vinod upadhyay

vinod upadhyay

मंगलवार, 1 अप्रैल 2014

किसानों का 12,0000,00,000 हड़पा बीमा कंपनियों ने

प्रदेश के 9,584 गांवों की 10 हजार करोड़ रूपए की फसल तबाह
किसानों को राहत पहुंचाने की बजाय राजनीति में जुटी सरकार भोपाल। प्रदेश में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से 49 जिलों के 9,584 गांवों की करीब 10 हजार करोड़ रूपए की फसल तबाह हो गई है। तबाह हुए किसानों को मरहम लगाने के लिए मु यमंत्री शिवराज सिंह चौहान,उनके मंत्रिमंडल के सदस्य और अधिकारी खेतों में पहुंच कर बर्बाद फसलों का जायजा ले रहे हैं। लेकिन फसलों के बीमा के नाम पर किसानों के 12 अरब रूपए दबाकर बैठी बीमा कंपनियां सुगबुगा भी नहीं रही हैं। जबकि ओलावृष्टि से तबाह किसान राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना से कोई उम्मीद लगाए बैठे हैं। योजना का हाल यह है कि पिछले 13 साल में 2 करोड़ 71 लाख किसानों से प्रीमियम के रूप में 11 अरब 91 करोड़ रूपए वसूले गए, लेकिन मौसम की मार पर फायदा मात्र 50 लाख किसानों को ही मिला और वह भी कौडिय़ों में। जिसका परिणाम यह हो रहा है कि पिछले सात साल में कर्ज के बोझ के तले प्रदेश में करीब आठ हजार किसान आत्महत्या कर चुके हैं। वहीं दूसरी तरफ किसानों को राहत पहुंचाने की जगह प्रदेश की भाजपा सरकार धरना,प्रदर्शन और बंद का आयोजन कर राजनीतिक गोंटियां सेकने में लगी हुई है।
किसानों के साथ छलावा है फसल बीमा योजना
करीब एक दशक पहले शुरू हुई राष्ट्रीय फसल बीमा योजना का सीधा-सीधा मकसद फसल नष्ट होने की स्थिति में क्षतिपूर्ति करना और किसान को मदद पहुंचाना है। अपने घोषित मकसद की वजह से जाहिर है कि यह योजना काफी लोकलुभावनी दिखाई देती है, लेकिन हकीकत इसके उलट है। बीमा कंपनियों ने बड़ी चालाकी से इसकी ऐसी शर्तें तय की हैं कि हर्जाने का दावा मान्य होने पर कंपनियों को बहुत मामूली भुगतान करना पड़े। मुआवजा भी तब मिलता है, जब तालुका या प्रखंड स्तर पर फसल बर्बाद हुई हो। इससे कम क्षेत्र में नुकसान होने पर भरपाई नहीं की जाती। इतना सब कुछ पक्ष में होने के बाद भी कंपनियों की नीयत किसानों को फायदा देने की नहीं है। फसल बीमा का अग्रिम प्रीमियम वसूल करने वाली बीमा कंपनियां जरूरत पडऩे पर दावा राशि का भुगतान करने में भी आनाकानी करती हैं। वर्ष 2012 में ऐसा ही एक उदाहरण होशंगाबाद जिले में देखने को मिला। फसल बीमा योजना के तहत होशंगाबाद जिले में 49 हजार 175 किसानों से बीमा प्रीमियम काटा गया। कुल बीमित राशि 222 करोड़ रुपए की थी, जिसके लिए दो निजी कंपनियों को दस फीसदी यानी 22 करोड़ 22 लाख रुपए का प्रीमियम मिला, लेकिन जब फसल खराब हो गई तो कंपनियों ने 222 करोड़ रुपए की राशि में से केवल 17 करोड़ 15 लाख रुपए के क्षतिपूर्ति भुगतान का हिसाब लगाया यानी प्रीमियम राशि में से भी 5 करोड़ 5 लाख रुपए बचा लिए गए। बीते रबी सीजन में भी बीमा कंपनियों ने गेहूं की फसल के लिए किसानों से 15 करोड़ 73 लाख रुपए का प्रीमियम लिया, लेकिन जब भुगतान की बारी आई तो उन्हें सिर्फ 85 लाख रुपए देकर चलता कर दिया। बीमा कंपनियों की इन धांधलियों का मामला हाल में मध्य प्रदेश विधानसभा में उठा। विधायकों ने सरकार से मांग की कि किसानों को बीमा कंपनियों से फसल बीमा योजना का फायदा दिलाया जाए।
किसान को मिलता है सिर्फ 50 पैसे मुआवजा
