें जेल भेजा गया। व्यापमं की करीब 10 परीक्षाओं में हुए फर्जीवाड़ों में करीब डेढ़ हजार से अधिक लोगों को आरोपी बनाया जा चुका है। पिछले साल 6 जुलाई को क्राइम ब्रांच की टीम ने 5 आरोपियों को, जो 7 जुलाई को होने वाली पीएमटी में शामिल होने आए थे को गिरफ्तार किया था। ये अन्य विद्यार्थियों के स्थान पर परीक्षा देने आए थे। पिछले महीने पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया।
व्यापमं फर्जीवाड़े के मुख्य आरोपी
डॉ. जगदीश सागर, दलाल डॉ. जगदीश सागर को इंदौर क्राइम ब्रांच ने इंदौर स्थित उसके निवास से गत 15 जुलाई को गिरफ्तार किया था। आरोपी पर पीएमटी सहित अन्य परीक्षाओं में व्यापमं अधिकारियों की मिलीभगत से परीक्षार्थियों को पास कराने के आरोप थे। आरोपी दूसरे छात्रों को परीक्षा में बैठाता था। इसके लिए वह छात्रों को ट्रेनिंग भी देता था।
नितिन महिंद्रा, पूर्व सीनियर एनालिस्ट, व्यापमं व्यापमं फर्जीवाड़ों के मास्टर माइंड नितिन महिंद्रा को गत 16 जुलाई को गिरफ्तार किया गया था। महिंद्रा पर व्यापमं की भर्ती और प्रवेश परीक्षाओं में गड़बड़ी के आरोप हैं। महिंद्रा जेल में बंद है।
पंकज त्रिवेदी, पूर्व एग्जाम कंट्रोलर, व्यापमं व्यापमं के पूर्व परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी को एसटीएफ ने गत 29 सितंबर को गिरफ्तार किया था। पंकज त्रिवेदी पर व्यापमं की पीएमटी, प्री-पीजी, उप निरीक्षक, आरक्षक, नाप तौल सहित अन्य परीक्षाओं में गड़बड़ी के आरोप हैं। आरोपी जेल में है।
ओपी शुक्ला, उच्च शिक्षा मंत्री के ओएसडी शुक्ला को आरक्षक भर्ती परीक्षा, संविदा भर्ती परीक्षा सहित अन्य परीक्षाओं के आरोप में गिरफ्तार किया था। आरोपी मंत्री के कहने पर पंकज त्रिवेदी को लिस्ट देता था। आरोपी जेल में है।
अजय शंकर मेहता, जन अभियान परिषद के उपाध्यक्ष जनअभियान परिषद के उपाध्यक्ष अजय शंकर मेहता को एसटीएफ ने आरक्षक भर्ती परीक्षा 15 मई को गिरफ्तार किया था। इन पर आरक्षक भर्ती परीक्षा में दो अभ्यर्थियों को पास कराने का आरोप हैं। मेहता अभी जेल में हैं।
संजीव सक्सेना, पूर्व कांग्रेस नेता संजीव सक्सेना के ऊपर दुग्ध संघ भर्ती परीक्षा और आरक्षक भर्ती परीक्षा में फर्जीवाड़े के आरोप हैं। सक्सेना ने 12 मई को भोपाल कोर्ट में सरेंडर किया था। सक्सेना भी जेल में है।
धनराज यादव, राज्यपाल के ओएसडी धनराज यादव को उनके निवास फैजाबाद, लखनऊ से 14 अपै्रल को गिरफ्तार किया था। इन पर आरक्षक भर्ती परीक्षा में फर्जीवाड़े का आरोप है।
आरके शिवहरे, निलंबित डीआईजी आरके शिवहरे को एसटीएफ ने 22 अपै्रल को गिरफ्तार किया था। इनके ऊपर सुबेदार, उप निरीक्षक और प्लाटून कमांडर भर्ती परीक्षा में फर्जीवाड़े का आरोप है। आरोपी जेल में बंद है।
राधारमण अहिरवार, बसपा जिला अध्यक्ष विदिशा बसपा के जिला अध्यक्ष राधारमण अहिरवार को एसटीएफ ने 14 अपै्रल को विदिशा से गिरफ्तार किया था। इस पर संविदा वर्ग-2 में परीक्षार्थियों को व्यापमं अधिकारियों से सांठगांठ कर पास कराने का आरोप है।
