vinod upadhyay

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शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

अकबर ने जुदा किया था रूपमती और सुल्तान को!

पत्नी मुमताज की याद व उनके प्रेम की खातिर मुगल सम्राट शाहजहां ने खूबसूरत ताज महल बनवाया था। ऐसे ही एक वीर योद्धा अकबर की अधूरी प्रेम कहानी के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं, जिन्हें मांडू की रानी रूपमती से प्रेम हो गया था। रानी को पाने के लिए अकबर ने एक साजिश के तहत उन्हें अपने पति से अलग करना चाहा था। मालवा के सारंगपुर जिले में बना एक मकबरा रानी रूपमती के प्रेम और बलिदान की मिसाल है। यह मकबरा मांडू की रानी रूपमती और बाज बहादुर को अलग करने की साजिश रचने वाले शहंशाह अकबर ने खुद बनवाया था। रानी रूपमती की आवाज और खूबसूरती के कायल अकबर ने रानी को पाने के लिए सुल्तान बाज बहादुर पर ने सिर्फ हमला करवाया था, बल्कि उन्हें बंदी भी बना लिया था। इस बात से दुखी रानी रूपमती ने हीरा लीलकर अपनी जान दे दी थी। रानी की मौते से दुखी अकबर ने फौरन बंधक बनाए प्रेमी बाज बहादुर को मुक्त कर दिया। इतना ही नहीं अकबर ने प्रेमिका की समाधि पर जान देने वाले बाज बहादुर का मकबरा भी बनवाया।
आशिक ए सादिक का मकबरा:
सारंगपुर के नजदीक बना यह मकबरा शहंशाह अकबर ने 1568 ईस्वी में बनवाया था। यह बात सच है कि इस स्मारक को वह ख्याति नहीं मिल पाई, जिसका यह हकदार था। कभी अपनी भव्यता के लिए पहचाने जाने वाला यह मकबरा देखरेख के अभाव में अपने अस्तित्व को खोता जा रहा है। बताया जाता है कि दो प्रेमियों को अलग करने का पछतावा दिनरात अकबर को परेशान कर रहा था। ऐसे में अकबर ने बाज बहादुर के मकबरा पर 'आशिक ए सादिक' और रानी रूपमति की समाधि पर 'शहीदे ए वफा' लिखवाया था। हालांकि वह शिलालेख अब वहां मौजूद नहीं है, लेकिन जानने वाले इसे इसी नाम से पुकारते हैं।
रूपमति से मिलने सारंगपुर आने लगे थे सुल्तान:
अमर हो गई शहीद ए वफा और आशिक ए सादिक की प्रेम कहानी: उस समय सारंगपुर शेरशाह सूरी के सूबेदार सुजात खान के अधिकार में था। सुजात खान का संगीत व कला प्रेमी बेटा बाज बहादुर (1556 से 1561) तक मालवा का सुल्तान रहा। रूपमति सारंगपुर के पास फूलपुर (तिल्लजपुर) के एक किसान की बेटी थी। सुंदर होने के साथ ही रूपमति कवियित्री, गायिका व संगीतज्ञ थी। रूपमति की ख्याति सुनकर सुल्तान बाज उनसे मिलने सारंगपुर आए और उन्हें रूपमति से प्रेम हो गया। इसके बाद वह अक्सर रूपमती से मिलने सारंगपुर आया करते थे। कुछ महिनों बाद बाज बहादुर ने रूपमती से विवाह कर उसे अपनी रानी बना लिया।
दोनों के प्रेम को लगी शहंशाह की नजर:
अब तक रानी रूपमती के सौंदर्य व गायन की चर्चा शहंशाह अकबर तक पहुंच चुकी थी। उन्होंने बाज बहादुर को पत्र लिखकर रानी रूपमती को दिल्ली दरबार में भेजने की बात कही। इस पर तमतमाए बाज बहादुर ने अकबर को उन्हीं के लहजे में पत्र लिखा और अपनी रानी को सारंगपुर भेजने की बात कही। एक राजा की इस गुस्ताखी ने शहंशाह अकबर को विचलित कर दिया।
रानी ने हीरा लीलकर दे दी थी जान:
गुस्से में तमतमाए शहंशाह अकबर ने अपने सिपहसालार आदम खां को भेजकर मालवा पर आक्रमण करा दिया। लड़ाई में बाज बहादुर हार गया और मुगलों ने उसे बंदी बना लिया। जीत के बाद आदम खां रानी रूपमती को लेने के लिए मांडव रवाना हो गए। इससे पहले की अकबर रानी रूपमती को अपना बंदी बना पाता, रानी रूपमती ने हीरा लीलकर अपनी जान दे दी।
ताजमहल से पुरानी है सारंगपुर मकबरे की कहानी:
इस प्रेम की अनोखी दास्तां के बारे में जानकर अकबर को बहुत पछतावा हुआ। दो प्रेमियों को अलग करने का जिम्मेदार खुद को मानने वाले अकबर के आदेश पर रानी रूपमती के शव को ससम्मान सारंगपुर भेजकर दफनाया गया। इतना ही नहीं अकबर ने रानी की मजार भी बनवाई।
रानी की मजार पर सिर पटक-पटक कर दे दी जान:
पछतावे की आग में जल रहे अकबर ने तत्काल बंदी बाज बहादुर को मुक्त कराने के आदेश दे दिए। मुक्त होते ही बाज बहादुर को अकबर ने मिलने के लिए अपने दरबार में बुलाया। वर्ष 1568 में बाज बहादुर गंभीर बीमार हो गए थे। उन्होंने अकबर से अपनी अंतिम इच्छा जाहिर करते हुए सारंगपुर जाने की बात कही। इस पर अकबर ने बाज को दिल्ली से पालकी में बैठाकर सारंगपुर भिजवाया। यहां बाज बहादुर ने रूपमती की मजार पर सिर पटक-पटक कर जान दे दी। बाद में रूपमती के पास में ही बाज बहादुर की मजार भी बनाई गई।

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