vinod upadhyay

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मंगलवार, 1 अप्रैल 2014

9 सीटों पर भाजपा-कांग्रेस का गणित बिगाड़ेंगे वो

बसपा,सपा और आप के प्रत्याशियों ने रोचक बनाया मुकाबला
भोपाल। मध्यप्रदेश की राजनीति में तीसरे मोर्चे की कहीं कोई गुंजाइश नहीं है। पिछले 20 सालों में कोई भी ग़ैर कांग्रेस-ग़ैर भाजपा समूह मिलकर भी कभी भी प्रभावी जीत दर्ज नहीं कर सका है। हालांकि प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों पर नजऱ डालने पर यही लगता है कि बुंदेलखंड, ग्वालियर संभाग और विंध्य प्रदेश की कुछ सीटों पर सपा-बसपा के उम्मीदवार मुकाबले को रोचक बनाते रहे हैं। 16वीं लोकसभा के इस समर में मप्र की 29 लोकसभा सीटों में से 9 सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस और भाजपा उम्मीदवारों के सामने खड़ा तीसरा चेहरा खासा दमदार है। इन सीटों में से कुछ पर तीसरा उम्मीदवार तो इतना दमदार है कि वह भाजपा-कांग्रेस की लड़ाई का गणित बिगाड़ सकता है। b>मुरैना संसदीय क्षेत्र.......
मुरैना में भाजपा ने पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा तो कांग्रेस ने अपने दबंग विधायक गोविंद सिंह को मैदान में उतारा है, लेकिन इन दोनों का गणित बसपा के वृंदावन सिंह सिकरवार बिगाड़ेंगे। यहां पर लहर काम नहीं आती है। इस सीट पर चुनाव जातिगत आधार पर होता है। ब्राह्मण, ठाकुर, वैश्य, पिछड़ी व अनुसूचित जाति बहुल्य वाले इस क्षेत्र में मतदाता प्रत्याशी के समाज के आधार पर वोट डालते हैं, न कि पार्टी के आधार पर। कांग्रेस के लिए बड़ी आफत वृंदावन सिकरवार ने खड़ी कर दी है। वे पहले कांग्रेस में थे और कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. गोविंद सिंह के समकक्ष थे। भाजपा के तेज-तर्रार नेता अनूप मिश्रा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे हैं। वे पिछला विधानसभा चुनाव भितरवार से हार गए हैं। पार्टी ने अनूप मिश्रा को मुरैना से प्रत्याशी बनाकर एक तीर से दो निशाने साधे हैं। एक ओर मिश्रा की उम्मीदवारी से मुरैना में भाजपा की गुटबाजी का असर चुनाव पर नहीं पड़ेगा। दूसरी ओर अनूप के पास समर्थकों की बड़ी फौज के साथ-साथ चुनाव में खर्च करने की क्षमता भी अधिक है। मुरैना में ठाकुर मतदाताओं की संख्या अधिक है, इसलिए डॉ. गोविंद सिंह अपना पलड़ा भारी मान रहे हैं, लेकिन नरेन्द्र मोदी और भाजपा की लहर के सामने जातिगत समीकरण कितने चलेंगे, कहना मुश्किल है। डॉ.गोविंद सिंह मुरैना सीट पर वृंदावन सिकरवार को ही अपनी ताकत मानते थे। वृंदावन सिंह सिकरवार के बसपा के जाने से उनके समीकरण गड़बड़ा गए हैं। वहीं भाजपा उम्मीदवार अनूप मिश्रा भी ब्राह्मण वोट व नरेन्द्र सिंह के वोट बैंक के सहारे मुरैना में आए हैं। लेकिन चुनाव के जातिगत आधार पर होने से मुरैना में मुकाबला त्रिकोणीय और रोमांचक हो गया है। कांग्रेस ने डॉ. गोविंद सिंह को ठाकुर वोट बैंक के सहारे मुरैना संसदीय क्षेत्र में उतारा है। लेकिन बसपा ने मुरैना लोकसभा में ठाकुर प्रत्याशी वृंदावन सिंह सिकरवार को ही उतार दिया। वृंदावन सिंह ठाकुर वोट बैंक को बांटेंगे। वृंदावन सिंह न केवल ठाकुर वोट बैंक को बांटेगे, बल्कि बसपा के परंपरागत दलित वोट भी उन्हें मिलेगा। साथ ही पिछड़े वर्ग का मतदाता बंटा हुआ है। इस वजह से भी कांग्रेस प्रत्याशी के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं। भाजपा के लिए परेशानियां कम नहीं
भाजपा प्रत्याशी ब्राह्मण वोटों, भाजपा के परंपरागत वोट व भाजपा प्रदेशाध्यक्ष नरेन्द्र सिंह के व्यक्तिगत वोट बैंक के सहारे मुरैना आए हैं। लेकिन भाजपा प्रत्याशी भी बाहरी हैं। भाजपा विधानसभा चुनाव से पहले तक अंबाह व दिमनी (तवंरघार) सुमावली व जौरा क्षेत्र में सबसे अधिक मजबूत थी। यहां पर ठाकुर (तोमर व सिकरवार) मतदाता भाजपा को वोट देते आए थे। लेकिन बदले हुए समीकरणों में ये वोट भाजपा में न जाकर बसपा प्रत्याशी के खाते में जा सकते हैं। इन्हीं क्षेत्रों में नरेन्द्र सिंह का भी प्रभाव था। यदि इन चारों विधानसभाओं के ठाकुर मतदाता मूव करते हैं तो भाजपा के लिए मुश्किल बढ़ जाएंगी। भिंड संसदीय क्षेत्र.......