लक्ष्मीकांत शर्मा, पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा को 15 जून को उनके 74 बंगले स्थित निवास से गिरफ्तार किया था। 16 जून को कोर्ट में पेश हुए। यहां से इन्हें 24 जून तक रिमांड पर भेजा। 24 जून को नाप तौल परीक्षा में गिरफ्तार कर 26 जून तक रिमांड पर लिया। इसके बाद 26 जून को लक्ष्मीकांत शर्मा को 10 जुलाई तक न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया है। लक्ष्मकांत शर्मा पर संविदा भर्ती परीक्षा और आरक्षक भर्ती परीक्षा में मामला दर्ज है।
ये परीक्षाएं हो चुकी हैं निरस्त वर्ष 2013- 439 छात्रों की पीएमटी निरस्त वर्ष 2012-333 की पीएमटी निरस्त वर्ष 2011-98 छात्रों की पीएमटी निरस्त वर्ष 2010-90 की पीएमटी निरस्त वर्ष 2009-85 की पीएमटी निरस्त वर्ष 2008- 42 की पीएमटी निरस्त प्री-पीजी 2012- 8 की परीक्षा निरस्त नापतौल भर्ती परीक्षा-16 एसआई भर्ती परीक्षा- 11 आरक्षक भर्ती परीक्षा-34 दुग्ध संघ भर्ती परीक्षा- 10 संविदा शिक्षक वर्ग-3 के 84 संविदा शिक्षक वर्ग-2 के 73 कुल संख्या- 1323
वर्ष 2013 का घटनाक्रम
-पीएमटी के पहले 6 जुलाई की रात को क्राइम ब्रांच ने फर्जी तरीके से परीक्षा में शामिल होने की तैयारी कर रहे 5 विार्थियों को इंदौर की एक होटल से पकड़ा था
-15 जुलाई को टीम ने मुंबई से पीएमटी फर्जीवाड़े के मुख्य सरगना डॉ. जगदीश सागर को गिरफ्तार किया था।
-इससे पूछताछ के आधार पर टीम ने 16 जुलाई को व्यापमं के अधिकारी नितिनि महेंद्रा और अजय कुुमार सेनी को गिरफ्तार किया।
-इंदौर क्राइम ब्रांच 18 जुलाई को गिरफ्तार व्यापमं के अधिकारी नितिन महिंद्रा और अजय कुमार सेनी को व्यापमं लेकर आई
-उसी दिन क्राइम ब्रांच ने व्यापमं के सहायक प्रोग्रामर सीके मिश्रा को भी गिरफ्तार कर लिया था।
-27 जुलाई को क्राइम ब्रांच ने राजधानी से पीएमटी फर्जीवाड़े से जुड़े तरंग शर्मा को गिरफ्तार किया था।
-इससे पूछताछ के आधार पर 29 जुलाई को क्राइम ब्रांच ने जबलपुर से संतोष गुप्ता और इंदौर से सुधीर राय को गिरफ्तार किया था। इसे पीएमटी फर्जीवाड़े का दूसरा गिरोह बताया गया था।
-26 अगस्त को पीएमटी फर्जीवाड़े का मामला एसटीएफ के पास आया।
-29 सितंबर को एसटीएफ ने व्यापमं के पूर्व परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी को गिरफ्तार कर लिया था।
-25 अक्टूबर को पीएमटी के तीसरे गिरोह के सरगना संजीव शिल्पकार की गिरफ्तारी एसटीएफ ने की।
-12 नवंबर को पीएमटी फर्जीवाड़े में नितिन महिंद्रा से पूछताछ के आधार पर अरबिंदो मेडिकल कॉलेज के जनरल मैनेजर प्रदीप रघुवंशी को एसटीएफ ने गिरफ्तार किया।
-26 नवंबर को अरबिंदो मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन विनोद भंडरी का नाम भी पीएमटी फर्जीवाड़े में जुड़ गया।