राज्य के 49 जिलों में हुई ओलावृष्टि से 10 हजार करोड़ रूपए की फसल बर्बाद हो गई है। हालांकि, किसानों के पास बीमा है, लेकिन इसका फायदा उन्हें नहीं मिलने वाला है। पिछले 13 साल का अनुभव बताता है कि बीमा होने के बावजूद किसानों के हाथ कुछ नहीं लगता है, जबकि कंपनियां हजारों करोड़ रुपए कमा रही हैं। बीमा योजना में भारी खामियां है, जिसका लाभ कंपनियां उठा रही हैं और लाखों की बर्बादी झेलने वाले किसान को भरपाई के नाम पर सिर्फ 50-50 पैसे मिल रहे हैं। जानकारी के अनुसार, 'फसल बीमाÓ करने वाली कंपनियों ने पिछले 13 साल में 2 करोड़ 71 लाख किसानों से प्रीमियम के रूप में 11 अरब 91 करोड़ रुपए कमाए हैं। गौरतलब है कि कंपनियां केंद्रीय सहकारी बैंकों और उनकी शाखाओं के माध्यम से बीमा करती हैं। किसान अगर फसल का बीमा नहीं करवाएं तो ये बैंक उन्हें कर्ज भी नहीं देते हैं। किसानों का कहना है कि सरकार की गलत योजना से बीमा कंपनियां सीधे तौर पर 65 प्रतिशत से ज्यादा पैसा अपनी जेब में डाल लेती हैं और किसानों को लाखों रुपए की फसल नष्ट होने के बदले में कभी 50 तो कभी 80 पैसे का मुआवजा देकर पल्ला झाड़ लेती हैं। किसानों के प्रतिनिधियों का कहना है कि बीमा कंपनियां फसल बर्बाद होने पर किसानों को प्रीमियम से भी कम राशि का क्लेम देती हैं। यानी वे किसानों से प्रीमियम का पैसा भी हजम कर जाती हैं और मुआवजे की राशि भी खा जाती हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2010 में फसल बीमा के तहत प्रदेश के किसानों ने खरीफ फसलों के लिए 11374.53 लाख स्पए प्रीमियम के तौर पर जमा कराया था,जबकि उन्हें लगभग आधी रकम लगभग 5416.28 लाख रूपए ही दावे के अंतर्गत मिल सके। इसी तरह वर्ष 2012-13 में खरीफ -के लिए 20781.50 लाख रूपए प्रीमिय जमा हुआ और फसल खराब होने पर मिले मात्र 7507.77 लाख रूपए। इस तरह बीमा कंपनिया किसानों को ठग रही हैं।
बीमा कंपनियों को कोई नुकसान नहीं
राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना के अंतर्गत एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी के पास किसानों का बीमा होता है। प्रदेश के जिला सहकारी बैंक और प्राथमिक सहकारी समितियों के जरिए जो किसान अल्पकालीन कृषि ऋण लेते है उनके ऋण की राशि को ही बीमा राशि मानते हुए उसका डेढ़ से साढ़े तीन प्रतिशत तक प्रीमियम राशि शुरूआत में ही काट ली जाती है। बीमा कंपनी केवल उस सीमा तक नुकसान की भरपाई करती है जितनी उन्हें प्रीमियम के रूप में प्राप्त हुई। दावे की राशि ज्यादा होने पर राज्य और केंद्र सरकार आधा-आधा वहन करती है। इस कारण बीमा कंपनी को इसमें कोई नुकसान नहीं होगा। बल्कि जिस वर्ष में ज्यादा प्रीमियम मिलता है और दावा भुगतान कम किया जाता है उस वर्ष उन्हें फायदा होता है।
ऐसे फंसाया जाता है पेंच
फसल बीमा योजना की सबसे बड़ी गड़बड़, योजना का स्वैच्छिक और अनिवार्य होना है। जो भी किसान बैंक या सहकारी संस्था से ऋण लेता है, बैंक उससे बिना पूछे अनिवार्य रूप से प्रीमियम काट लेता है। उसे कोई जानकारी, रसीद या पॉलिसी का कागज नहीं दिया जाता। जिसके चलते किसान को मालूम ही नहीं चलता कि उसकी फसल का बीमा हुआ भी है,या नहीं। मौसम आधारित फसल बीमा योजनाएं हमारे मुल्क में पश्चिम मुल्कों से आई हैं। और सब जानते हैं,कि इसमें विश्व बैंक की सिफारिशों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों का बहुत बड़ा दबाव था। पश्चिमी मुल्कों और हमारे यहां की परिस्थितियों में यदि अंतर करके देखें, तो इसमें बुनियादी फर्क है। यूरोपीय मुल्कों में जहां सैंकड़ो-हजारों एकड़ जमीन के किसान और कंपनियां बहुतायत में हैं, तो हमारे यहां छोटे-छोटे काश्तकार हैं। एक बात और। वहां के किसान संतुष्ट होकर स्वेच्छा से अपनी फसल का बीमा करवाते हैं,लेकिन हमारी सरकारों ने इस बीमे को जबर्दस्ती किसानों पर थोपा है। किसान चाहे न चाहे,उसे बीमा करवाना ही पड़ेगा। आलम यह है कि हमारे यहां सभी फसल बीमा योजनाएं सरकार के अनुदान और सहयोग से क्रियान्वित हो रही हैं। उसके बाद भी तस्वीर कुछ इस तरह से है, पैसा किसान व सरकार का, मुनाफा कंपनियों का और नुक्सान सिर्फ व सिर्फ किसान का। कुल मिलाकर, सरकारों के तमाम दावों और वादो के बाद भी फसल बीमा योजना किसानों के लिए सिर्फ एक छलावा साबित हुई