भिंड में भाजपा के भागीरथ प्रसाद कांग्रेस की इमरती देवी और बसपा के मनीष कतरोलिया के बीच मुकाबला है। भिंड में कांग्रेस के घोषित प्रत्याशी भागीरथ प्रसाद के अचानक भाजपा में जाने के बाद समीकरण एकदम बदल गए हैं। अशोक अर्गल का टिकट काटकर भागीरथ को टिकट दिए जाने से भाजपा खेमें में नाराजगी है। अर्गल से वैसे भी सब नाराज चल रहे हैं। शुरू में तो यह कहा जा रहा था कि 'कार्यकर्ता न करेंगे काम तो क्या कर लेंगे अर्गलÓ। इस संसदीय क्षेत्र से भाजपा नेताओं, मंत्रियों, व्यापारियों तथा मतदाताओं को अर्गल ने निराश ही किया हैें। कांग्रेस के लिए यह स्थिति बेहद लाभकारी हो सकती थी लेकिन कांग्रेस की अंदरूनी उठापटक के चलते उसकी स्थिति काफी कमजोर बनी हुई हैं जिसके चलते कांग्रेस लोकसभा चुनाव के लिये इस संसदीय सीट से अपने उम्मीदवार का नाम इमरती देवी तय कर पाने में काफ ी समय तक असमंजस की स्थिति बनी रही। मजे की बात हंै कि इस संसदीय क्षेत्र से पार्टी के उम्मीदवार तय करने में कांग्रेसी नेताओं के मतभेद सतह पर आ गए हैं जो अभी तक ढके-छिपे हुए थे। इस सीट पर अब नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। पार्टी नेतृत्व ने कटारे को भिंड में जिताऊ उम्मीदवार का नाम देने की जिम्मेदारी सौंपी है। बताया जाता है कि कटारे ने पूर्व गृह मंत्री महेन्द्र बौद्ध का नाम आगे बढ़ाया है। भिंड में कांग्रेस की जीत-हार से कटारे का भविष्य जुड़ा माना जा रहा है।उधर सपा ने बसपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे स्व पीपी चौधरी की पुत्र वधु अनीता चौधरी को अपना प्रत्याशी बनाया हैं। अनीता के पति हितेन्द्र की कुछ साल पहले जौरा में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। पति और सुसर की हत्या के पश्चात अनीता डेढ़ साल तक राजनीति से दूर रही मगर अब सक्रिय राजनीति में कूद पड़ी हैं। महिला मतदाता को अपनी और आकर्षित करने के मकसद से कांग्रेस ने ड़बरा विधायक इमरती देवी को इस संसदीय क्षेत्र से अपना प्रत्याशी बनाया हैं। गिर इस बार कांग्रेस, सपा, आप ने अपना उम्मीदवार महिला को बनाया हैं। ग्वालियर में तोमर की प्रतिष्ठा दांव पर...
