vinod upadhyay

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शनिवार, 2 जुलाई 2016

कुम्बले बनेंगे क्रिकेट के द्रोणाचार्य

ऐसा क्या है जो अनिल कुंबले को सबसे ज्यादा सम्माननीय और प्रेरणादायी भारतीय खिलाड़ी की पहचान दिलाता है सम्मान के ये तमगे हैं- फिरोजशाह कोटला में 74 रन देकर दस विकेट लेना या वह नेतृत्व- जो विवादास्पद मंकीगेट सीरीज के दौरान उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में दिया था या वह जज्बा- जो उन्होंने एंटीगा (2002) में जबड़ा टूटा होने के बावजूद गेंदबाजी करते हुए दिखाया था? तो जवाब है ऊपर दिए ये सभी। इस सबमें यह भी शामिल कर लीजिए कि उन्होंने अपने सम्मान और त्याग को टीम के हित से ऊपर कभी नहीं रखा। कोई यह कैसे भूल सकता है कि उन्हें उनके करियर के एकमात्र वर्ल्डकप फाइनल में नहीं खिलाया गया (ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध, जोहानेसबर्ग 2003)। या, विदेशों में खेले गए दर्जनों टेस्ट में टीम के कप्तान ने कुंबले के बजाए उनके जूनियर हरभजन को एकमात्र स्पिनर के रूप में टीम में चुना। सौरव गांगुली ही थे, जिन्होंने कप्तान के रूप में ये कड़े फैसले लिए और फिर भी वे कुंबले को जेंटलमैन कहते हैं क्योंकि उन्होंने कभी निजी मनमुटाव को सामने नहीं आने दिया। गांगुली कहते हैं मेरी कप्तानी पारी का यह सबसे बड़ा खेद का विषय रहा, जब मुझे उन्हें कई बार टीम से बाहर रखना पड़ा। लेकिन कुंबले न कभी इससे विचलित हुए और न ही शिकायत की। हां, एक बार हुआ था कुछ ऐसा। 2001 में अपनी कंधे की सर्जरी के बाद से कुंबले खराब दौर से गुजर रहे थे। 2003-04 की ऑस्ट्रेलिया सीरीज के ब्रिसबेन टेस्ट के लिए गांगुली ने जो अंतिम 11 खिलाड़ी तय किए, उसमें कुंबले को बाहर कर हरभजन को शामिल किया। पहले दिन का खेल खत्म होने के बाद जब टीम होटल पहुंची तो गांगुली अपने परिवार के साथ हो लिए। लेकिन शाम को ही कुंबले ने उनके कमरे का दरवाजा खटखटाया और बोले, मैं इस टेस्ट के खत्म होते ही सन्यास लेना चाहता हूं और जल्द से जल्द घर वापस जाना चाहता हूं। घबराए हुए से गांगुली कुछ पल के लिए उनका चेहरा देखते रह गए। आखिर उन्होंने भीतर से अपनी पत्नी डोना को बुलवाया और कुंबले को समझाने को कहा। कम से कम सीरीज खत्म होने तक वे इस बारे में कुछ न सोचें। और जैसा कि भाग्य से होता है, हरभजन की उस टेस्ट में अंगुली टूट गई और उन्हें सर्जरी करानी पड़ी। बाकी सीरीज के लिए कुंबले टीम में आए और उन्होंने अगले तीन टेस्ट में 24 विकेट लिए। इसमें एडिलेड टेस्ट की वह ऐतिहासिक जीत भी शामिल है। फिर कुंबले ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा जब तक कि उन्होंने खुद सन्यास का फैसला नहीं किया (2 नवंबर 2008 की दोहपर कोटला में)। कप्तानी भी कुंबले के पास अनायास ही आई। लेकिन जिस साल उन्होंने टीम इंडिया का नेतृत्व किया, टेस्ट में अपने खिलाडिय़ों से उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करवाया। और जब उन्हें लगा कि वे यह जिम्मेदारी और नहीं संभाल पाएंगे तो उन्होंने बीच सीरीज में सन्यास ले लिया, जबकि ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ वह सीरीज भारत जीतने वाला था। उन्होंने गावस्कर-बॉर्डर ट्रॉफी के अंतिम मैच का इंतजार भी नहीं किया और कमान नए कप्तान एमएस धोनी को सौंप दी। बिलकुल एक जेंटलमैन की तरह। इस एक साल में कुंबले को कठिन परीक्षा से गुजर कर भारतीय क्रिकेट को बुलंदियों की ऊंचाई तक ले जाना होगा। अगले महीने से शुरू हो रहे वेस्टइंडीज दौरे से उनकी परीक्षा की शुरूआत हो जाएंगी। अब सवाल ये उठता है कि क्या इस एक साल में कुंबले अपने आपको साबित कर पाएंगे! आइए एक नजर डालते हैं कि इस एक वर्ष में कुंबले को कितने मैचों में टीम इंडिया के कोच की जिम्मेदारी निभानी है। कठिन है कुंबले की परीक्षा कुंबले अगले महीने से वेस्टइंडीज दौरे पर टेस्ट सीरीज के लिए जा रही भारतीय टीम के साथ कोच के तौर पर जुड़ जाएंगे। यानी उनकी परीक्षा की शुरुआत वेस्टइंडीज दौरे से होगी। इसके बाद न्यूजीलैंड की टीम भारत दौरे पर आएगी। न्यूजीलैंड के साथ भारत को टेस्ट और वनडे मैचों की सीरीज खेलनी है। न्यूजीलैंड के बाद इंग्लैंड की टीम भारत दौरे पर टेस्ट मैचों की सीरीज खेलने आ रही है। फिर भारत को बांग्लादेश के साथ एक टेस्ट मैच की सीरीज और फिर ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चार टेस्ट मैचों की सीरीज खेलनी है। भारत को जून 2017 में इंग्लैंड में आयोजित होने वाले चैंपियंस ट्रॉफी में भी हिस्सा लेना है। जाहिर है कुंबले के एक वर्ष के कार्यकाल में भारत को दुनिया की बेहतरीन टीमों के खिलाफ क्रिकेट खेलना है। एक साल में इतने मैच खेलेगा भारत कुंबले की कप्तानी में भारत चार टेस्ट मैचों की सीरीज वेस्टइंडीज में खेलेगा इसके अलावा उसे 4 और टेस्ट मैच विदेशी धरती पर खेलने हैं। घरेलू मैदान पर कुंबले के कार्यकाल में भारत को भारत में 13 टेस्ट मैच खेलने हैं। एक साल में भारत 10 वनडे और इतने ही टी20 मैच खेलेगी। कुंबले के कोच रहते भारत को इंग्लैडं में चैंपियंस ट्रॉफी जैसे अहम प्रतियोगिता में भी हिस्सा लेना है। कुंबले को बिठानी होगी कप्तानों के साथ ट्यूनिंग कुंबले के लिए सबसे बड़ी चुनौती भारतीय क्रिकेट टीम के टेस्ट कप्तान विराट कोहली और वनडे व टी 20 कप्तान धोनी के साथ तालमेल बिठाना भी होगा। इन दोनों कप्तानों का अंदाज बिल्कुल अलग है साथ ही कुंबले को टीम के नए खिलाडिय़ों के साथ भी सामंजस्य बिठाना होगा। ----------------------------

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