-29 नवंबर को व्यापमं द्वारा आयोजित पीएमटी के अलावा प्री-पीजी, फूड इंस्पेक्टर, दुग्ध संघ, सुबेदार परीक्षाओं का फर्जीवाड़ा भी सामने आया।
-29 नवंबर को ही व्यवसायी सुधीर शर्मा का नाम भी व्यापमं फर्जीवाड़े से जुड़ा
-1 दिसंबर को प्री-पीजी परीक्षा का बड़ा खुलासा एसटीएफ ने किया। इसमें आईएएस ऑफिसर केसी जैन का नाम सामने आया। इनके बेटे अनुराग जैन ने प्री-पीजी में सांठगांठ कर मप्र में टॉप किया था। प्री-पीजी परीक्षा में और भी कई बड़े अफसर और नेताओं के नाम जुड़े
-5 दिसंबर को पीएमटी सहित अन्य परीक्षाओं के फर्जीवाड़े में कांग्रेस नेता संजीव सक्सेना, आरके शिवहरे, डॉ. अजय शंकर मेहता, भरत , राघवेंद्र सिंह तोमर के नाम एसटीएफ ने उजागर किए थे।
-17 दिसंबर को बड़ा खुलासा करते हुए एसटीएफ ने पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा और उनके ओएसडी ओपी शुक्ला का नाम होने की पुष्टि की।
-18 दिसंबर को भाजपा नेता उमा भारती के नाम का जिक्र आया। दूसरे दिन एसटीएफ ने इस बात का खंडन किया।
-23 दिसंबर को पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा और सुधीर शर्मा अपने बयान दर्ज कराने एसटीएफ कार्यालय पहुंचे।
साल 2014 का घटनाक्रम
-1 जनवरी 2014 को नापतौल भर्ती परीक्षा के मामले में पंकज त्रिवेदी और नितिन महिंद्रा को रिमांड पर लिया और पूछताछ चली।
-10 जनवरी को एसटीएफ ने दुग्ध संघ भर्ती परीक्षा में एक आरोपी गिरफ्तार किया था।
- 30 जनवरी को एसटीएफ ने अरबिंदो मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन विनोद भंडारी को गिरफ्तार किया था।
-3 फरवरी को डॉ. विनोद भंडारी को जेल भेज दिया गया था।
-2 मार्च को मुख्यमंत्री के पूर्व निज सचिव प्रेमचंद्र प्रसाद को आरोपी बनाया।
-6 मार्च को फरार डीआईजी आरके शिवहरे पर 3 हजार स्र्पए का इनाम घोषित हुआ।
-24 मार्च को एसटीएफ ने संजीव सक्सेना का गिरफ्तारी वारंट जारी किया।
-7 अपै्रल को एसटीएफ ने संविदा परीक्ष फर्जीवाड़े में तीन महिलाओं को गिरफ्तार किया।
-9 अपै्रल को संवीज सक्सेना के मामले में कोर्ट ने फरारी घोषणा जारी की।
-11 अपै्रल को फरार सीएसपी रक्षपाल यादव पर 1 हजार स्र्पए का इनाम घोषित किया।
-14 अपै्रल को राज्यपाल के ओएसडी और बसपा के जिला अध्यक्ष राधारमण अहिरवार को गिरफ्तार किया।
-22 अपै्रल को डीआईजी आरके शिवहरे को गिरफ्तार किया गया।
-12 मई को संवीज सक्सेना ने न्यायालय में सरेंडर किया।
-15 मई को आरक्षक भर्ती परीक्षा के मामले में अजय शंकर मेहता गिरफ्तार हुए।
-19 मई को निलंबित सीएसपी रक्षपाल यादव ने कोर्ट में सरेंडर किया।
-24 मई को निलंबित सीएसपी रक्षपाल यादव को जेल भेजा।
-6 जून को भरत मिश्रा के खिलाफ फरारी का नोटिस जारी हुआ।
-9 जून को पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा से एसटीएफ ने पूछताछ की।
