vinod upadhyay

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शुक्रवार, 7 मार्च 2014

मास्टर से कालेधन के कुबेर बन बैठे त्रिवेदी बंधु

लोकायुक्त के छापे में सामने आई करोड़ों की कमाई भोपाल। कुछ साल पहले तक कॉलेजों में पढ़ाने वाले पंकज और पीयूष त्रिवेदी देखते ही देखते मप्र की शिक्षण व्यवस्था के नीति निर्धारक बन बैठे। इन दोनों भाईयों के रसूख का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है की बिना उचित योग्यता के ही पंकज त्रिवेदी व्यावसायिक परीक्षा मंडल के सर्वेसर्वा बन बैठे,वहीं उनके भाई पीयूष त्रिवेदी राजीव गांधी प्रद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति बन बैठे। दोनों भाईयों ने अपने-अपने संस्थान को भ्रष्टाचारियों का चारागाह बना दिया। एसटीएफ ने व्यापमं में हुए फर्जीवाड़े का खुलाशा करके पंकज त्रिवेदी की हकीकत सामने ला दिया है। वहीं अब लोकायुक्त के छापे के बाद पीयूष त्रिवेदी की किताब भी खुलेगी,क्योंकि अब आयकर विभाग ने भी तहकीकात में जुटा हुआ है। लेक्चरर से करोड़पति तक का सफर पंकज त्रिवेदी ऐसे अफसर निकले हैं, जो दूसरों की तुलना में पैसे कमाने में सबसे आगे थे। लोकायुक्त की टीम ने जब जांच की, तो यह बात सामने आई कि त्रिवेदी का सफर आट्र्स एंड कॉमर्स कॉलेज में बतौर लेक्चरर के रूप में हुआ था। पंकज जो कभी शिक्षक थे बच्चों को नैतिक गुण सिखाया करते थे आज अनैतिकता की सारी सीमा लांघी। राजनीतिक पहुंच और तिकड़म से व्यापमं के डायरेक्टर बने। नियमों को बदलकर इनको परीक्षा नियंत्रक के साथ-साथ डायरेक्टर भी बनाया गया और करोड़ों में खेलने लगे। अपने कार्यकाल के दौरान 60 से अधिक प्रवेश एवं भर्ती परीक्षाओं में जमकर घोटाला किया। उनके खिलाफ नियुक्तियों और पीएमटी घोटाले के मामले में छह प्रकरण भी दर्ज हुए हैं। आज वे जेल में हैं और बाहर रोजाना उनकी करतूतों का एक न एक खुलासा हो रहा है। अभी तक एसटीएफ ने पंकज त्रिवेदी की कमाई का खलासा किया था उससे सब हैरान थे कि इन्होंने इतनी कमाई किस तरह कर ली। अब लोकायुक्त के छापे में कई खुलासे हुए हैं और कई सामने आने वाले हैं। भोपाल में लोकायुक्त पुलिस ने करीब चौदह घंटे कार्रवाई की और फिर पंकज के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया। छापे के दौरान पंकज की करोड़ों की काली कमाई का पता चला। सूत्रों के मुताबिक पंकज ने अपनी कमाई का काला धन एक्रोपॉलिस इंस्टीटयूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडी एंड रिसर्च कॉलेज में लगा रखा है। जब्त दस्तावेजों में पंकज, पिता स्व. नटवर त्रिवेदी और भाभी वंदना त्रिवेदी के नाम पार्टनर के रूप में दर्ज हैं। पीयूष की पत्नी वंदना त्रिवेदी इस कॉलेज में फेकल्टी हैं। इससे पहले एसटीएफ भी त्रिवेदी के घर छापा मार चुकी है, पर तब वहां से कॉलेज के संबंध में कोई दस्तावेज नहीं मिला था। डॉ. पंकज त्रिवेदी ने 28 साल पहले आर्ट एंड कॉमर्स कॉलेज में बतौर लेक्चरर सरकारी नौकरी की शुरूआत की थी। यहां से व्यापमं के कंट्रोलर के पद तक का सफर तय किया। अब तक की नौकरी में मिला वेतन 80 लाख रूपए