vinod upadhyay

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शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

किले की दीवार पर मुखर होगा 'सन्‍नाटा'

राष्‍ट्रकवि भवानी प्रसाद मिश्र की प्रसिद्घ कविता 'सन्नाटा' अब जल्द ही उस किले की दीवारों पर मुखर होगी, जिस दीवार पर बैठकर उन्होंने कविता का सृजन किया था। ज्ञात रहे कि हाल ही में बैतूल जिले की एक संस्था ने उनकी प्रसिद्घ कविता 'सतपुड़ा के घने जंगल' को उसी शिला पर अंकित किया गया है, जिस पर बैठकर उन्होंने कविता लिखी थी। ठीक उसी प्रकार उनकी 'सन्नाटा' कविता को भी किले की दीवारों पर अंकित किया जाएगा। यह कार्य नगर पालिका और जिला प्रशासन द्वारा किराए जा रहे संवर्धन और सौंदर्यीकरण कार्य के तहत कराया जाएगा। ऐसा माना जाता है कि पं. मिश्र ने उक्त कविता नर्मदा तट पर स्थित प्राचीन किले की दीवारों पर बैठकर ही लिखी थी। देश के महान साहित्यकार भवानी प्रसाद मिश्र की जन्मस्थली होने का गौरव होशंगाबाद जिले को प्राप्त है। वर्ष 1913 में उनका जन्म नर्मदा तट के टिगरिया गांव में हुआ था। वे बचपन से ही कुशाग्र बुद्घि के धनी थी। पुराने लोग बताते हैं कि स्कूली शिक्षा के दौरान पं. मिश्र अक्सर घूमते हुए नर्मदा तट पर स्थित खंडहर में चले जाते थे और वहां घंटों बैठकर नर्मदा को निहारा करते थे। खंडहर होने के कारण यहां ज्यादा लोग नहीं आते थे। इस कारण यहां हमेशा सन्नाटा पसरा रहता था। बाद में उन्होंने यहीं बैठकर सन्नाटा जैसी प्रसिद्घ रचना का सृजन किया। इसलिए आया ध्यान हाल ही में जब बैतूल जिले की संस्था भारत-भारती ने पं. मिश्र की एक अन्य कविता सतपुड़ा के घने जंगल को शिला पर अंकित कराया तो होशंगाबाद की नगर पालिका अध्यक्ष माया नारोलिया और एसडीएम राजेश शाही के ध्यान में यह बात आई। नारोलिया ने बताया कि यह हमारे लिए गर्व की बात है कि भवानी प्रसाद मिश्र जैसे साहित्यकार की जन्मस्थली होशंगाबाद है। उनकी कविता को अमर करने के लिए किले के सौंदर्यीकरण के साथ ही उनकी कविता को दीवार पर अंकित कराया जाएगा। इससे यहां आने वाले सैलानी और अन्य लोग कम से कम उनकी कविता को पढ़ सकेंगे। एसडीएम श्री शाही ने बताया कि यह पं. मिश्र के लिए सबसे बड़ी श्रद्घांजलि होगी। ये है सन्‍नाटा मैं सन्‍नाटज्ञ हूं फिर भी बोल रहा हूं, मैं शांत बहुत शांत हूं फिर भी डोल रहा हूं। ये सर-सर ये खड़-खड़ सब मेरी हैं, है ये रहस्‍य में इसको खोल रहा हूं।

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