vinod upadhyay

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गुरुवार, 6 मार्च 2014

60,000 करोड़ के कर्ज में डूबा जेपी ग्रुप

जेपी के 38,000 करोड़ के कोल ब्लॉक पर गहराया संकट
खनिज,कोयला,पर्यावरण और वन मंत्रालय ने कसी कंपनी पर नकेल
अल्ट्राटेक सीमेंट को एक प्लांट बेचने के बाद कुछ और प्लांट बेचने की तैयारी
भोपाल। मप्र खनिज विकास निगम से सांठगांठ कर 38 हजार करोड़ से अधिक के कोल ब्लॉक हथियाने वाली कंपनी जेपी एसोसिएट का रसूख सरकार के सभी विभागों पर भारी पड़ रहा है। इन सब के बावजुद जेपी ग्रुप 60,000 करोड़ रुपए के कर्ज में डूबा हुआ है। इस कर्ज से निजात पाने के लिए ग्रुप ने अल्ट्राटेक सीमेंट के गुजरात प्लांट को बेचा था,लेकिन कंपनी की देनदारियां दिन पर दिन बढ़ती जा रही हैं। उधर कोयला मंत्रालय ने भी जेपी के कोल ब्लॉकों में हो रही अनियमितता के खिलाफ नकेल कसनी शुरू कर दी है। जेपी एसोसिएट को आवंटित कोल ब्लॉकों को विकसित नहीं किए जाने पर कोयला मंत्रालय ने नोटिस थमाया है। वहीं केंद्र सरकार के पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा भी जेपी ग्रुप के खिलाफ पर्यावरण नियमों का पालन नहीं किए जाने के खिलाफ भी कार्रवाई करने की तैयारी की जा रही है। जबकि जेपी की आठ खदानों को रीवा जिला खनिज कार्यालय द्वारा नोटिस जारी किए गए हैं। विभाग ने चेतावनी दी है कि कंपनी द्वारा अनुबंध की शर्तो का पालन नहीं किए जाने पर कार्रवाई की जा सकती है। जिसमें रायल्टी का भुगतान नहीं होने पर खनन संक्रियाएं प्रतिबंधित किया जाना भी शामिल है।
गौरतलब है कि अफसरों की लापरवाही के कारण प्रदेश के खनिज विभाग को पिछले पांच वर्ष में अरबों रूपए से अधिक का झटका लगा है। यह खुलासा नियंत्रक महालेखापरीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया है कि खनिज साधन विभाग द्वारा रॉयल्टी निर्धारण के मामलों की जांच और रॉयल्टी की कम वसूली, अनिवार्य भाटक व ब्याज के अनारोपण के कई मामले प्रकाश में आए हैं। ज्ञातव्य है कि जेपी गु्रप और एसीसी सीमेंट पर 150 करोड़ से अधिक खनिज राजस्व बकाया है। इसके बाद भी मप्र सरकार के उपक्रम राज्य खनिज विकास निगम ने 50 हजार करोड़ के कोयला भंडार वाले सात कोल ब्लॉकों का ज्वाइंट वेंचर एग्रीमेंट कर लिया था। इस खुलासे के बाद सरकार से लेकर कार्पोरेट हलकों तक हड़कंप मचा हुआ है। कोल ब्लॉक और लाइमस्टोन के प्रास्पेक्टिंग लाइसेंस मिलने के बाद जेपी एसोसिएट ने तो नियमित रायल्टी का भुगतान भी देना बंद कर दिया है।
कर्ज ने बढ़ाया मर्ज
इंफ्रा, सीमेंट, रियल एस्टेट,पावर कोराबार में तेजी से उभरते जेपी ग्रुप ने पिछले 6 साल में सीमेंट और पावर कोराबार में तगड़ा क्षमता विस्तार किया। लेकिन ये क्षमता विस्तार कर्ज के जरिए हुआ है। जिससें ग्रुप भारी भरकम कर्ज में डूबा है और कर्ज कम करने के लिए इसने 2013 में अपना गुजरात का एक सीमेंट प्लांट 3800 करोड़ रुपए में अल्ट्राटेक सीमेंट को बेच दिया है। इससे कंपनी हो हल्की राहत मिली है। जानकारी के अनुसार,पूरे जेपी ग्रुप पर 60,000 करोड़ रुपए का कर्ज है। जेपी ऐसोसिएट के अधिकारियों के अनुसार,कंपनी ने पिछले 6 साल में सीमेंट क्षमता 90 लाख टन से बढ़ाकर 3.35 करोड़ टन कर ली है। पिछले 6 साल में करचम, वांगटू, वास्पा, जैसे