के करीब है। छापे में एक्रोपॉलिस कॉलेज राऊखेड़ी इंदौर बाइपास में भागीदारी संबंधी दस्तावेज मिले हैं। इनके अलावा 157 विनय नगर इंदौर का दो मंजिला आलीशान मकान विनय नगर में ही एक अन्य मकान के कागजात मिले। ग्राम टोडी तहसील सांवेर में 5.375 हेक्टेयर कृषि भूमि। प्रकृति कॉलोनी, बिचौली हप्सी में 2800 वर्गफीट का प्लॉटे एक फॉक्सवेगन कार, एक दोपहिया वाहन, बैंक खातों में जमा 2.5 लाख रूपए, घर पर 2.5 लाख के जेवर, पंजाब नेशनल बैंक के लॉकर में भी 2.5 लाख के आभूषण, भोपाल के बैंक लॉकर में 50 हजार के जेवरे लोकायुक्त पुलिस की दूसरी टीम ने चार इमली स्थित पंकज के उपांत कॉलोनी के डी-17 स्थित घर पर दबिश दी। मकान पर ताला लगा था, जिसके बारे में बताया गया कि चाबी पंकज की पत्नी अर्चना त्रिवेदी के पास है। अर्चना इंदौर में रह रही है। एक टीम अर्चना को लेकर दोपहर बाद इंदौर से रवाना हुई। भोपाल पहुंचते ही टीम अर्चना को त्रिलंगा के पास स्थित बैंक ऑफ बड़ौदा लेकर पहुंची। यहां पुलिस ने उनका लॉकर खुलवाया। लोकायुक्त पुलिस को लॉकर से दो कटोरी-गिलास, सोने के बंूदे, पेंडल, कंगन मिला है। डीएसपी लोकायुक्त एसएल कटारिया ने बताया इसकी कीमत करीब 45 हजार रूपए है। इसके बाद टीम ने उपांत कॉलोनी स्थित घर को खंगाला। यहां से 12 पॉलिसियां, पांच बैकों पीएनबी, एसबीआई, बॉब समेत अन्य के एटीएम कार्ड और दो कार व एक मोपेड के दस्तावेज मिले। करीब पंद्रह लाख रूपए की संपत्ति यहां से पता चली है। फाइलों में फर्जीवाड़े की कहानी लोकायुक्त के छापे में पंकज और पीयूष त्रिवेदी के ठिकानों से कई फाइलें मिली हैं जिनमें व्यापमं फर्जीवाड़े की कहानियां छिपी हैं। प्रारंभिक जांच में यह तथ्य सामने आया है कि मेडिकल घोटाले के लिए गड़बडिय़ों दो स्तरों पर हुईं। एक तो व्यापमं के स्तर पर और दूसरी पीएमटी के परीक्षा नियम बनाने के लिए जिम्मेदार मध्यप्रदेश के चिकित्सा शिक्षा विभाग के स्तर परे नियम यह था कि निजी मेडिकल कॉलेजों में 50 प्रतिशत सीटें राज्य सरकार के कोटे से भरी जाएंगी, लेकिन निजी कॉलेजों को सारी सीटें चाहिए थी, इसके लिए उन्होंने डॉ. जगदीश सागर, संजीव शिल्पकार, सुधफर रॉय और आईएएस अधिकारी के रिश्तेदार तरंग शर्मा जैसे दलालों का हाथ थामा और दलाल अपने मनचाहे छात्रों को पास करवाने के लिए यूपी, बिहार, राजस्थान से जिन 'स्कोररÓ को लेकर आते थे, उनका उपयोग करना शुरू किया। ये 'स्कोररÓ जिन मुन्ना भाइयों को नकल करवाते थे वे तो सरकारी कॉलेजों में प्रवेश ले लेते थे और स्कोरर अच्छे नंबर आने के बावजूद सिर्फ और सिर्फ निजी कॉलेजों में सीटें ब्लाक कर लेते थे तथा प्रवेश की अंतिम तारीख को अपना नाम वापस ले लेते थे। खाली हुई सीटों पर निजी मेडिकल कॉलेज संचालक तगड़ा डोनेशन लेकर मनचाहे छात्रों को प्रवेश दे देते थे पर यहां समस्या यह खड़ी हुई कि कई स्कोरर ऐसे थे जिनकी उम्र 25 वर्ष से ज्यादा थी। देशभर की सारी परीक्षाओं में मेडिकल के लिए अधिकतम प्रवेश सीमा 25 वर्ष है। यहां पर काम आए चिकित्सा शिक्षा विभाग के जिम्मेदार नेता, अधिकारी जिन्होंने पीएमटी के जरिए प्रवेश के लिए न्यूनतम उम्र सीमा 17 वर्ष तो रखी लेकिन अधिकतम उम्र सीमा 25 वर्ष करने का नियम नहीं बनने दिया। नतीजा यह हुआ कि निजी मेडिकल कॉलेज सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय 50 प्रतिशत सीटों की सीमा के बजाए वास्तविक रूप से 80 प्रतिशत सीटों तक पर कब्जा करने लगे। 