है। लगातार हो रही किसानों की आत्महत्याएं, फसल बीमा योजना की नाकामी को उजागर करती हैं। बीमा कंपनी द्वारा किसानों की फसल का बीमा व्यक्तिगत होता है। लेकिन फसल के नुकसान होने पर मुआवजा सामूहिक मिलता है। प्राकृतिक आपदा के बाद 3 और 5 साल के औसत उत्पादन के आधार पर नुकसान का आकलन होता है। अधिकांश फसल कटाई प्रयोग किसान के सामने नहीं होते। मौसम खराबी का आंकलन करने के लिए हर जगह पर्याप्त लैब और उपकरणों का अभाव है। अऋणी किसानों को नहीं मिल पाता बीमा योजना का लाभ। विडंबना की बात यह है कि एक तरफ किसानों को यहां फसल बीमा का फायदा नहीं मिला,तो दूसरी तरफ बैंक अधिकारी किसानों को कर्ज वसूली के लिए परेशान कर रहे हैं। किसानों पर दंड व ब्याज लगाया जा रहा है।
सरकार की आर्थिक सेहत बिगड़ी
करीब एक लाख करोड़ के कर्ज में डूबे प्रदेश की वित्तीय स्थिति पहले ही गड़बड़ चल रही थी, अब असमय बारिश और ओलावृष्टि ने सरकार की आर्थिक सेहत पर सीधा असर डाला है। किसानों को दो लाख करोड़ की मदद की घोषणा को पूरा करने के लिए विभागों के बजट की कटौती की माथापच्ची शुरू हो गई है। जानकारी के अनुसार सरकार पीडब्ल्यूडी, पीएचई, पर्यटन, खेलकूद, उद्योग संवर्धन, पुलिस इत्यादि महकमे के बजट से कटौती कर किसानों को राहत राशि उपलब्ध कराने की तैयारी कर रही है। यदि यहां से भी व्यवस्था पूरी नहीं हुई तो विकास कार्यो को रोककर राशि जुटाई जाएगी। प्रदेश की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। ओला-पाला से खरीफ की फसल चौपट होने के बाद जैसे-तैसे किसानों ने हि मत कर फिर फसल बोई, फसल पक कर तैयार हुई और फिर प्रकृति की मार से फसल बर्बाद हो गई। किसानों को शून्य प्रतिशत ब्याज पर कर्ज के लिए सरकार ने 12000 करोड़, किसानों को लेट रेट पर बिजली के लिए 1700 करोड़ का प्रावधान किया था। कर्ज में डूबे किसानों ने बिजली का बिल जमा नहीं किया। किसानों की कर्ज बसूली स्थगित कर दी गई, अब सरकार उनका ब्याज भी भरेगी, जिससे उन्हें अगली बार फिर भी शून्य प्रतिशत ब्याज पर कर्ज मिल सके। जानकारी के अनुसार चालू वित्तीय वर्ष में खेती के लिए 11209 करोड़ रूपए सहकारिता कर्ज दिया गया। खेती के लिए भरपूर बिजली के साथ 1800 करोड़ के बिजली बिलों का भुगतान राज्य सरकार ने माफ किया। किसानों की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण ट्रैक्टर सहित कृषि कार्य में उपयोग होने वाले वाहनों की बिक्री प्रभावित हुई है। जिसका सरकार के राजस्व में सीधा असर पड़ा है। मुद्रांक एवं पंजीयन से प्राप्त होने वाली राशि में भी कमी आई है।
कर्ज के जाल में किसान
किसानों की आत्महत्या के पीछे कर्ज एक बड़ा कारण है। लघु और सीमांत किसानों के लिए बगैर कर्ज से खेती करना लगभग असंभव हो गया है। बैंकों से मिलने वाला कर्ज अपर्याप्त तो है ही, साथ ही उसे पाने के लिए खूब भागदौड़ करनी पड़ती है। इस दशा में किसान आसानी से साहूकारी कर्ज के चंगुल में फस जाते हैं। यदि हम पूरे मध्यप्रदेश में किसानों पर कर्ज की मात्रा का आकलन करेंं तो पाते हैं कि प्रदेश के किसान करीब दस हजार करोड़ रूपए से भी ज्यादा के कर्जदार हैं। क्योंकि अपेक्स बैंक के रिकॉर्ड में किसानों पर साढ़े सात हजार करोड़ रूपए कर्ज के रूप में दर्ज हैं। इसमें कम से कम ढाई हजार करोड़ का साहूकारी कर्ज जोड़ दें तो यह आंकड़ा दस हजार करोड़ को पार कर लेता है। सन् 2006 में गठित राधाकृष्णन समिति ने भी किसानों की आत्महत्या के लिए कर्ज को एक मु य कारण माना है। मध्यप्रदेश में आत्महत्या करने वाले किसान 20 हजार से लेकर 3 लाख रूपए तक के साहूकारी कर्ज में दबे थे। साहूकारी कर्ज की ब्याजदर इतनी ज्यादा होती है कि सालभर के अंदर ही कर्ज की मात्रा दुगनी हो जाती है। ऐसे में यदि फसल खराब हो जाए तो आने वाले समय में यह संकट और भी बढ़ जाता है। 