बड़े प्रोजेक्टस जोड़े हैं। इनके विस्तार के कारण कंपनी पर कर्ज बढ़ता गया। आज जेपी ग्रुप के सीमेंट कारोबार पर 16,500 करोड़ रुपए का कर्ज, जयप्रकाश पावर पर 23,000 करोड़ रुपए का कर्ज और जेपी इंफ्रा पर 8000 करोड़ रुपए का कर्ज है। वित्त वर्ष 2013 के अंत तक ग्रुप पर 60,283 करोड़ रुपए का कंसोलिडेटेड कर्ज है। वित्त वर्ष 2013 के अंत तक 25,000 करोड़ रुपए का स्टैंडअलोन कर्ज है। हालांकि अल्ट्राटेक सीमेंट के साथ हुए सौदे से कंसोलिडेटेड कर्ज में 6.3 फीसदी और स्टैंडअलोन कर्ज में 15 फीसदी की कमी आई है।
केआर चोकसी सिक्योरिटीज के देवेन चोकसी का कहना है कि जेपी ग्रुप ने कई सेक्टर में कारोबार फैला लिया है। लेकिन इसकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। जेपी ग्रुप का फोकस किसी एक दिशा में नहीं था जिसका नुकसान जेपी एसोसिएट्स, जेपी पावर, जेपी इंफ्रा को हुआ है। जेपी ग्रुप को अपना कर्ज कम करने के लिए कुछ और ऐसेट बेचने होंगे। शायद कंपनी जेपी पावर का प्लांट बेच सकती है। वित्त वर्ष 2014 में जेपी ग्रुप ने कर्ज 15,000 करोड़ रुपए कम करने का लक्ष्य रखा है जिसे हासिल करने के लिए कंपनी को कुछ और ऐसेट बेचने ही होंगे। उनका कहना है कि सीमेंट सेक्टर में अभी लगभग 2 साल तक मंदी की हालत बनी रहेगी जिसके चलते सीमेंट कंपनियों की दिक्कतें बनी रहेंगी। खासकर दक्षिण क्षेत्र में ज्यादा सप्लाई के चलते सीमेंट कंपनियां कम यूटिलाइजेशन पर कारोबार कर रही हैं। इसी के चलते जेपी एसोसिएट्स को अपना गुजरात प्लांट कम वैल्यूएशन पर बेचना पड़ा।
आठ खदानों को नोटिस
उधर, कर्ज में डूबे जेपी ग्रुप पर शिंकजा कसते हुए रीवा जिला खनिज कार्यालय द्वारा जेपी एसोसिएट की आठ खदानों नोटिस जारी किया गया है। खनिज कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार जेपी एसोसिएट पर रीवा जिले में करीब 114 करोड़ का खनिज राजस्व बकाया है। जिसमें 22 करोड़ रूपए की नियमित रायल्टी भी शामिल है। जिसका भुगतान पिछले दस माह से नहीं किया जा रहा है। जबकि 80 करोड़ के बकाया राजस्व पर हाईकोर्ट और कमिश्नर कोर्ट का स्टे है। नियमित रायल्टी का भुगतान नहीं होने से विभाग वसूली के लक्ष्य में फिसड्डी हो गया है लिहाजा जेपी एसोसिएट की आठ खदानों को नोटिस जारी कर अनुबंध के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए जवाब मांगा गया है। साथ ही चेतावनी दी गई है कि वह रायल्टी चुकाए या फिर खदानें बंद करे। वरना खदानों की लीज निरस्त किए जाने की प्रक्रिया आरंभ की जाएगी।
रीवा जिला के खनिज अधिकारी आरएन मिश्रा कहते हैं कि जेपी एसोसिएट को रीवा हुजूर तहसील में आवंटित चूना पत्थर की आठ खदानो को नोटिस जारी किया गया है। कंपनी को अनुबंध का उल्लंघन करने पर चेतावनी देते हुए जवाब मांगा गया है। रायल्टी का भुगतान नहीं किए जाने पर अग्रिम कार्यवाई के लिए शासन को लिखा जाएगा। खनिज विभाग के नोटिस के बाद जेपी ग्रुप पर संकट गहरा गया है। रीवा जिले में उसकी 12 खदानों से चूना पत्थर का उत्पादन होता है। जिससे दो सीमेंट प्लांट संचालित किए जा रहे हैं। इनमें से आठ खदानें बंद कराए जाने से सीमेंट का उत्पादन प्रभावित हो सकता है। कंपनी की मुश्किलें भारत सरकार के कोयला मंत्रालय ने भी बढ़ा रखी हैं। इंटर मिनिस्ट्रियल ग्रुप(आईएमजी) की अनुशंसा पर उसे आवंटित मंडला नार्थ कोल ब्लॉक के साथ ही मप्र खनिज विकास निगम के ज्वाइंट वेंचर वाले तीन और कोल ब्लॉक्स अमिलिया नार्थ, डोंगरी ताल-2 एवं मंडला साउथ को विकसित नहीं किए जाने पर कारण बताओ नोटिस जारी किया जा चुका है।