-15 जून को पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा को एसटीएफ ने उनके निवास गिरफ्तार किया।
-26 जून को पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा न्यायालय ने जेल भेज दिया।
-4 जुलाई को एसटीएफ ने आरक्षक भर्ती परीक्षा के मामले में 42 आरोपियों के खिलाफ कोर्ट में चालान पेश किया।
-हाईकोर्ट ने की दिग्विजय की लेटर पिटीशन मंजूर
-7 जुलाई हाईकोर्ट ने पिटीशन खारिज कर दिया।
- भरत मिश्रा ने अदालत में समर्पण किया
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व्यापमं की वैधानिकता पर सवाल
व्यापमं का गठन 1982 में किया गया। मगर इसका राजपत्र में प्रकाशन 2007 में हुआ। ऐसे में बीच के 25 सालों में जो फैसले हुए, उनकी वैधानिकता पर प्रश्नचिन्ह लग रहा है। इसे लापरवाही की श्रेणी में रख जवाबदार पर कार्रवाई की मांग की जा रही है। व्यावसायिक परीक्षा मंडल का गठन 1970 में मध्यप्रदेश प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड द्वारा गठित प्री-मेडिकल टेस्ट बोर्ड के माध्यम से हुआ था। 1981 में प्री-इंजीनियरिंग बोर्ड का गठन हुआ। 1982 में सरकार के आदेश क्रमांक 1325-1717-42-82 (दिनांक 17.4.1982) द्वारा दोनों बोर्डों को मिलाते हुए प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड गठित किया गया था। जो कि एमईटी, प्री-एमसीए, प्री-पीजी, पीपीटी, पीईपीटी और पीएटी, पीएमटी, जीएनटीएसटी सहित लगभग एक दर्जन चयन परीक्षाओं को संचालित करता था। बाद में सन् 2007 में व्यावसायिक परीक्षा मंडल अस्तित्व में आया। लेकिन बोर्ड का यह अस्तित्व जिस अधिनियम, मध्यप्रदेश प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड एक्ट 2007-के द्वारा निर्मित हुआ वह केवल हवा-हवाई ही है। वास्तव में देखा जाए तो इस अधिनियम के तहत बोर्ड के गठन के लिए न तो कोई बैठक आयोजित की गई और न ही बोर्ड का नोटिफिकेशन हुआ। जवाबदार यह कहते हैं कि वर्तमान में व्यापमं धारा 25 के तहत संचालित है। सवाल यह है कि जब प्रक्रिया पूरी ही नहीं की गई तो बोर्ड अस्तित्व में आया कैसे। देखा जाए तो वर्ष 2007 से लेकर आज तक मुख्य सचिव से सीनियर आईएएस अधिकारी इस बोर्ड के चेयरमैन रहे हैं। जिसमें अजीत रायजादा, रणवीर सिंह, एमके रॉय, रंजना चौधरी, सुदीप सिंह, दिलीप सामंतरे, देवराज बिरदी जैसे अधिकारी कार्य कर चुके हैं। वहीं प्रदेश के मुख्य सचिव राकेश साहनी, अवनि वैश्य, आर परशुराम, एंटनी डिसा जैसे अधिकारियों ने भी मंडल के गठन का नोटिफिकेशन जारी करना प्राथमिकता के तौर पर उचित नहीं समझा। बोर्ड की धारा 1(3) बिंदु में साफ लिखा हुआ है कि यह बोर्ड ऐसी तारीख को प्रर्वत होगा जिसे राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा नियत करे। इसका अर्थ यह है कि जब तक राज्य सरकार की अधिसूचना जारी नहीं होगी तब तक बोर्ड प्रवर्त नहीं किया जा सकता। उच्चाधिकारियों के पास इसका कोई जवाब नहीं है क्योंकि