2012 में फसल खराब होने के बाद आत्महत्या करने वाले, पांच एकड़ जमीन वाले छह किसानों पर तो एक लाख रूपए से अधिक का कर्ज था। जिन 42 किसानों ने आत्महत्या जैसे कदम उठाए हैं उनमें से 41 किसान कर्जदार थे। उनके नाम पर कुल मिलाकर साहूकारों का करीब 32,27,000 रूपए और बैंकों का 11,56,000 रूपए का कर्ज है। इस तरह उनके पर कुल मिलाकर 43,83,000 रूपए का कर्ज है। उल्लेखनीय है कि उनके कुल कर्ज का 74 प्रतिशत हिस्सा भारी ब्याज वाले साहूकारी कर्ज का है। यानी ग्रामीण क्षेत्रों तक बैंकों की पहुंच के बावजूद किसान साहूकारों के सामने हाथ पसारने को मजबूर है।
100 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदी का लक्ष्य
प्रदेश में उत्पादन वृद्धि में गेहूं की भूमिका सर्वाधिक है। रदेश में रबी विपणन वर्ष 2014-15 में समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदी का कार्य सभी संभागों में एक साथ 25 मार्च से प्रारंभ होगा। खरीदी का कार्य 26 मई तक किया जाएगा। इस संबंध में खाद्य, नागरिक आपूर्ति विभाग ने आदेश जारी किए हैं। पूर्व में प्रदेश में गेहूं खरीदी का कार्य 18 मार्च से प्रारंभ होना था। हाल ही में असमय बारिश एवं ओला-वृष्टि के कारण राज्य सरकार ने सभी संभाग में 25 मार्च से एक साथ गेहूं खरीदी किए जाने का निर्णय लिया है। प्रदेश में समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदी के लिए 3000 केन्द्र निर्धारित किए गए हैं। गेहूं खरीदी के लिये राज्य सरकार ने मध्यप्रदेश स्टेट सिविल सप्लाइज कार्पोरेशन को नोडल एजेंसी बनाया है। कार्पोरेशन ने इस वर्ष 100 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदी किए जाने का अनुमान लगाया है। समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदी के लिये अब तक लगभग 17 लाख 50 हजार किसान का पंजीयन भी किया जा चुका है। वर्ष 2013 में प्रदेश में गेंहू उत्पादन 161.25 लाख मीट्रिक टन हुआ। मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा पंजाब के बाद गेंहू उत्पादन में तीसरे स्थान पर जा पहुंचा। ओलावृष्टि के बाद अब उत्पादन कमी होने की संभावना है।
नाटक नौटंकी कर रहे हैं शिवराज: यादव
मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अरुण यादव ने सीएम शिवराज सिंह चौहान से अपील की है कि वो घडिय़ाली आंसू बहाने की नौटंकी बंद करें और किसानों की मदद करें। राज्य सरकार के मुखिया होने के नाते यह उनकी जिम्मेदारी है और धर्म भी। उनके पास जो कुछ भी है पहले वो किसानों में बांटें, कम पड़े तो केंद्र से मांगे। यादव ने कहा है कि पिछले दिनों में हुई ओलावृष्टि के कारण प्रदेश के किसानों की रबी की फसलें गेहूं, चना, मसूर, सरसों आदि पूरी तरह बर्बाद हो गईं है। प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा हाल ही में आलोवृष्टि और अतिवृष्टि के लिए प्रदेश के किसानों को 2000 करोड़ रूपये की सहायता राशि मुहैया कराने की घोषणा की गई थी, लेकिन मुख्यमंत्री ने इस घोषणा को नजरअंदाज करते हुए केंद्र सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति अपनाते हुए 6 मार्च को प्रदेश बंद कर धरना दिया है जो असंवैधानिक तथा जनता के प्रति गैरजिम्मेदाराना है।
घोषणा में 15 हजार, कागजों में 9 हजार की राहत
एक तरफ जहां मुख्यमंत्री ने किसानों की फसलों के हुए नुकसान पर 15 हजार रूपये प्रति हैक्टेयर की राशि का मुआवजा देने की घोषणा की है वहीं तहसीलदार, पटवारी किसानों को प्रति हैक्टेयर केवल 9 हजार रूपये से ज्यादा की सहायता राशि न देकर इतिश्री कर रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा है कि किसानों के साथ भेदभाव किया जा रहा है। किसानों की फसलों का अभी तक सर्वे नहीं किया जा रहा है, जबकि किसान पुत्र कहलाने वाले किसान हितैषी प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराजसिंह चौहान ने स्वयं घोषणा की थी कि 5 मार्च तक किसानों की फसलों की क्षति की सर्वे रिपोर्ट बुलाई जाएगी।