वहीं ग्वालियर में भाजपा के नरेंद्र सिंह तोमर और कांग्रेस के अशोक सिंह के लिए खतरे की घंटी हैं बसपा के आलोक शर्मा। नरेंद्र सिंह तोमर के ऊपर पूरे प्रदेश में प्रचार करने की जिम्मेदारी है। यही कारण है कि तोमर ने मुरैना के बजाए अपने गृह नगर ग्वालियर लोकसभा से लडऩे का निर्णय लिया है। ग्वालियर को तोमर के लिए सबसे सेफ सीट माना जा रहा है। कांग्रेस ने लगातार तीसरी बार अशोक सिंह को उम्मीदवार बनाया है। अशोक सिंह दो बार यशोधरा राजे सिंधिया से चुनाव हार चुक हैं। ग्वालियर के धनाढ्य व व्यवसायी परिवार से जुड़े अशोक सिंह के लिए यह चुनाव अभी नहीं तो कभी नहीं वाला है। क्योंकि यदि वे लगातार तीसरी बार चुनाव हारे तो उनका राजनीतिक कैरियर समाप्त होने का खतरा है। यही कारण है कि अशोक सिंह इस चुनाव में पूरी ताकत झोंक रहे हैं। दूसरी ओर भाजपा के लिए यह चुनाव नरेन्द्र सिंह तोमर का नहीं, प्रदेश अध्यक्ष की प्रतिष्ठा का चुनाव है। यही कारण है कि भाजपा भी पूरी ताकत से चुनाव में उतर रही है। उधर बसपा उम्मीदवार आलोक शर्मा की ताकत को सिर्फ एक बिरादरी विशेष का वोट काटने तक ही सीमित समझा जा रहा है, पर वे स्वयं इस बात को माननेे के लिए तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि- 'मैं जीतने के लिये ही ग्वालियर संसदीय क्षेत्र से खड़ा हुआ हूं।Ó लेकिन उनकी पार्टी का चुनावी रिकार्ड उन्हें वोट काटने वाली ताकत से अधिक नहीं बताता। जहां तक कार्यकर्ताओं का सवाल है तो उनकी पहुंच हरिजन एवं ब्राम्हण वर्ग तक ही सीमित है। इन दो वर्गों की ताकत के बूते चुनाव तो लड़ा जा सकता है लेकिन दो वर्गों की ताकत ही चुनाव में विजय दिलाने के लिए काफी नहीं हैं। लेकिन यह निश्चित है कि बसपा प्रत्याशी का चुनाव लडऩा कांग्रेस के लिए परेशानी का कारण है क्योंकि बसपा हरिजनों के जिन मतों को खीचेंगे, वह कांग्रेस के परम्परागत मत समझे जाते हैं। राजनैतिक परिस्थितियों को देखते हुए फिलहाल यह बता पाना मुश्किल है कि ग्वालियर में किसकी झोली भरेगी और कौन हाथ मलेगा? बालाघाट संसदीय सीट...
बालाघाट सीट पर भाजपा के बोधसिंह भगत और कांग्रेस की हीना कांवरे के लिए सपा के अनुभा मुंजारे विलेन बनी हुए हैं। महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे इस लोकसभा क्षेत्र में आदिवासी वोटों के अलावा लोधी और पवार जाति के वोट ही निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। भाजपा ने यहां से बोधासिंह भगत को प्रत्याशी बनाया है जो पवार जाति से हैं। पवार जाति से ही कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन भी हैं जो इस फैसले से पूरी तरह खुश नहीं हैं। उनके समर्थक भी नाराज हैं। जिसका खामियाजा भगत को उठाना पड़ेगा। दूसरी तरफ भाजपा से लोधी वर्ग के लोग नाराज हैं। इस वर्ग के प्रहलाद पटेल पहले यहां से सांसद भी रह चुके हैं। कांग्रेस ने यहां युवा और राहुल गांधी की टीम की सदस्य स्वर्गीय लिखीराम कांवरे की की बेटी हीना कांवरे को मैदान में उतारा है। इनका सिवनी व बरघाट नया कार्यक्षेत्र होने के कारण ज्यादा प्रभाव नहीं। जातिगत समीकरण के चलते वोटों का ध्रुवीकरण होना इनके लिए हानिकारक होगा। इन युवा व प्रौढ़ प्रतिद्वंद्वियों को सपा की अनुभा मुंजारे भी चिर-परिचित अंदाज में चुनौती दे रही हैं। जिससे ओबीसी वोटों के ध्रुवीकरण होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। ये वही अनुभा हैं जिन्होंने हालिया विधानसभा चुनाव में मंत्री गौरीशंकर बिसेन की जीत कठिन बना दी थी। इनके अलावा इस सीट के मिजाज के मुताबिक राष्ट्रीय व प्रादेशिक व क्षेत्रीय दलों सहित निर्दलीय रूप में दर्जन भर से अधिक प्रत्याशी चुनाव में खड़े हैं। और लगभग सभी की उम्मीदवारी के पीछे उनका अपना जातिगत समीकरण है। विधानसभा चुनाव में बालाघाट संसदीय सीट में आने वाले आठ विधानसभा क्षेत्रों में से भाजपा को बालाघाट, वारासिवनी, कटंगी व बरघाट में जीत मिली, जबकि कांग्रेस ने बैहर, परसवाड़ा व लांजी सीट पर कब्जा किया था। सिवनी में निर्दलीय को जीत मिली। आजादी के बाद से हुए 10 लोकसभा चुनावों में लगातार भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा। 1998 में गौरीशंकर बिसेन ने कांग्रेस सांसद विश्वेश्वर भगत को हराकर पहली बार भाजपा की जीत का खाता खोला। इसके बाद से यहां भाजपा ही जीतती आ रही है। यहां आप प्रत्याशी को भी अपनों से ही डर है। दरअसल, शुरुआत से जो लोग आम आदमी पार्टी का झंडा लिए और टोपी पहने घूमते थे, टिकट वितरण के बाद पार्टी प्रत्याशी उत्तमकांत चौधरी का सड़क पर विरोध जताकर उन्होंने खुद को अलग कर लिया है। मंदसौर में भाजपा संकट में...