कोई भी अधिसूचना आज तक जारी हुई ही नहीं है। ऐसे में बोर्ड किस हैसियत से काम कर रहा है और किस हैसियत से इसने अब तक परीक्षाएं संचालित की हैं,यह सवाल उच्च न्यायालय जबलपुर ने खड़ा कर दिया है। इस सवाल का जवाब देने में बोर्ड के उच्चाधिकारियों और सरकार को अब पसीने छूट रहे हैं। इसी प्रकार बोर्ड की धारा-3 (1) में स्पष्ट लिखा हुआ है कि राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा मध्यप्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल के नाम से ऐसी तारीख से एक मंडल की स्थापना करेगी जैसा कि सूचना में विनिर्दिष्ट किया जाए। इससे साफ है कि बोर्ड के गठन के लिए अधिसूचना जारी की जाएगी, लेकिन कब अधिसूचना जारी हुई इसका क्या रिकार्ड है। यदि अधिसूचना जारी नहीं हुई है तो बोर्ड को एक संवैधानिक बॉडी माना जा सकता है या इसे मंडल की संज्ञा दी जा सकती है। सभी निगम मंडलों के गठन की जो प्रक्रिया है उसमें अधिसूचना जारी होना एक अनिवार्य कदम कहा जाता है, लेकिन व्यावसायिक परीक्षा मंडल पूरी तरह निराधार है। मंडल का अध्यक्ष धारा 6(1) के अंतर्गत नियुक्त किया गया व्यक्ति होता है, जिसे चेयरपर्सन कहा जाता है। यह राज्य सरकार द्वारा मध्यप्रदेश शासन के मुख्य सचिव की श्रेणी का कोई अधिकारी होना चाहिए, लेकिन वर्तमान में 1984 बैच के प्रमुख सचिव एपी श्रीवास्तव प्रमुख बनाए गए हैं। सरकार की क्या मजबूरी थी कि इतने जूनियर अफसर को वहां पर काबिज किया गया। व्यापमं बिना किसी प्रवर्तन और अनुमोदन के संचालित हो रहा है। यूं देखा जाए तो व्यापमं में चेयरपर्सन के अलावा कई शीर्ष अधिकारियों को बोर्ड में रखा जाता है, इसके अतिरिक्त नॉमिनेटेड सदस्य भी होते हैं, लेकिन व्यापमं के अधिकारियों ने कई बार नोटिफिकेशन के लिए लिखा पर किसी भी उच्चाधिकारी ने तवज्जों देना उचित नहीं समझा। व्यापमं में 25 सदस्यों का संचालक मंडल होना चाहिए जिसमें 15 सदस्य बाहर से होते हैं, लेकिन ये सदस्य कौन होंगे यह अभी तक स्पष्ट नहीं है। इसी कारण भ्रम की स्थिति बनी हुई है। अध्यक्ष की शक्तियां तथा कर्तव्य स्पष्ट रूप से परिभाषित हैं पर वह अध्यक्ष उस पद के अनुरूप तो होना चाहिए तभी वह अपने पद का सही उपयोग कर सकता है। लगता है इसमें किसी की रुचि नहीं है या लापरवाही जानबूझकर की जा रही है या व्यापमं जैसे महत्वपूर्ण मंडल के लिए कोई समय नहीं है। अभी अधिकारी व्यापमं के अधिनियम के बिंदु 25 के अंतर्गत धारा 3 की उपधारा (1) के अधीन कुछ नियमों का हवाला देते हुए व्यापमं के संचालन को उचित ठहरा रहे हैं। दरअसल 2007 के अधिनियम में मंडल की स्थापना पर आगामी परिणाम शीर्षक से 25वें बिंदु में धारा 3 की उपधारा (1) को विस्तार से बताते हुए कहा गया है कि इस उपधारा के अधीन मंडल की स्थापना के लिए विनिर्दिष्ट तारीख से आगामी परिणाम होंगे और जो बिंदु (नीचे लिखे) हुए हैं उनमें कहा गया है कि उपरोक्त