जो संपत्तियां बर्बाद हुईं उनका क्या
वहीं प्रदेश में अतिवृष्टि एवं ओलावृष्टि से हुई मकान, पशु हानि आदि की क्षति के बारे में भी अभी तक कोई सर्वे आदि की तैयारी राज्य सरकार द्वारा नहीं की गई है। मुख्यमंत्री ने घोषणा की थी कि सर्वे रिपोर्ट आने के बाद ही केंद्र सरकार को किसानों की फसलों की हुई क्षति का मेमोरेंडम भेजा जाएगा, लेकिन बगैर मेमोरेंडम के ही केंद्र सरकार पर किसानों को राहत राशि के लिए दबाव बनाया जा रहा है। प्रदेश के किसानों और प्रदेश की जनता को गुमराह किया जा रहा है। कांग्रेस पार्टी मुख्य मंत्री के इस कृत्य की घोर निंदा करती है।
विज्ञापन बंद करो, किसानों को राहत दो
यादव ने कहा है कि मुख्यमंत्री द्वारा 6 मार्च का बंद लोकसभा चुनाव में भाजपा को फायदा दिलाने की नियत से किया गया था और मुख्यमंत्री इस प्रकार की अशुद्ध राजनीति कर प्रदेश की जनता के साथ छलावा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यदि प्रदेश का मुख्यमंत्री स्वयं ऐसा करेगा तो प्रदेश के किसानों और जनता का क्या होगा। उन्होंने कहा है कि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान नाटक-नौटंकी से बाज आएं और प्रदेश की जनता और किसानों की बर्बाद फसलों का सही आकलन कर वास्तविक प्रभावित किसानों को उचित मुआवजा दें और विज्ञापनों में अपनी छवि निखारने के लिए सरकारी खजाने से करोड़ों की धनराशि न लुटायें। आपने कहा है कि सरकारी खजाने की राशि का उपयोग किसानों को राहत पहुंचाने में खर्च करें, जिससे किसानों को कुछ राहत मिल सके।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना
उन्होंने कहा कि एक तरफ जहां सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल हाईवे राजमार्गों पर चक्काजाम प्रतिबंधित कर रखा है, वहीं प्रदेश के किसान पुत्र कहलाने वाले मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने किसानों की फसलों की क्षति के विरोध में स्वयं 1 घंटे के चक्काजाम का आव्हान कर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना की है।
कहां हो रहा सर्वे
ओलावृष्टि और बारिश से फसल बर्बाद होने के बाद तबाह किसानों को मुआवजा देने के लिए शासन और प्रशासन ने अपने-अपने स्तर पर घोषणा तो कर दिया है,लेकिन करीब छह दिन बाद भी किसानों के खेतों पर सर्वे करने के लिए अभी तक कोई नहीं पहुंचा है। जब अग्रिबाण की टीम ने जिले के कुछ गांवों का दौरा कर सर्वे के बारे में किसानों से पूछा तो उन्होंने ही सवाल पूछ लिया कि आखिर सर्वे हो कहां रहा है? ज्यादातर किसान कह रहे हैं कि उनके यहां सर्वे के लिए कोई नहीं आया। मु यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के निर्देश पर कलेक्टर ने जिला प्रशासन और कृषि विभाग के अधिकारियों को ओला और बारिश में हुए नुकसान का आकलन करने के निर्देश दिए थे। उसके बाद से सर्वे शुरू हुआ है। जिला प्रशासन का दावा है कि टीमों ने क्षेत्र में सर्वे कर लिया है,लेकिन अधिकांश क्षेत्रों में टीमें नहीं पहुंचने की बात कह रहे हैं। तूमड़ा गांव के निवासी नर्मदा पटेल ने बताया एक मार्च को कलेक्टर साहब ने कहा था कि जल्द ही टीम सर्वे करने जाएगी। क्षेत्र में हजारों एकड़ फसल तबाह हो गई है, लेकिन अभी तक कोई सर्वे करने नहीं पहुंचा। खेतों में पानी भरने से फसल खराब हो गई है, लेकिन सर्वे के लिए कोई नहीं आया।
गेहूं का सर्वे नहीं