7 माह से रॉयल्टी नहीं दे रहा जेपी
उधर 50 हजार करोड़ रूपए के कोल ब्लॉक का तोहफा पाने वाली बकायादार कंपनियों जेपी एसोसिएट और एसीसी सीमेंट की खनिज विभाग ने रिपोर्ट तलब की है। दोनों कंपनियों पर सरकार ने रीवा और कटनी के खनिज अधिकारियों को बकाया राशि का ब्योरा देने के निर्देश दिए हैं। खनिज विभाग की रिपोर्ट बताती है कि जेपी द्वारा जुलाई 2013 से अब तक रॉयल्टी के रूप में एक रूपए का भी भुगतान नहीं किया गया है। लिहाजा उस पर नियमित रॉयल्टी की राशि बढ़कर साढे 22 करोड़ रूपए से ऊपर की हो गई है। इससे पहले जून 2013 में भी मासिक रॉयल्टी की बकाया राशि 3 करोड़ 59 लाख रूपए में से मात्र 74 लाख रूपए का भुगतान किया था। जेपी ग्रुप को लूट की खुली छूट करीब नौ माह से रायल्टी का भुगतान नहीं कर रहे जेपी एसोसिएट पर बकाया राशि बढ़कर 115 करोड़ रूपए से अधिक हो गई है। यह आंकडे तो केवल रीवा जिले के हैं। सतना और सीधी जिले में भी उस पर 15 करोड़ से अधिक की रकम बकाया है। तीन कोल ब्लॉक तो उसके कब्जे में हैं हीं साथ ही बिना रायल्टी का भुगतान किए कंपनी द्वारा व्यापक पैमाने पर रीवा, सतना और सीधी जिले में चूना पत्थर व अन्य खनिज का खनन कर चार सीमेंट फैक्ट्रियां संचालित कर रहा है। जिनमें हर माह अरबों रूपए की सीमेंट का उत्पादन हो रहा है। सरकार ने उसे लूट की खुली छूट दे रखी है।
बकाए के बावजुद लाइमस्टोन पैकेज भी
करोड़ों की बकायादार कंपनी जेपी एसोसिएट पर राज्य सरकार की एक और मेहरबानी सामने आई है। करीब 38 हजार करोड़ रूपए के मूल्य के कोल भंडार वाले तीन कोल ब्लॉकों का ज्वाइंट वेंचर एग्रीमेंट किए जाने के साथ ही 2500 हेक्टेयर का लाइमस्टोन पैकेज भी थमा दिया है। गौरतलब है कि जेपी एसोसिएट द्वारा रीवा, सीधी और सतना जिले मेे चार सीमेंट प्लांटों का संचालन किया जा रहा है। लेकिन कंपनी द्वारा रायल्टी सहित अन्य खनिज राजस्व का भुगतान रोक दिया है। जिससे बकाया राशि बढ़कर 124 करोड़ से ऊपर पहुंच गई है। इसके बाद भी मप्र सरकार के उपक्रम खनिज विकास निगम द्वारा करीब 380 मिलियन टन कोल भंडार वाले तीन कोल ब्लॉकों का पार्टनर बनाकर ज्वाइंट वेंचर एग्रीमेंट कर लिया। निगम की ही तर्ज पर राज्य सरकार के खनिज विभाग ने भी जेपी एसोसिएट पर खासी मेहरबानी दिखाई और सतना जिले में 2500 हेक्टेयर से भी अधिक लाइमस्टोन के भंडार का प्रास्पेक्टिंग लाइसेंस जारी कर दिया। सतना जिले के रामनगर तहसील की भूमियों के जारी किए गए लाइसेंस के बाद जेपी एसोसिएट ने कथित तौर पर प्रास्पेक्टिंग का काम पूरा कर लिया और अब उसके द्वारा जमीन अधिग्रहण शुरू करते हुए माइनिंग लीज की प्रक्रिया शुरू कर दी है। कोल ब्लॉक के एग्रीमेंट के लिए जेपी एसोसिएट के एमडी सनी गौड़ द्वारा बकाया राशि जमा करने के लिए जो अंडरटेकिंग दी गई थी। उसमें लाइमस्टोन के प्रास्पेक्टिंग लाइसेस के लिए भी आग्रह किया गया था। कंपनी ने वादा किया था कि कोल ब्लॉक सहित लाइमस्टोन की पीएल मिलने के बाद जुलाई 2013 तक सभी खनिज राजस्व बकाया पटा दिया जाएगा। लेकिन कोल ब्लॉक का ज्वाइंट वेंचर एग्रीमेंट होने और लाइमस्टोन पीएल मिलने के बाद हाईकोर्ट की शरण ली और बकाया पर स्टे ले लिया।