मंदसौर सीट पर कांग्रेस की मीनाक्षी नटराजन और भाजपा के सुधीर गुप्ता का चुनावी गणित आप के पारस सकलेचा बिगाड़ेंगे। लंबे समय ये भाजपा का गढ़ रही इस सीट से पार्टी ने सुधीर गुप्ता को अपना प्रत्याशी बनाया है। ब्राह्मण मतदाताओं के बाहुल्य वाली इस सीट से लक्ष्मीनारायण पाण्डे कई बार सांसद रहे हैं। पर इस बार रघुनंदन शर्मा को प्रत्याशी बनाए जाने की अटकलें लगाई जा रहीं थीं। अचानक गुप्ता को टिकट दिए जाने के पीछे भी पार्टी के नेता जातिगत समीकरण बता रहे हैं। सूत्रों की मानें तो वैश्य समाज को एडजस्ट करने के लिए मंदसौर का टिकट अनजान नेता गुप्ता को दिया गया। गुप्ता का नाम राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ओर से लाया गया था। पार्टी नेताओं की मानें तो वे इस सीट से जीत के प्रति भी पूरी तरह आश्वस्त हैं। उनका मानना है कि इस समय मोदी की आंधी और प्रदेश में शिवराज फैक्टर के कारण मंदसौर सीट जीतने में कोई परेशानी नहीं आएगी। इधर मंदसौर सीट के दूसरे दावेदार बंशीलाल गुर्जर को टिकट नहीं दिए ताने से वे भी नाराज हैं। प्रदेश की कई सीटों में गुर्जर मतदाताओं की संख्या बहुत ज्यादा है पर भाजपा के नेता नहीं है। यहां से जब रघुनंदन शर्मा के भाजपा के टिकट पर मैदान में आने की खबर थी तब तक तो कांग्रेस को कुछ सूझ नहीं रहा था। अब सुधीर गुप्ता की उम्मीदवारी से कांग्रेस में राहत है। यहां का चुनाव अब मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान, पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष नरेंद्रसिंह तोमर और प्रदेश कोषाध्यक्ष चैतन्य काश्यप के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। उधर,कांग्रेस की उम्मीदवार मीनाक्षी नटराजन के खिलाफ एंटीइंकंवेंसी है। लेकिन भाजपा का कमजोर प्रत्याशी उनके लिए फायदेमंद हो सकता है। लेकिन उनका सारा खेल आम आदमी पार्टी के पारस सकलेचा बिगाड़ सकते हैं। सकलेचा जमीनी नेता हैं और क्षेत्र में उनकी अच्छी पकड़ है। ये भाजपा और कांग्रेस दोनों के वोट पर चोट कर सकते हैं। अरुण यादव की अध्यक्षी दांव पर
खंडवा में भाजपा के नंदकुमार सिंह चौहान और कांग्रेस के अरुण यादव के लिए आप के आलोक अग्रवाल खतरा बने हुए हैं। यहां से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव का रास्ता रोकने के लिए भाजपा ने अभी से आक्रामक रुख अख्तियार कर लिया है। कांग्रेस यहां संगठन पर कम और यादव की निजी टीम के भरोसे ज्यादा है। यहां भाजपा के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने जैसा तेवर दिखाया है उससे स्पष्ट है कि पार्टी अब किसी तरह की ढील देने के पक्ष में नहीं है। भाजपा यहां बूथ स्तर तक की जिम्मेदारी तय कर चुकी है। कहां, कब और क्या संसाधन लगेंगे, इसका आकलन हो गया है। जातिगत समीकरणों का भी पार्टी पूरा फायदा लेना चाहती है और इन जातियों पर प्रभाव रखने वाले पार्टी नेताओं को अभी से मोर्चे पर लगाया गया है। चूंकि यहां भाजपा के बड़े नेताओं में आपसी विवाद बहुत है, इसलिए