कांहासैया निवासी कमल ने बताया, एक एकड़ में गेहूं बोया था। फसल बर्बाद हो गई। पटवारी कह रहा है, गेहूं के सर्वे का निर्देश नहीं है। इसी गांव के निवासी संतोष पटेल का तीन एकड़ में बोया चना बर्बाद हो गया है। रामकेश पटेल का नौ एकड़ चना खराब हुआ है। इन्होंने बताया कि पटवारी आया था, लेकिन सर्वे किए बिना ही लौट गया। परवलिया सड़क निवासी ब्रजमोहन ने कहा कि सर्वे अभी किया गया है, जबकि फसल चार दिन बाद सूखेगी। अभी नुकसान मामूली दिख रहा है। लक्ष्मण ने बताया उनका 2.5 एकड़ चना बर्बाद हो गया, लेकिन सर्वे नहीं हुआ।अ िबका शुक्ला ने बताया कि पटवारी को सर्वे के लिए फोन किया, तो उसने कह दिया कि आदेश नहीं मिला है। छांद निवासी राजा खान ने बताया कि उनकी दस एकड़ से ज्यादा फसल तबाह हो गई है, लेकिन अभी तक गांव में सर्वे करने कोई नहीं पहुंचा। इसी तरह जिले के ललोई,जमूसर खुर्द,आदमपुर छावनी आदि गांवों में दलहनी फसलें ओला, पानी से चौपट हो गई हैं। ओला पानी से क्षेत्र में दलहनी फसलों को सौ प्रतिशत नुकसान पहुंचा है, तो गेहूं की फसल खेतों में बिछ गई है।
तिल-तिल मरती फसल देख रो रहे किसान
बड़ी मेहनत से फसल बोई। देखभाल की और बारिश का पानी भरने के कारण अब फसल तिल-तिल करके सूख रही है। किसानों को पता है कि पानी सूखने तक फसल नष्ट हो जाएगी और इसके कारण उनके आंसू नहीं रूक रहे हैं। यह हाल हुजूर तहसील के कई गांवों का है। खेतों में पानी भरने से गेहूं के पौधों की जड़ें सड़ गई हैं और पत्तियां पीली पडऩे लगी हैं। किसानों का कहना है कि जड़ें सड़ गई हैं, इसलिए अब इन पौधों का सूखना भी तय है। मटर सूखी और टमाटर के पौधे काले- मटर के पौधे भी सूख गए हैं। फलियां पानी में डूबने के कारण सड़ गई हैं। उनमें कीड़े लगने लगे हैं। टमाटर और आलू के पौधे भी सूखकर काले हो गए हैं।
सिर्फ दलहन के सर्वे का आदेश- ग्रामीणों का कहना है कि पटवारी ने गेहूं में नुकसान न होने की बात कहकर सर्वे से इनकार कर दिया है, जबकि खेतों में अभी भी पानी भरा है। पौधे सूख रहे हैं। सब्जियों के नुकसान के लिए यह कहकर टाला जा रहा है कि सिर्फ दलहन के सर्वे का आदेश है।
बीमा योजना की सुविधा बनी असुविधा
सुनने में आसान लगने वाली फसल बीमा योजना की सुविधा किसानों के लिए टेड़ी खीर साबित हो रही है। पहले तो इस योजना के दायरे में किसानों का आना ही मुश्किल होता है। दायरे में आ भी जाएं, तो फसल का नुकसान साबित करने और क्लेम पाने में रात-दिन एक करना पड़ता है। तमाम दुविधाओं को देखते हुए जिले के किसानों ने इससे तौबा कर ली है। अनिवार्य बीमा के दायरे में आने वाले ऋणधारक किसानों को छोड़ दिया जाए, तो निजी तौर पर आगे आकर बीमा कराने वाले किसानों की जिले में सं या न के बराबर है।
सर्वे नहीं मान्य
फसलों के नुकसान के आकलन के लिए जिला प्रशासन द्वारा तैयार रिपोर्ट को बीमा क पनी मान्य नहीं करती है। इसके लिए उसकी टीम अलग से सर्वे करती है और नुकसान तय करती है। कंपनी क्षेत्र में हुए नुकसान को आधार बनाती है, न कि बीमित किसान की फसल को। यदि सिर्फ बीमित किसान की फसल किसी आपदा का शिकार हुई है, तो उसे मान्य नहीं किया जाएगा।
एक साल बाद क्लेम
तमाम उलझनों के बाद किसानों का नुकसान मान भी लिया जाए, तो क्लेम की राशि मिलने में एक साल इंतजार करना होता है। यानी खरीफ की फसल में नुकसान होने पर उसका क्लेम अगली खरीफ की फसल में दिया जाएगा।
ऐसे होती है अधिसूचित
कृषि विभाग के अनुसार अधिसूचित फसलों को तय करने के लिए क्षेत्र में उस फसल के पांच साल के उत्पादन को देखा जाता है। उसके हिसाब से मौजूदा सीजन में उसके उत्पादन का आंकलन करते हुए उसे अधिसूचित किया जाता है। एक जिले में आम तौर पर तीन से चार फसलों को अधिसूचित किया जाता है।
ऋण लेने में ही सुविधा
फसल बीमा का काम जिला सहकारी बैंक के माध्यम से किया जाता है। यह सुविधा खास तौर से उन किसानों को मिलती है, जिन्होंने बैंक से ऋण ले रखा है। बैंक द्वारा ऋण राशि में ही उनका प्रीमियम समायोजित कर दिया जाता है। इसके अलावा कोई किसान अलग से बीमा का लाभ लेना चाहे, तो उसे नकद प्रीमियम देने के साथ ही क्लेम पाने के लिए भटकना पड़ता है। इन मुश्किलों से बचने के लिए किसान अलग से फसल बीमा का लाभ नहीं लेते हैं।