तारीख के ठीक पूर्व विद्यमान व्यावसायिक परीक्षा मंडल, मंडल में विलीन हो जाएगा। राज्य सरकार के विद्यमान व्यावसायिक परीक्षा मंडल की समस्त अस्तियां और दायित्व धारा 3 के अधीन स्थापना मंडल में निहित हो जाएगी। विद्यमान व्यावसायिक परीक्षा मंडल के या उसके नियंत्रण के अधीन समस्त कर्मचारी धारा 3 के अधीन स्थापित किए गए मंडल के कर्मचारी समझे जाएंगे, लेकिन आगे यह भी कहा गया है कि ऐसे कर्मचारियों की सेवा के निबंधन तथा शर्ते उपरोक्तानुसार उपांतरित नहीं की जाएंगी जो कि उनके लिए कम अनुकूल हों। इससे स्पष्ट है कि जो जिस पद के योग्य है वही उस पद पर विराजेगा। सवाल यह है कि क्या इस धारा का पालन वर्तमान में किया जा रहा है। उधर,इस मामले में पूर्व मुख्य सचिव अवनि वैश्य कहते हैं कि मेरे कार्यकाल में व्यापमं के नोटिफिकेशन के संबंध में कोई मुद्दा नहीं उठा। सामान्यत: यह होता है कि जब तक नई बॉडी नहीं बनती पुरानी को जारी रखते हैं। हालांकि देर से ही सही प्रदेश सरकार ने व्यापमं में बदलाव लाने की तैयारी शुरू कर दी है।
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खोई जमीन तलाश रहे दिग्विजय
मप्र में कांग्रेस की दुर्गति के लिए एक मात्र जिम्मेदार नेता दिग्विजय सिंह अब फिर से प्रदेश में अपनी खोई हुई जमीन तलाशने में जुट गए हैं। इसलिए पहले उन्होंने व्यापमं मामले में विधानसभा में आक्रामक हुए कांग्रेसी विधायकों के समर्थन में मैदान में कूदे और जब वहां दाल नहीं गली तो अब किसानों के लिए लड़ाई शुरू कर दी है। सवाल यह उठ रहा है कि 11 साल तक प्रदेशवासियों की सुध नहीं लेने वाले दिग्विजय क्या वाकई किसानों के लिए लडऩे के उद्देश्य से ही गुना में भूख हड़ताल कर रहे हैं या राजनीति। दरअसल, बात यह है कि कांग्रेस की लोकसभा में बहुत बुरी हार के बाद दिग्विजय सिंह किनारा करते हुए मध्य प्रदेश में अपनी जमीन तलाश रहे हैं। क्या सिर्फ मध्य प्रदेश में ही किसानों की हालत बद से बद्तर है, क्या सिर्फ मध्य प्रदेश ही ऐसा राज्य है जहां पर किसानों की खेती ओले पडऩे से बरबाद हो गई है। नहीं। आपको बता दें कि ओले पडऩे से सिर्फ मध्य प्रदेश के किसान पीडि़त नहीं हैं बल्कि हरियाणा, राजस्थान और महाराष्ट्र राज्यों में भी किसानों की कई एकड़ भूमि पर खेती बरबाद हो गई। जिससे 2013 के अंत 2014 शुरूआत में दस से बीस फीसदी फसल खराब हो गई। इसको देखते हुए दिग्विजय सिंह की ओऱ से मध्य प्रदेश में किए जा रहे अनशन पर और भी सवाल उठ रहे हैं, सवाल है कि क्या केंद्र में रहते हुए उन्होंने कभी किसानों के लिए आवाज उठाई? आखिर एकदम से क्या हुआ कि पूरे देश के मुद्दे को मध्य प्रदेश में जाकर भुनाया जा रहा है जबकि किसानों की दरिद्रता की समस्या अब से नहीं पहली पंचवर्षीय योजना यानी 1951 से लेकर अब तक बरकरार है। 