पार्टी ने वजनदार नेताओं को साधने का काम विजयवर्गीय को सौंपा है। पिछला चुनाव भाजपा भारी गुटबाजी के चलते हारी थी। इन सब के बीच आम आदमी पार्टी के आलोक अग्रवाल दोनों दलों के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं। क्षेत्र में नर्मदा बचाओ आंदोलन और जागृत दलित आदिवासी संगठन की अपनी-अपनी जमीन और विचारधारा है। इनसे जुड़े लोगों की संख्या भी खासी है। ऐसे में लोकसभा चुनाव में आंदोलन और संगठन का गठबंधन निमाड़ में नया राजनीतिक समीकरण माना जा रहा है। क्षेत्र में नर्मदा बचाओ आंदोलन जहां डूब, पुनर्वास, विस्थापन आदि को लेकर लंबे समय से अपनी पैठ बनाए हुए है। वहीं जागृत आदिवासी दलित संगठन मनरेगा, मातृ एवं शिशु सुरक्षा व स्वास्थ्य, सार्वजनिक वितरण प्रणाली आदि जैसे मुद्दों को लेकर काम कर रहा है। इन जनहितैषी मुद्दों के चलते इनका सीधा संपर्क अंतिम व्यक्ति तक है। दोनों ही जनआंदोलनों का नेतृत्व महिला शक्ति के हाथों में है। आंदोलन का जिम्मा मेधा पाटकर के पास है, तो संगठन की बागडोर माधुरी बहन ने संभाल रखी है।
सतना सीट पर दो सिंहों को ब्राह्मïण की चुनौती...
सतना सीट पर भाजपा प्रत्याशी गणेश सिंह और कांग्रेस प्रत्याशी अजय सिंह राहुल के बीच मुख्य मुकाबला माना जा रहा है, लेकिन बसपा ने ब्राह्मïण जाति के धर्मेंद्र तिवारी को मैदान में उतारकर मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया है। भाजपा और कांग्रेस दोनों में ही असंतोष नजर आ रहा है। कांग्रेस के कुछ नेताओं ने अजय सिंह राहुल का विरोध करते हुए पार्टी से मुंह फेर लिया। प्रत्याशी की घोषणा के बाद युवक कांग्रेस लोकसभा अध्यक्ष सुभाष शर्मा डोली व युवक कांग्रेस शहर अध्यक्ष विजय तिवारी ने पार्टी छोड़ दी। वहीं पूर्व में सईद अहमद की दावेदारी प्रबल मानी जा रही थी, लेकिन अजय सिंह को टिकट मिलते ही इनकी भूमिका क्षेत्र में नजर नहीं आई, अभी तक इन्हें अजय सिंह के समर्थन में क्षेत्र में प्रचार करते नहीं देखा गया। वहीं भाजपा के गणेश सिंह के प्रति रामपुर बाघेलान से भाजपा विधायक हर्षप्रताप सिंह का विरोध जगजाहिर है। महापौर पुष्कर सिंह की भी भूमिका कुछ हद तक संदेहास्पद नजर आ रही है। पिछले दिनों क्षेत्र में आए सीएम शिवराज सिंह ने हर्षप्रताप सिंह व पुष्कर सिंह को बुलाकर पार्टी के पक्ष में काम करने की हिदायत दी थी। यहां बसपा ने ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या को ध्यान में रखकर धर्मेन्द्र तिवारी को मैदान में उतारा है। माना जाता है कि ब्राह्मण वोट यहां निर्णायक की भूमिका अदा करते हैं और वे दोनों की राष्ट्रीय दलों से नाराज चल रहे हैं। सपा ने यहां से नया चेहरा रामपाल यादव को मैदान में उतारा है इसलिए उसका दखल ज्यादा नहीं माना जा रहा है। नागौद निवासी पूर्व मंत्री नागेंद्र सिंह के खजुराहो से लडऩे का असर भी यहां के चुनाव पर दिख सकता है। उनके साथ यहां के भाजपा कार्यकर्ता भी खजुराहो इलाके में काम करेंगे। रीवा में क्या बसपा बचा पाएगी सीट...?