160 गांव प्रभावित
जिले में दो दिनों में हुई ओलावृष्टि ने 160 गांवों को अपनी चपेट में लिया है, जिससे यहां के किसानों की फसल चौपट हो गई है। सबसे अधिक 109 गांव हुजूर तहसील में प्रभावित हुए हैं। जिला प्रशासन का दावा है कि तहसीलदार तथा राजस्व व कृषि विभाग की टीम गांवों में जाकर नष्ट हुई फसल का सर्वे किया है। सात दिन में सर्वे पूरा करने के लिए कहा गया था। हुजूर तहसील के ग्रामीण इलाकों में हुई ओलावृष्टि के बाद तूमड़ा, र्इंटखेड़ी राजस्व सर्किल के अंतर्गत आने वाले गांवों की फसल पर सीधा असर पड़ा है। इसके बाद इस तहसील में ओले से प्रभावित गांवों की सं या 109 हो गई है। टीटी नगर नजूल सर्किल के अंतर्गत आने वाले रातीबड़, नीलबड़ राजस्व सर्किल के गांवों की फसल भी ओले की मार से प्रभावित है। इसी तरह एमपी नगर नजूल सर्किल के आठ गांवों में किसानों की खेतों की फसल ओले के कारण खराब हुई है। बैरसिया में करीब 51 गांवों में ओले व बारिश के कारण किसानों की फसल नष्ट हुई है।
किसान मजदूर अधिकार संगठन ने कलेक्ट्रेट में ज्ञापन सौंपकर फसलों का सही सर्वे और मुआवजा देने की मांग शुरू कर दी है। उनका कहना है शत प्रतिशत फसलों का नुकसान हुआ, जिसका आंकलन भी उसी हिसाब से होना चाहिए। नीलबड़ के किसानों ने कलेक्टर से मांग की है कि उचित सर्वे कराकर मुआवजा दिया जाए ताकि परिवार को लालन पालन में राहत मिल सके। किसान केशव पंवार समेत अन्य किसानों ने बताया कि तबाह फसलों का सर्वें करने आए रसूलिया बैरागढ़ के पटवारी रमेश शर्मा ने यहां के किसानों से पहले तो नुकसान का सर्वे किया और जानकारी ली, लेकिन पटवारी ने सभी किसानों से साफ लहजे में कहा कि आप लोगों को तहसील आना पड़ेगा। इस पर कई किसानों की आपत्ति भी जताई और कहा कि क्षेत्र में चौपाल लगाकर पूरी जानकारी लें और तय मुआवजा दिया जाए। इस पर बिना जवाब दिए पटवारी गाड़ी में बैठकर रवाना हो गए। किसानों का कहना था कि सभी को तहसील बुलाने का औचित्य समझ नहीं आ रहा है। बैरसिया एवं फंदा खजुरी क्षेत्र में दर्जनों गांवों में ओला वृष्टि से बची खुची फसल चौपट हो गई। अचारपुरा , तूमड़ा, पूरा छिड़वाड़ा, इमलिया, परवलिया, मुंगालिया हाट समेत दर्जनों गांवों के किसानों ने डबल मुआवजा देने की मांग की है।
खाद-बीच की राशि माफ हो
किसानों का बहुत नुकसान हुआ है, प्रशासन को खाद बीज का पैसा माफ करना चाहिए। राजधानी के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के किसानों ने कलेक्ट्रेट में धरना प्रदर्शन कर कलेक्टर निशांत बरवड़े को ज्ञापन सौंपा। इनकी मांग थी कि ओलावृष्टि से तबाह हुई फसलों का पूरा मुआवजा उनको दिया जाए और उनका कर्ज माफ किया जाए। यह प्रदर्शन भाजपा किसान मोर्चा शहर के तत्वावधान में किया गया है। मोर्चा के अध्यक्ष एवं मंडी सदस्य अशोक मीणा ने बताया कि बालमखेड़ा, तूमड़ा,ग्राम पाटनिया, रतनपुर कला खेडी सेकपुरा तारासेवनिया परवलिया सड़क, चदूंखेड़ी, कुराना, मुबारकपुर, छेजड़ादेव आदि गांवों में अभी तक कोई पटवारी सर्वे करने के लिए नहीं आया है। पर्यटन और संस्कृति मंत्री सुरेंद्र पटवा ने पिछले दिनों ओला प्रभावित दो दर्जन गांवों का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने ओला पीडि़त किसानों को ढांढस बंधाया और कहा कि किसानों को मुआवजा दिया जाएगा और तहसील में बांटा जा रहा सोयाबीन का मुआवजा सबसे पहले इन गांवों में बांटा जाएगा। तब से किसान राहत की आस देख रहे हैं।
अब कैसे होगी बेटी की शादी और बेटे की पढ़ाई