1993- 2003 के दौरान मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री पद मिलने के बाद दिग्विजय सिंह को संगठन के अलावा केंद्र की सत्ता में कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं मिली। जिसकी खिसियाहट दिग्विजय सिंह के बयानों में अकसर दिखाई दी। पार्टी लाइन से हटकर बयान देकर बवाल खड़ा करने वाले दिग्विजय सिंह को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हमेशा कई बार किनारे भी कर दिया। बटला हाउस एनकाउंटर पर जांच कराने के उनके बयान ने तो पार्टी लाइन से हटकर ही एक बखेड़ा खड़ा कर दिया था। दिग्विजय ने कह दिया था कि बटला हाउस एनकाउंटर झूठा एनकाउंटर था। जिसके बाद केंद्र में कांग्रेस सरकार पर उंगलियां उठने लगीं। उनकी बेलगाम जुबान का उदाहरण अभी हाल ही में तब देखने को मिला जब एक टीवी केबल के कैमरे के सामने दिग्गी ने कहा कि राहुल गांधी में शासक के गुण नहीं हैं। इस तरह के ही बयानों और बेलगाम जुबान की वजह से कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह को हमेशा निकम्मा समझते हुए बड़ी जिम्मेदारी नहीं सौंपी। और तो और उनसे प्रवक्ता के अधिकार भी छीन लिए थे। दूसरा सवाल दिग्विजय सिंह से यह है कि यदि वह किसानों के लिए वाकई लडऩा चाहते हैं तो महाराष्ट्र में जाकर अनशन पर क्यों नहीं बैठते। आपको बता दें कि महाराष्ट्र एक ऐसे राज्य में शुमार है जहां किसानों ने सबसे ज्यादा आत्महत्या की है। गत वर्ष तीन हजार से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या कर ली। इसके अलावा महाराष्ट्र में ही वर्ष 1995 से लेकर अब तक करीब 70 हजार किसानों ने आत्महत्या की है। अगर पूरे देश की बात करें तो पिछले दस वर्ष में दो लाख से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है। दरअसल बात यह है कि दिग्विजय सिंह यदि महाराष्ट्र गए तो उनके लिए भारी पड़ जाएगा। क्योंकि महाराष्ट्र में उनकी ही पार्टी कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ मिलकर शासन कर रही है। इनके शासन काल में किसानों की आत्महत्या का मुद्दा वह नहीं उठाना चाहते। केंद्र में रहते क्यों कुछ नहीं किया? दिग्विजय सिंह से यह भी सवाल है कि दिग्विजय सिंह एक ऐसी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस से जुड़े रहे हैं जो देश पर सबसे ज्यादा बार राज कर चुकी है। केंद्र में उनकी पार्टी की सरकार थी तो उन्होंने किसानों के लिए क्यों कुछ नहीं किया। इसके पीछे डर है? मध्य प्रदेश में जाकर अपने सीमाओं को बांधने के पीछे दिग्विजय सिंह को अपने राजनीतिक कैरियर को लेकर डर तो नहीं छिपा है। दरअसल लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ऐतिहासिक हार के बाद दिग्वजिय सिंह को लगने लगा है कि अब उन्हें वापस मध्य प्रदेश में चले जाना चाहिए। और यही कारण है कि वे अब यहां के मामलों में बिन बुलाए मेहमान की तरह पहुंच कर दखल दे रहे हैं।

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