रीवा में बसपा प्रत्याशी निवर्तमान सांसद देवराज पटेल, कांग्रेस प्रत्याशी सुंदरलाल तिवारी और भाजपा प्रत्याशी जनार्दन मिश्रा के बीच त्रिकोणीय मुकाबले के हालात बन रहे हैं। इस सीट पर भी ब्राह्मण मतदाताओं को निर्णायक बताया जाता है, लेकिन ये वोट कांग्रेस और भाजपा में विभाजित हो सकते हैं। हालांकि पिछले चुनाव में कांग्रेस के सुंदरलाल तिवारी ने देवराज पटेल को टक्कर दी थी। भाजपा के पक्ष में यह है कि विधानसभा चुनाव में उसका वोट प्रतिशत बढ़ा है। इस सीट पर सपा ने भैयालाल कोल को प्रत्याशी बनाया है, लेकिन उनका दखल ज्यादा नहीं दिखता। हालांकि वे भाजपा के जमीनी कार्यकर्ता रह चुके हैं। यहां भी कांग्रेस प्रत्याशी सुंदरलाल तिवारी और भाजपा प्रत्याशी जनार्दन मिश्रा के सामने पहली चुनौती अपनों से ही निपटने की है। कांग्रेस खेमे में अंतर्कलह सतह पर तो नहीं आया, लेकिन विंध्य के प्रमुख दो घरानों में से एक अमहिया घराने से प्रत्याशी होने को लेकर अंदर ही अंदर कार्यकर्ताओं में भी असंतोष की भावना है। लगातार दो लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी तीसरी बार उन्हें टिकट मिला है, इसका भी गुस्सा कार्यकर्ताओं में है। कांग्रेस में सुन्दरलाल को प्रत्याशी बनाए जाने के बाद पूर्व कांग्रेसी नेता एवं रीवा महाराज पुष्पराज सिंह ने तो पार्टी ही छोड़ दी। भाजपा में अंतर्कलह इससे भी ज्यादा है। सेमरिया के पूर्व विधायक अभय मिश्रा नाराज चल ही रहे हैं। वहीं गुढ़ विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक नागेन्द्र सिंह हर हाल में उप चुनाव चाह रहे हैं। वहीं मौजूदा विधायक पर जातीय समीकरण को लेकर कांग्रेस के साथ जाने की अटकलें लगाई जा रही हैं। जातीय समीकरण भी दोनों दलों के नेताओं और पदाधिकारियों को विद्रोह करने के लिए मजबूर कर रहे हैं। शहडोल में गोंगपा बनी बीच का कांटा...
वहीं शहडोल में कांग्रेस प्रत्याशी राजेश नंदिनी सिंह और भाजपा प्रत्याशी दलपत सिंह परस्ते की जीत के बीच गोंगपा के रामरतन सिंह पावले कांटा बने हुए हैं। यहां कांग्रेस प्रत्याशी निवर्तमान सांसद राजेश नंदिनी सिंह और भाजपा प्रत्याशी पूर्व सांसद दलपत सिंह परस्ते के बीच ही मुख्य मुकाबला है। इस सीट पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का भी दखल है। गोंगपा से रामरतन सिंह पावले फिर मैदान में हैं। यहां आम आदमी पार्टी ने विजय कोल को उम्मीदवार बनाया है, लेकिन उनका कोई खास असर नहीं बताया जा रहा है। यहां भाजपा और कांग्रेस के बीच ही मुख्य मुकाबला है। हालांकि दोनों दल अपने ही घर के अंतर्कलह से जूझ रहे हैं। भाजपा की स्थिति तो यहां तक पहुंच गई कि झंडा-बैनर लगाने का ठेका देना पड़ा। भाजपा में तीन खेमे बन गए हैं। लोकसभा प्रभारी, उप प्रभारी एवं प्रत्याशी का अलग-अलग खेमा बन गया है और व्यवस्थाओं को लेकर खींच-तान मची हुई है। कांग्रेस का एक बड़ा खेमा खामोश है। दोनों दलों में चुनाव प्रचार की व्यवस्था को लेकर अंतर्कलह पनप रहा है। दलपत सिंह का चुनाव प्रचार अपने गृह क्षेत्र अनूपपुर जिले तक ही सिमटा हुआ है। यदि शिवराज सिंह चौहान और नरेन्द्र मोदी का फैक्टर भाजपा का साथ नहीं दे पाया तो दलपत सिंह के सामने मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। भाजपा जनता युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं का उत्साह भी कमजोर पड़ गया है। हालांकि