मौसम की मार झेल रहे किसान अब कर्ज में डूबते जा रहे हैं, खासतौर से छोटे किसानों के लिए मौसम अभिशाप बनकर सामने आ रहा है। स्थिति यह है कि किसान को फसल लगाने के लिए वर्ष में दो बार कर्ज लेना पड़ा, पहले कर्ज लेकर फसल लगाई। सोचा कि फसल आने पर कर्ज भी चुक जाएगा और घर की हालत भी बदल जाएगी, लेकिन शायद कुदरत को यह मंजूर न था और किसान की पहली फसल बारिश की भेंट चढ़ गई। कर्ज का बोझ बढ़ता गया और कर्ज को चुकाने के लिए किसान अगले सीजन पर फिर कर्ज लेकर रबी की फसल बो दी, लेकिन इस बार भी मौसम की बेरूखी किसान को भारी पड़ गई और दोबारा कर्ज लेकर किसान मुसीबतों में फंस गया। जी हां, हम बात कर रहे हैं क्षेत्र के उन किसानों की जिन्होंने कर्ज लेकर पहले खरीब की फसल बोई और अब रबी की फसल को मौसम की वजह से बर्बाद होता देख रहे हैं। ऐसे ही एक मामला जिले की बैरसिया तहसिल अंतर्गत आने वाले जमुसर खुर्द गांव निवासी लीलाराम का है। जिसने बीज और खाद के लिए कर्ज लेकर जुलाई माह में अपनी 5 एकड़ जमीन में सोयाबीन बोया लेकिन अत्याधिक बारिश की वजह से सोयाबीन की फसल खेत में ही सड़ गई और लीलाराम की उस उ मीद पर पानी फिर गया। लीलाराम को उम्मीद थी वह फसल आने पर वह अपनी लाडली की शादी धूमधाम करेगा और अन्य बच्चों की परवरिश भी ठीक से हो जाएगी। रबी का सीजन आते ही पहले से कर्ज में डूबे लीलाराम ने एक बार फिर किसानी जुआ खेलने की सोचकर खाद,बीज खरीदने सेवा सहकारी बैंक से कर्ज ले लिया। उसने बैंक से 12 हजार रुपए खाद के नाम पर कर्ज लिया और 35 हजार रुपए फसल की लागत के लिए कर्ज ले लिया। कर्ज लेकर उसने गेहूं की बुवाई की, लेकिन बेमौसम हुई बारिश से उसकी फसल काली पड़ गई है और खेत से बीज निकलना भी मुश्किल है। लीलाराम के सामने अब घर चलाने के भी लाले पड़ गए हैं और अब ऐसे में उसकी बेटी के विवाह और पुत्र सोनू की पढ़ाई की चिंता सताने लगी है। गौरतलब हो कि सोयाबीन की फसल खराब होने पर सुखदेव के लाख प्रयासों के बाद भी उसकी जमीन का सर्वे नहीं किया गया और न ही मुआवजा संबंधी कार्रवाई की गई। इस संबंध में उसने जनसुनवाई समेत कई बार अधिकारियों के चक्कर काटे।
कैसे हो बेटे का इलाज
चार एकड़ की भूमि की खेती के सहारे अपने जीवन की गाड़ी चला रहे गुढारीघाट निवासी किसान भंवर लाल का कहना है कि खरीफ सीजन में बैंक से सोयाबीन की खेती के लिए 50 किलो सोयाबीन का बीज, खाद का कर्ज लेकर बोवनी की, लेकिन अधिक बारिश से फसल चौपट हो गई। पुन: हौसला करके 50 हजार का पुन: बैंक से कर्ज उठाकर इस सीजन में चनें और गेंहू की खेती की। जिसमें खराब मौसम की वजह से फसल में पाला लगने जाने से चने की फसल चौपट हो गई। उसने ने बताया कि उसका बेटा बेनी बीमारी से ग्रसित है और अब उसकी बीमारी के इलाज का भी इंतजाम नहीं है। इस तरह से देखा जा रहा है किसानों ने कर्ज लेकर फसलें बोईं लेकिन मौसम ने उनके कर्जे को चुकवाने की जगह और बढ़ा दिया।

1 टिप्पणी:

  1. हम सरकार अनुमोदित कर रहे हैं और प्रमाणित ऋण ऋणदाता हमारी कंपनी व्यक्तिगत से अपने विभाग से स्पष्ट करने के लिए 2% मौका ब्याज दर पर वित्तीय मदद के लिए बातचीत के जरिए देख रहे हैं जो इच्छुक व्यक्तियों या कंपनियों के लिए औद्योगिक ऋण को लेकर ऋण की पेशकश नहीं करता है।, शुरू या आप व्यापार में वृद्धि एक पाउंड (£) में दी गई हमारी कंपनी ऋण से ऋण, डॉलर ($) और यूरो के साथ। तो अब एक ऋण के लिए अधिक जानकारी के लिए हमसे संपर्क करना चाहिए रुचि रखते हैं, जो लोगों के लागू होते हैं। उधारकर्ताओं के डेटा की जानकारी भरने। Jenniferdawsonloanfirm20@gmail.com: के माध्यम से अब हमसे संपर्क करें
    (2) राज्य:
    (3) पता:
    (4) शहर:
    (5) सेक्स:
    (6) वैवाहिक स्थिति:
    (7) काम:
    (8) मोबाइल फोन नंबर:
    (9) मासिक आय:
    (10) ऋण राशि की आवश्यकता:
    (11) ऋण की अवधि:
    (12) ऋण उद्देश्य:

    हम तुम से जल्द सुनवाई के लिए तत्पर हैं के रूप में अपनी समझ के लिए धन्यवाद।

    ई-मेल: jenniferdawsonloanfirm20@gmail.com

    जवाब देंहटाएं