54 परीक्षाएं संदेह के घेरे में व्यावसायिक परीक्षा मंडल के पूर्व परीक्षा नियंत्रक डॉ. पंकज त्रिवेदी के कार्यकाल में हुई करीब 79 चयन व भर्ती परीक्षाओं में से 54 संदेह के घेरे में आ गई हैं। इनमें ज्यादातर अलग-अलग विभागों के लिए हुई भर्ती परीक्षाएं शामिल हैं। पीएमटी के साथ ही पांच अन्य परीक्षाओं में गड़बड़ी का खुलासा करने के बाद स्पेशल टास्क फोर्स बाकी परीक्षाओं की भी जांच शुरू करने जा रही है। जानकारी के अनुसार प्री-पीजी, फूड इंस्पेक्टर, दुग्ध संघ, सूबेदार-उप निरीक्षक, प्लाटून कमांडर व पुलिस आरक्षक भर्ती परीक्षा के अभी तक मिले 143 आरोपियों के अलावा एसटीएफ ने इन्हीं परीक्षाओं में शामिल बाकी परीक्षार्थियों की भी ओएमआर शीट जब्त करने की तैयारी कर ली है। जांच में एसटीएफ को गलत तरीके से परीक्षा पास करने वाले और भी परीक्षार्थियों के सामने आने की उम्मीद है। इन पांच परीक्षाओं में शामिल कुल परीक्षार्थियों की संख्या 4 लाख 91 हजार 323 है। अभी तक दस परीक्षाएं संदेह के घेरे में आ चुकी हैं। जिनमें से सात का खुलासा एसटीएफ ने कर दिया है। बाकी तीन परीक्षाओं के रिकॉर्ड व्यापमं से मांगे गए हैं। एआईजी एसटीएफ आशीष खरे के अनुसार रिमांड पर चल रहे आरोपियों से पूछताछ में अभी और भी परीक्षाओं में गड़बड़ी की बात सामने आ सकती है। त्रिवेदी के कार्यकाल में हुईं महत्वपूर्ण भर्ती परीक्षाएं वनरक्षक भर्ती परीक्षा, एमपी स्टेट टूरिज्म डायरेक्ट बैकलाग, पुलिस कांस्टेबल, जेल डिपार्टमेंट भर्ती परीक्षा, सब इंजीनियर (सिविल) भर्ती परीक्षा, स्टॉफ नर्स भर्ती परीक्षा, पैरामेडिकल स्टॉफ के लिए आयुष डिपार्टमेंट भर्ती परीक्षा, कंबाइंड असिस्टेंट ग्रेड तीन, एग्रीकल्चर डेवलपमेंट ऑफिसर, खेल विभाग असिस्टेंट ग्रेड तीन भर्ती परीक्षा, फॉरेस्ट गार्ड भर्ती परीक्षा, कंबाइंड सब इंजीनियर भर्ती परीक्षा, आबकारी आरक्षक भर्ती परीक्षा। ट्रांसपोर्ट भर्ती परीक्षा, मत्स्य विभाग के लिए भर्ती परीक्षा, पब्लिक वर्क डिपार्टमेंट के लिए भर्ती परीक्षा तथा पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के लिए भर्ती परीक्षा। व्यापमं द्वारा आयोजित पीएमटी परीक्षा में सनसनीखेज फर्जीवाड़े के खुलासे के बाद आयकर विभाग ने उन अभिभावकों पर शिकंजा कसना शुरु कर दिया है, जिन्होंने अपने बेटे-बेटियों के दाखिले के लिए 75 से 80 लाख रुपए बतौर घूस खर्च किए थे। साथ ही व्यापमं के अधिकारियों की संपत्ति की भी पड़ताल की जा रही है। पीयूष त्रिवेदी की शैक्षणिक योग्यता से लेकर कार्यप्रणाली तक पर सवाल राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर लंबे समय से पंकज त्रिवेदी के भाई पीयूष त्रिवेदी विराजमान हैं। इनकी शैक्षणिक योग्यता से लेकर कार्यप्रणाली तक पर सवाल उठे पर जब सत्ता और सत्ता के दलालों