प्रत्याशी घोषणा के बाद से ही युवा मोर्चा में विरोध के स्वर उभर आए थे जिसका असर प्रचार-प्रसार में दिख रहा है। चुनाव कार्य की जिम्मेदारी संभाल रहे पदाधिकारी इस बात को लेकर निश्चिंत है और वह यह मान बैठे है कि जब तक शिवराज सिंह व नरेन्द्र मोदी का नाम उनके साथ है तब तक उन्हें चिंता करने की बात नहीं है। कार्यकर्ता भले ही असंतुष्ट रहे, लेकिन मतदाता उनका साथ देगा ही। कांग्रेस प्रत्याशी राजेश नंदिनी सिंह ने अपनी बेटी हिमाद्री सिंह को चुनाव प्रचार में उतार दिया है। विधानसभा चुनाव में भी बेटी के प्रचार का फायदा कांग्रेस को मिला है और लोकसभा में भी मिलेगा ऐसा माना जा रहा है। कांग्रेस का एक बड़ा खेमा प्रचार-प्रसार से दूरी बनाए हुए है और अब तक व्यवस्था के इंतजार में है। यहां भितरघात में उलझे समीकरण
इसके अलावा कई सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों को भितरघात का डर भी सता रहा है। कहीं पार्टी के पदाधिकारी खुलकर विरोध कर रहे हैं, तो कहीं छिपकर विरोधी का प्रचार करने लगे हैं। ऐसे नेता अपने ही प्रत्याशी की रणनीति पर पानी फेरने का काम भी कर रहे हैं। होशंगाबाद संसदीय सीट...
राव उदयप्रताप सिंह को भाजपा प्रत्याशी बनाए जाने से नरसिंहपुर जिले के कई वरिष्ठ नेता नाखुश हैं। कांग्रेस का आलम भी यही है। पार्टी के कई नेता पड़ोसी संसदीय क्षेत्रों में चले गए हैं। कांग्रेस के होशंगाबाद जिला उपाध्यक्ष पीयूष शर्मा को भाजपा प्रत्याशी राव उदयप्रताप सिंह ने अपनी एक सभा में माला पहनाकर भाजपा में शामिल कर लिया, लेकिन भाजपा जिला इकाई होशंगाबाद के अध्यक्ष और कार्यकारिणी को यह बात रास नहीं आई। उनके इस्तीफे की पेशकश और बढ़ते विरोध को देखकर अंतत: भाजपा के प्रदेश नेतृत्व ने कांग्रेस के जिला उपाध्यक्ष का भाजपा में प्रवेश रोक दिया।ं के। जबलपुर
इस सीट पर भी दलों को भितरघात का डर सता रहा है। पाटन से विधानसभा चुनाव हारने के बाद पूर्व मंत्री अजय विश्नोई यहां से टिकट मांग रहे थे। टिकट नहीं मिलने से नाराज विश्नोई को चुनाव प्रबंधन का काम सौंपकर सतना भेज दिया गया है। माना जा रहा है कि भाजपा ने भितरघात के डर से ऐसा किया है। वहीं कांग्रेस ने भी सभी दावेदारों को दरकिनार कर विवेक तन्खा को टिकट दी है। इससे पार्टी के कई पुराने दिग्गज नेता नाराज बताए जा रहे हैं। हालांकि तन्खा का विरोध खुलकर किसी ने नहीं किया है, लेकिन कई नेता प्रचार में दिखाई नहीं दे रहे हैं। छिंदवाड़ा
महाकोशल क्षेत्र की इस सीट पर दोनों हीं दलों में अब तक अंतर्कलह जैसी कोई बात सामने नहीं आई है। बताया जाता है कि दोनों ही दलों के नेता पहले से ही मानकर चल रहे थे कि टिकट किसको मिलेगी। भाजपा में जरूर एक-दो नेता चुनाव प्रचार में सक्रिय नहीं दिख रहे हैं, लेकिन पार्टी इससे इनकार करती है। मंडला
पहले विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव में टिकट मांग रहे पूर्व भाजपा विधायक शिवराज शाह चुनाव को लेकर उत्साहित नजर नहीं आ रहे। वे भाजपा प्रत्याशी फग्गन सिंह कुलस्ते के प्रचार अभियान में भी दिखाई नहीं दे रहे। ऐसी ही स्थिति कांग्रेस प्रत्याशी ओंकार मरकाम के साथ है। डिंडौरी जिले के पार्टी पदाधिकारी खुलकर उनका विरोध कर चुके हैं। उन्होंने प्रत्याशी पर कई आरोप लगाते हुए सोनिया गांधी तक को पत्र लिखा है। सीधी
