vinod upadhyay

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शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

भगत सिंह की फांसी पर आज लगी थी `अंतिम मुहर`

14 फरवरी...महज एक तारीख या कोई दिन नहीं बल्कि एक विशेष अहसास है जो हर युवा के दिलों में स्पंदन की गति को बढ़ा देता है। 14 फरवरी आज-कल वैलेंटाइन डे के रूप में न केवल भारत बल्कि दुनिया भर में मनाया जाता है। भारतीय युवाओं में भी इस दिन का विशेष क्रेज देखा-जाता है। मगर इस दिन को केवल स्त्री-पुरूष प्रेम के लिए ही नहीं जाना जाना चाहिए बल्कि इस दिन कुछ ऎसा हुआ था कि अगर इस तारीख को भारतीय इतिहास की सबसे काले दिनों में शुमार किया जाए तो गलत न होगा। आखिर क्या हुआ इस दिन जो इसे बनाता है बेहद काला दिन? देश की आजादी के सबसे बड़े सितारे शहीद ए आजम सरदार भगत सिंह की फांसी की सजा पर आज ही के दिन (14 फरवरी, 1931) को अंतिम मुहर लगाई गई थी। आपको बता दें कि, केस की सुनवाई की दौरान भारत में भगत सिंह की लोकप्रियता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही थी, और जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हो रहे थे। जिसे देखते हुए वॉयसराय लॉर्ड इरविन ने 1 मई 1930 को आपतकाल की घोषणा करते हुए इस केस को जल्द खत्म करने की खातिर उच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों का एक स्पेशल ट्रिब्यूनल बनाने का अध्यादेश पारित किया था। यह अध्यादेश (और ट्रिब्यूनल) न तो सेंट्रल असेंबली में और न ही ब्रिट्रिश संसद में पारित किया गया था अत: यह 31 अक्टूबर 1930 को समाप्त हो जाता। इसी वजह से 7 अक्टूबर, 1930 को ट्रिब्यूनल ने सभी साक्ष्यों के आधार पर अपना 300 पन्नों का निर्णय दिया। ट्रिब्यूनल ने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को सांडर्स की मौत का दोषी माना और उन्हें फांसी से मौत की सजा सुनाई। अन्य 12 आरोपियों को कठोर आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। इस ट्रिब्यूनल की अध्यक्षता जस्टिस जी. सी. हल्टन ने की थी। जबकि उसके अन्य सदस्य जस्टिस जे. के. टैप और जस्टिस सर अब्दुल कादिर थे। इसके बाद पंजाब में एक रक्षा समिति ने प्रिवी काउंसिल में एक अपील करने के लिए योजना बनाई। भगत सिंह शुरूआत में इस अपील के खिलाफ थे लेकिन बाद में यह सोचकर की शायद इस अपील से ब्रिटेन में भी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन लोकप्रिय होगा मान गए थे। अपील में दावा किया गया था कि जिस अध्यादेश से यह ट्रिब्यूनल बनाया गया था वह अवैध था, जबकि सरकार ने इसका विरोध करते हुए अपना पक्ष रखा था कि वायसराय पूरी तरह से ऎसा ट्रिब्यूनल बनाने के लिए सक्षम हैं। इस अपील को न्यायाधीश विस्काउंट डुनेडिन ने बर्खास्त कर दिया था। प्रिवी काउंसिल में अपील खारिज होने के बाद, तत्कालीन कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मदन मोहन मालवीय ने 14 फरवरी 1931 को इरविन के समक्ष एक दया याचिका लगाई थी, जिसे भी खारिज कर दिया गया था। और अंतत: 23 मार्च, 1931 को शाम 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह और उनके दो साथियों सुखदेव और राजगुरू को फांसी दे दी गई। क्यों नाम पड़ा भगत सिंह परिवार के अनुसार, शहीद ए आजम का नाम 'भागां वाला' (किस्मत वाला) होने के कारण भगत सिंह पड़ा। उन्हें यह नाम उनकी दादी जयकौर ने दिया था, क्योंकि जिस दिन उनका जन्म हुआ उसी दिन उनके पिता किशन सिंह और चाचा अजित सिंह जेल से छूट कर आए थे। 13 और 23 का था अलग महत्व 28 सितंबर, 1907 को पैदा हुए और करतार सिंह सराबा को अपना आदर्श मानने वाले भगत सिंह की जिन्दगी में 13 और 23 तारीख का बहुत बड़ा महत्व रहा। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग नरसंहार ने उन्हें Rांतिकारी बनाने का काम किया। उनके परिवार के सदस्यों के मुताबिक भगत सिंह द्वारा लिखे गए ज्यादातर पत्रों पर 13 या 23 तारीख अंकित है। 23 मार्च 1931 को 23 साल की उम्र में वह देश के लिए फांसी के फंदे पर झूल गए। भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 में हुआ था। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था। यह एक सिख परिवार था जिसने आर्य समाज के विचार को अपना लिया था। उनके परिवार पर आर्य समाज व महर्षि दयानन्द की विचारधारा का गहरा प्रभाव था। अमृतसर में 13 अप्रैल, 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड ने भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था। उस समय भगत सिंह करीब 12 वर्ष के थे जब जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड हुआ था। इसकी सूचना मिलते ही भगत सिंह अपने स्कूल से 12 मील पैदल चलकर जलियांवाला बाग पहुंच गये थे। इस उम्र में भगत सिंह अपने चाचाओं की क्रान्तिकारी किताबें पढ़ कर सोचते थे कि इनका रास्ता सही है कि नहीं ?

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