vinod upadhyay

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शनिवार, 2 जुलाई 2016

काले धन की खोज यानी चिराग तले अंधेरा

काले धन को उजागर कर उसे अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में लाने की कोशिशों में सरकार लगी हुई है। काला धन एक रहस्यमय चीज है। लेकिन यह रहस्य ऐसा है जिसे सब जानते हैं और कोई नहीं जानता। आदमी पर एक नजर डालते ही पता चल जाता है कि उसके पास काला धन है या नहीं। लेकिन हममें से कोई भी व्यक्ति निश्चितता के साथ दावा नहीं कर सकता कि उसके पास जो धन है वह काला ही है। क्योंकि, किसके पास काला धन है और किसके पास नहीं, यह निर्णय करने का अधिकार सिर्फ सरकार को है। वही बताएगी कि किसके पास कितना काला धन है और किसका धन स्वच्छ है। इधर, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने विदेशी बैंकों में जमा भारतीयों के करीब 13 हजार करोड़ रुपये काले धन का पता लगाया है। लेकिन इनमें एक भी खाते की खोज का श्रेय भारतीय जांच एजेंसियों को नहीं जाता। 2011 में फ्रांस सरकार ने जिनेवा के एचएसबीसी बैंक में भारतीयों द्वारा जमा करवाई गई रकम के करीब 400 मामलों की जानकारी दी थी। इनमें करीब 8,186 करोड़ रुपये जमा थे। 2013 में इंटरनैशनल कंसॉर्शियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स की वेबसाइट पर 700 भारतीयों के बैंक अकाउंट्स के बारे में पता चला, जिनमें 5000 करोड़ रुपये के डिपॉजिट्स थे। इस तरह दोनों को मिलाकर भारतीयों के कुल 1100 खातों में 13 हजार करोड़ रुपये की ब्लैक मनी का पता चला है। यह कोई बहुत बड़ी राशि नहीं कही जाएगी, फिर भी सरकार चाहे तो कुछ नहीं से कुछ भला की तर्ज पर अपनी पीठ थपथपा सकती है। काले धन की बरामदगी को लेकर सरकारी एजेंसियों के रवैये में अभी कोई बदलाव तो नहीं नजर आ रहा है, लेकिन सरकार ने काले धन पर अपना सख्त रुख दोहरा कर उम्मीद जिलाए रखी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते दिनों रेडियो पर 'मन की बातÓ कार्यक्रम में इसकी चर्चा की और कहा कि अघोषित आय रखने वालों के पास 30 सितंबर तक अपनी आय का खुलासा करने का आखिरी मौका है। ऐसा नहीं करने वालों को बाद में तकलीफ का सामना करना पड़ सकता है। ब्लैक मनी को उजागर कर और टैक्स का दायरा बढ़ाकर अपना राजस्व बढ़ाना सरकार का एक प्रमुख अजेंडा रहा है, हालांकि इसमें कोई खास सफलता नहीं मिल पा रही। बाहर से काला धन लाकर हर भारतीय के खाते में 15 लाख रुपये जमा करना इस सरकार का एक बड़ा चुनावी मुद्दा था। बाद में सरकार ने खुद ही उसे जुमला मान लिया। अपनी पहल पर उसने ब्लैक मनी के खुलासे की जो योजना चलाई, उससे 3,770 करोड़ का ही खुलासा हो सका। प्रधानमंत्री को उम्मीद है कि उनके सख्त बयान से लोग अपने आप पैसे निकाल बाहर करेंगे। उनका यह कहना सही है कि 125 करोड़ लोगों में सिर्फ डेढ़ लाख लोगों की कर-योग्य आय 50 लाख रुपये से ज्यादा है, जबकि लाखों लोग करोड़ों के बंगले में रह रहे हैं। लेकिन सचाई यह है कि ऐसे लोगों से कर वसूलने की कोई प्रणाली सरकार विकसित नहीं कर पाई है। नतीजा यह है कि देश का व्यापारी वर्ग आयकर के दायरे से आम तौर पर बाहर है। यह वर्ग अक्सर कागजी कसरत के जरिये टैक्स देने से साफ बच जाता है। टैक्स न देने वाले सुपर अमीरों में वे राजनेता भी शामिल हैं, जो अपनी आमदनी का मुख्य जरिया खेती-किसानी को बताकर टैक्स का कोई झंझट ही अपने सामने नहीं आने देते। सरकार पारदर्शिता बरतना चाहती है तो हर लेवल पर बरते। किसी पर शिकंजा कसने और किसी को नजरअंदाज करने की नीति नहीं चलेगी। देश में काला धन के दो प्रकार हैं। एक, ऐसी कमाई जो काले ढंग से या काले कारनामों से की गई है। जैसे एक दारोगा अपने इलाके में स्थित मंडियों में हर व्यापारी से हर महीने एक निश्चित रूप से वसूल करता है। या, सुरक्षा टैक्स के नाम पर गुंडे अपने इलाके के रईस लोगों से जो धन वसूल करते हैं। यह सारा धन काला धन है, क्योंकि यह काले स्रोतों से कमाया हुआ धन है। यह गुप्त रूप से वसूल किया जाता है तो गुप्त रूप से रखा भी जाता है। यह वह कमाई है जो राष्ट्र की सकल आय में शामिल नहीं की जाती, क्योंकि इसके बारे में सभी को पता है और किसी को भी पता नहीं है। हमारे देश में काली कमाई का परिमाण बहुत बड़ा है, इतना बड़ा कि एक समानांतर अर्थशास्त्र काम कर रहा है। अधिकांश राजनीतिज्ञ, नौकरशाह, दलाल, बिल्डर और पुलिस अधिकारी इस काली कमाई पर ही फूलते-फलते हैं। चूंकि सभी इसमें लिप्त रहते हैं, यहां तक कि आयकर के अधिकारी भी जिनका काम ही उस धन को खोज निकालना है जिस पर टैक्स नहीं दिया गया है, इसलिए कोई किसी पर उंगली नहीं उठाता। समानांतर अर्थव्यवस्था पूर्ण परस्पर सहमति से ही चल सकती है। काले धन का दूसरा प्रकार वह कमाई है जिसे कम करके दिखाया गया है। इसके पीछे मकसद आयकर देने से बचना है। यानी कमाई सफेद की है, पर उसका एक बड़ा हिस्सा काला धन में बदल जाता है। टैक्स चोरी व्यक्ति भी करते हैं और बड़े-बड़े निगम भी। इसके कई तरीके होते होंगे, जिनके बारे में मुझे कुछ नहीं मालूम, क्योंकि यह दुनिया मेरी नहीं है। ऐसे सौ लोगों के खिलाफ भी कार्यवाही शुरू हो जाए तो देश का वातावरण एकदम से बदल जाएगा। काला धन अदृश्य होता है, पर उसका उपभोग करने वाले तो दृश्य होते हैं। कुमारी जयललिता की काली कमाई के स्रोतों का पता नहीं लगाया जा सका, पर उनकी जीवन शैली चीख-चीख कर यह बता रही थी कि यह सब कुछ आय के वैध स्रोतों के बल पर नहीं हो सकता। काला धन की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उसे छुपाएं कैसे। यह कुछ-कुछ व्यभिचार को छुपाए रखने की समस्या की तरह है। गीता की शिक्षा को उलट दिया जाए तो इरादा यह होता है कि कर्म करें, पर फल से बचे रहें। कुछ धन देश के भीतर ही अनाप-शनाप खर्च कर दिया जाता है, तो कुछ को विदेश यात्रा के दौरान फना कर दिया जाता है। लेकिन रकम बड़ी हो और मु_ी छोटी, तब काले धन का एक बड़ा हिस्सा निर्यात कर दिया जाता है यानी विदेशी बैंकों में जमा कर दिया जाता है, जिनके पास धनधारी व्यक्ति की पहचान छिपाए रखने का अधिकार या सुविधा होती है। पराई मिट्टी पर जाकर काला धन सफेद धन में बदल जाता है। देसी बैंक में पैसा जमा करो तो सरकार उसकी खोज कर सकती है। पर विदेशी खातों में जमा धन के साथ एक तरह की कानूनी पवित्रता जुड़ जाती है। नाम बताने के पहले वहां का बैंकर बार-बार पूछेगा कि क्या सबूत है कि यह सफेद धन नहीं, काला धन है? क्या आपने इस खाताधारी पर मुकदमा चला रखा है? क्या आपने उसे काला धन रखने का दोषी पाया है? जाइए, पहले अपना हिसाब-किताब ठीक कीजिए, तब हमारे पास आइएगा। अगर आप बिना किसी सबूत के यानी खाली हाथ आए हैं, तो हमारे सच्चे और ईमानदार खाताधारियों पर नाहक शक करके उनका अपमान कर रहे हैं। बेशक बहुत-सा काला धन विदेश में भी पैदा होता है- विदेशी सौदों में खातों की बेईमानी कर। लेकिन काले धन का मूल निवास हमारे देश में ही है। अनुमान है कि जितना काला धन विदेशी बैंकों में जमा है, उसका हजारों गुना काला धन देश के भीतर है। जाहिर है, काला धन का जन्म यहीं होता है और उसका वही हिस्सा विदेशी बैंकों में जाता है जिसे यहां सधाया नहीं जा सकता। इसलिए काला धन के विरोधियों को यह मांग करते देखना कि विदेशों में जमा अवैध धन को भारत लाओ, ताज्जुब होता है। ऐसे लगता है कि ये या तो खुद मूर्ख हैं या दूसरों को मूर्ख बना रहे हैं। हो सकता है, दोनों ही बातें सही हों।

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