यहां भाजपा और कांग्रेस दोनों ही भितरघात से जूझ रही हैं। सीधी और सिंगरौली जिले के भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रचार करने से कन्नी काट रहे हैं। टिकट नहीं मिलने से निवर्तमान सांसद गोविन्द मिश्रा नाराज चल रहे हैं। उनके साथ टिकट के अन्य दावेदार भी रीति पाठक का प्रचार नहीं कर रहे हैं। बताया जाता है कि कुछ पार्टी नेता तो अपने ही उम्मीदवार को हराने के लिए जाल बिछा रहे हैं। कांग्रेस प्रत्याशी इन्द्रजीत कुमार को भी पार्टी में विरोध का सामना करना पड़ रहा है। इन्द्रजीत को टिकट मिलने के बाद कांग्रेस के पूर्व मंत्री वंशमणि वर्मा के साथ कई नेता भाजपा में शामिल हो रहे हैं। अजय सिंह को यहां से टिकट नहीं मिलने के कारण उनके समर्थक भी नाराज हैं। उज्जैन,देवास में नमो और संघ के सहारे
भगवा ब्रिगेड के पुरातन गढ़ मालवा की लोकसभा सीटों उज्जैन और देवास को बरसों बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने खोया था। लेकिन इस बार नरेंद्र मोदी और शिवराज सिंह चौहान के सहारे भाजपा इस बार यहां चुनावी नैया पार करने की तैयारी कर रही है। उज्जैन संसदीय क्षेत्र में भाजपा ने इस बार विक्रम विश्वविद्यालय की दर्शनशास्त्र अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष डॉ.चिंतामणि मालवीय को नए चेहरे के रूप में मैदान में उतार दिया। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक यह प्रयोग जनता छोड़ पार्टी के ही कुछ नेताओं और कई कार्यकर्ताओं के गले अब तक नहीं उतर पाया है। देवास संसदीय सीट से भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव थावरचंद गेहलोत यहां से चुनाव लड़ते और जीतते आए। पिछले चुनाव में कांग्रेस के सज्जनसिंह वर्मा से हारे और इस बार उन्हें पार्टी ने टिकट नहीं दिया। उनकी जगह आगर के विधायक और पूर्व मंत्री मनोहर ऊंटवाल को मैदान में उतारा गया है। रतलाम जिले की आलोट विधानसभा क्षेत्र से विधायक रह चुके ऊंटवाल की उम्मीदवारी को पार्टी का ही एक धड़ा अब तक नहीं पचा पाया है। भाजपा के कईउम्मीदवार 55 पार भी
इस लोकसभा चुनाव में भाजपा ने प्रदेश में सबसे ज्यादा बुजुर्गों को मैदान में उतारा है। दिलीप सिंह भूरिया, सुमित्रा महाजन, लक्ष्मीनारायण यादव, दलपत सिंह परस्ते, नागेंद्र सिंह, भागीरथ प्रसाद ये ऐस चेहरे हैं, जो 70 की उम्र पार कर चुके हैं। इसके बाद 55 पार करने वाले एक दर्जन उम्मीदवार हैं। झाबुआ में 80 साल के दिलीप सिंह भूरिया का विकल्प दिया गया है। इंदौर में 70 साल की सुमित्रा महाजन हैं। सागर में 70 साल के ही लक्ष्मीनारायण यादव हैं। भिंड में इतनी ही उम्र के भागीरथ प्रसाद हैं। शहडोल में दलपत सिंह परस्ते, खजुराहो में नागेंद्र सिंह हैं। इसके बाद 55 और 60 की उम्र के नेताओं की बयार है। विदिशा से सुषमा स्वराज, ग्वालियर से भाजपा प्रदेशाध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर, मुरैना में अनूप मिश्रा, खंडवा में नंदकुमार सिंह चौहान, छिंदवाड़ा में चौधरी चंद्रभान सिंह, शिवपुरी में जयभान सिंह पवैया, होशंगाबाद में राव उदयप्रताप सिंह, जबलपुर में राकेश सिंह, दमोह में प्रहलाद पटेल, राजगढ़ में रोडमल नागर, रीवा में जनार्दन मिश्रा, मंदसौर में सुधीर गुप्ता हैं। भाजपा में 50 साल से कम उम्र के तीन ही प्रत्याशी हैं। भोपाल में आलोक संजर, सीधी में रीति पाठक और खरगौन में सुभाष पटेल।

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