नियमों को किया दरकिनार
खनिज नियमों के मुताबिक जिस किसी फर्म पर खनिज राजस्व बकाया हो तो उसे पीएल या एमएल ग्रांट नहीं की जा सकती। इससे पहले कंपनी को एनओसी देनी होती है। लेकिन इस नियम को शिथिल करने के लिए अंडरटेकिंग ले ली गई और पीएल आदेश जारी कर दिए गए। जबकि सतना जिले में कंपनी पर 10 करोड़ से अधिक का राजस्व बकाया है। जिला खनिज कार्यालय सतना के अनुसार जेपी एसोसिएट द्वारा जिले के रामनगर तहसील के दो दर्जन से अधिक गांवों के करीब 4200 हेक्टेयर भूमि पर प्रास्पेक्टिंग लाइसेंस जारी करने के लिए आवेदन लगाया था। इन भूमियो के नीचे चूना पत्थर का बड़ा भंडार दबा हुआ है। बाद में अल्ट्राटेक कंपनी और जेपी एसोसिएट के बीच हुए बंटवारे में जेपी ग्रुप को 2500 हेक्टेयर से अधिक का पीएल आदेश जारी किया गया। इस तरह जेपी एसोसिएट का रामनगर तहसील के सगौनी, मचमासी सहित दो दर्जन गांवों के लाइमस्टोन पर कब्जा हो गया है।
बिजली विभाग का 550 करोड़ दबाया
सरकार की मेहरबानियों के कारण जेपी एसोसिएट ने खनिज विभाग के सवा सौ करोड़ रूपए नहीं पटाने के साथ मप्र विद्युत वितरण कंपनी के भी 550 करोड़ रूपए भी दबा लिए हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया, लेकिन बिजली का बकाया बिल नहीं चुकाया। इन सब के बावजुद मप्र खनिज विकास निगम ने पॉवर प्लांट लगाने के नाम पर तीन कोल ब्लॉकों का ज्वाइंट वेंचर एग्रीमेंट कर लिया। सरकार ने इससे एक कदम आगे जाते हुए जेपी गु्रप से पॉवर परचेज एग्रीमेंट करने की मंजूरी भी दे दी। ना तो मप्र विद्युत मंडल ने इस पर आपत्ति जताई और ना ही सरकार ने अपने बकाया की चिंता की।
गौरतलब है कि जेपी एसोसिएट द्वारा नौबस्ता और बेला में दो सीमेंट प्लांटों का संचालन किया जा रहा है, जिनके लिए कंपनी द्वारा मप्र विद्युत मंडल से 36 मेगावाट विद्युत आपूर्ति का अनुबंध किया गया था। लेकिन जब बिल बढऩे लगा तो उसने मंडल से लोड घटाकर 18 मेगावाट किए जाने का अनुरोध किया। तब तक अस्तित्व में आ चुकी मप्र विद्युत वितरण कंपनी ने पिछला बकाया चुकाए बिना ऐसा करने से इनकार कर दिया।
इसी बीच जेपी एसोसिएट ने कैप्टिव पॉवर प्लांट स्थापित कर बिजली कंपनी के बकाया 550 करोड़ से अधिक से पल्ला झाड़ लिया, क्योंकि उसे बिजली कंपनी से बिजली खरीदने की जरूरत नहीं बची थी। अनुबंध के उल्लंघन और बकाया राशि जमा कराने के लिए बिजली कंपनी ने हाई कोर्ट में याचिका लगाई। इसके विरूद्ध जेपी एसोसिएट ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बिजली कंपनी ने जेपी एसोसिएट को दिए गए सभी कनेक्शन काट दिए लेकिन उसके 550 करोड़ अब तक जमा नहीं हुए। इस मामले में जेपी एसोसिएट का कहना है कि उसके लिखित आग्रह के बाद भी लोड नहीं घटाया गया और कैप्टिव पॉवर प्लांट लगाने के बाद जब उसे बिजली की जरूरत नहीं थी तब भी बिजली कंपनी ने बिल लगाया। तो मप्र विद्युत वितरण कंपनी रीवा के अधीक्षण यंत्री एआर वर्मा का तर्क है कि कनेक्शन कटवाने के लिए पहले जेपी एसोसिएट को पुराना बकाया चुकाना चाहिए था।

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