का वरदहस्त हो तो फिर क्या। बात 1978 की है जब लेफ्टिनेंट जनरल (अवकाश प्राप्त) केटी सतारावला को जबलपुर विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्ति किया गया था तब उन्होंने कहा था कि मध्यप्रदेश के किसी विश्वविद्यालय में कुलपति बनने से बेहतर है किसी होटल का मैनेजर बनना। सतारावला ने यह बात किस नजरिए से कही थी यह तो वही जाने लेकिन मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थित राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति पीयूष त्रिवेदी एवं वहां के अन्य प्रशासनिक पदों पर आसिन लोगों की योग्यता कुछ यही दर्शा रही है। विश्वविद्यालय के कुलपति, कुलसचिव, परीक्षा नियंत्रक, अधिष्ठाता छात्रा कल्याण, उप कुलसचिव शैक्षणिक और उपकुलसचिव प्रशासन एवं अन्य पदाधिकारी अपात्र होते हुए भी इन पदों पर आसीन है। ऐसे में यहां सरकारी कायदे- कानून को ताक पर रखकर शैक्षणिक गतिविधियों की जगह मनमानी की पाठशाला चलाई जा रही है। कुलपति प्रो.पीयूष त्रिवेदी राजभवन और राज्य सरकार से बिना अनुमति लिए ही पदों का सृजन कर उन पर अपने चहेतों को बिठा रहे हैं। ऐसा भी नहीं की विश्वविद्यालय में व्याप्त इस भर्राशाही की खबर राजभवन और तकनीकी शिक्षा विभाग को नहीं है लेकिन शासन मौन तो देखे कौन की तर्ज पर यहां सब कुछ चल रहा है। उल्लेखनीय है कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अपने कार्यकाल में सूचना एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सशक्त भारत का सपना देखा था। पूर्व प्रधानमंत्री ने जो सपना देखा था उसे साकार करते हुए प्रदेश में तकनीकी शिक्षा युक्त मानव संसाधन की बदलती आवश्यकताओं को देखते हुए राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की स्थापना मध्यप्रदेश विधानसभा एक्ट 13 के तहत 1998 में भोपाल में की गई। विश्वविद्यालय की स्थापना के पीछे मुख्य उद्देश्य था कि शिक्षा एवं शिक्षा संसाधन की गुणवत्ता में वृद्धि हो, कंसलटेंसी, सतत शिक्षा, शोध एवं विकास गतिविधियों के अनुकूल वातावरण तैयार किया जाए,इंडस्ट्री के साथ परस्पर लाभ हेतु मजबूत संबंध बने, छात्रों में स्वरोजगार की भावना का विकास किया जाए और भूतपूर्व छात्रों में सतत् संपर्क एवं उनके प्रायोजित विकास प्रोग्राम बनाया जाए लेकिन विश्वविद्यालय में छात्रों का भविष्य तय करने वाले ही जब अपात्र हैं तो राजीव गांधी का सपना कैसे सकार होगा यह शोध का विषय है। बात करते हैं विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.पीयूष त्रिवेदी की। विश्वविद्यालय अधिनियम के अनुसार कुलपति की नियुक्ति कुलाधिपति (गवर्नर) द्वारा राज्य सरकार के बिना हस्तक्षेप के की जाती है। धारा 12 (1) विश्वविद्यालय की उपधारा (2) या (6) के अंतर्गत गठित समिति द्वारा तैयार तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में विख्यात कम से कम तीन व्यक्तियों के पैनल में से किसी एक व्यक्ति की नियुक्ति कुलपति के रूप में कुुलाधिपति द्वारा की जाती है लेकिन तात्कालिक गवर्नर बलराम जाखड़ से अपने नजदीकी संबंधों और गवर्नर हाउस के कुछ अधिकारियों की मेहरबानी से प्रोफेसर त्रिवेदी कुलपति बनने में सफल रहे। अधिनियम के अनुसार विश्वविद्यालय का कुलपति बनने के लिए प्रौद्योगिकी या तकनीकी क्षेत्र का प्रोफेसर होना चाहिए जबकि प्रो. त्रिवेदी फार्मेसी के प्राध्यापक है। अत: नियमों के तहत देखा जाए तो इनकी नियुक्ति पूर्णत: गलत है। नियुक्तियों में फर्जीवाड़ा राजीव गांधी प्रोद्यौगिकी विश्वविद्यालय के प्रशासनिक ढांचे को देखा जाए तो हम पात हैं कि यह विश्वविद्यालय प्रभारी अधिकारियों के हवाले है। आरजीपीव्ही में कुल सचिव- रजिस्ट्रार, अधिष्ठाता छात्र कल्याण, उप कुलसचिव शैक्षणिक, उप कुलसचिव प्रशासनिक सभी अधिकारी प्रभारी हैं। कोई लगभग चार वर्ष से तो कोई दस वर्षों से इन पदों पर प्रभारी के रूप में नियुक्त है। आरजीपीव्ही एक तकनीकी विश्वविद्यालय है किंतु कुलपति सहित इसके शीर्ष पदों कुलसचिव, परीक्षा नियंत्रक, अधिष्ठाता छात्र कल्याण आदि पदों पर गैर तकनीकी अधिकारी पदस्थ हैं। जबकि विश्वविद्यालय अधिनियम में भी तकनीकी योग्यता प्राप्त अधिकारियों की नियुक्ति का प्रावधान है। कुलपति पीयूष त्रिवेदी की पत्नी श्रीमती वंदना त्रिवेदी टीच फार इंडिया सोसाइटी की सदस्य सचिव हैं। जिसके 5 विभिन्न कॉलेज आरजीपीव्ही के अंतर्गत हैं। लोकायुक्त के छापे के बाद अब पीयूष त्रिवेदी को हटाने की मांग होने लगी है। इधर, पीयूष त्रिवेदी के निवास पर छापा पडऩे की सूचना से राजभवन भी सक्रिय रहा। राजभवन के अधिकरी विभिन्न माध्यम से आ रही सूचनाओं को एकत्रित करते रहे। राज्यपाल राम नरेश यादव को भी समय-समय पर अपडेट देते रहे। लोकायुक्त बिल में बदलाव करें शिवराज: नावलेकर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भ्रष्टाचार पर जफरो टालेरेंस की बात करते आए हैं। लेकिन राज्य के लोकायुक्त पी पी नावलेकर का कहना है कि लोकायुक्तों के पास भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के भरपूर अधिकार नहीं हैं। जिससे मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार पर पूरी तरह से लगाम नहीं लग सकती है। उन्होंने कहा कि शिवराज को केंद्र सरकार के लोकपाल बिल की तरह राज्य के लोकायुक्त कानून में बदलाव लाने चाहिए। लोकायुक्त पी पी नावलेकर ने कहा कि मध्य प्रदेश का एक्ट स्टेट के हिसाब से काफी पावरफूल है क्योंकि हमने उस एक्ट से चार साल काम करके दिखाया है। लेकिन जो कांग्रेस सरकार का लोकपाल बिल आया है, उसका अध्ययन करने के बाद हमने पाया कि लोकायुक्त को कुछ पावर दी जा सकती हैं। अगर लोकायुक्त को वो पावर दी जाती हैं तो भ्रष्टाचार निवारण में लोकायुक्त ज्यादा कारगर होगा। पीपी नावलेकर ने कहा कि एमपी के लोकायुक्त एक्ट में अभी एमएलए, राज्यसभा सदस्य शामिल नहीं है। जबकि लोकपाल में एमएलए, राज्यसभा सदस्य को शामिल किया गया हैं। जिससे लोकपाल भ्रष्टाचार संबंधी कोई शिकायत मिलने पर उनकी जांच कर सकेगा। वैसे ही एमपी के लोकायुकत एक्ट में एमएलए को शामिल होना चाहिए क्योंकि सरकार विधायकों को लोगों के हित में कार्य करने के लिए फंड देती है।

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