vinod upadhyay

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मंगलवार, 1 अप्रैल 2014

कैसे रूके भ्रष्टाचार...15 साल से भ्रष्टों पर बड़ी कार्रवाई नहीं

दागी मंत्रियों और 160 अफसरों की ढाल बनी हैं सरकार!
भोपाल। मप्र में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जितना सुशासन की बात करते हैं,प्रदेश में भ्रष्टाचार उतनी ही तेजी से पसर रहा है। पिछले एक माह के अंदर लोकायुक्त पुलिस ने उज्जैन तहसील के पटवारी संजीव पांचाल,इंदौर में डिप्टी लेबर कमिश्नर लक्ष्मीप्रसाद पाठक,इंदौर-भोपाल में व्यापमं के पूर्व अधिकारी पंकज त्रिपाठी और भोपाल में राजस्व विभाग के संयुक्त आयुक्त डॉ. रविकांत द्विवेदी के ठिकानों पर छापामार कार्रवाही कर अरबों की काली कमाई उजागर की है उससे तो एक बात साफ है कि प्रदेश में भ्रष्टाचार खत्म करना सरकार के बूते की बात नहीं है। अगर ऐसा होता तो दागी मंत्रियों और करीब 160 अफसरों पर कार्रवाई जरूर होती। कांग्रेस की तरफ से आरोप तो यह लग रहे हैं कि भ्रष्टों की ढाल स्वयं सरकार बनी हुई है। पिछले 15 साल से सरकार दोषी अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकी है।
15 साल से अभियोजन की स्वीकृति नहीं
प्रदेश के भ्रष्ट अफसरों को सरकार द्वारा किस हद तक संरक्षण दिया जा रहा है इसका प्रमाण इससे भी मिलता है कि उनसे संबंधित फाइलों को ठंडे बस्ते में डाल कर भ्रष्टाचार मामलों में अभियोजन की स्वीकृति नहीं दी जा रही है। जिन अधिकारियों पर अभियोजन की कार्रवाई 15 साल पहले हो जानी थी, वह मात्र अभियोजन की स्वीकृति नहीं मिलने से बच रहे हैं। ऐसे 38 अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति मिलनी है। इसमे तीन आईएएस अधिकारी भी शामिल हैं। बार-बार सूचना देने के बाद भी इन प्रकरणों को अभियोजन की स्वीकृति नहीं दी जा रही है।
इन पर कार्रवाई का इंतजार
गोविंद सिंह सीएमओ जनपद पंचायत छतरपुर, आरपी गहलोत एसडीओ राजस्व उज्जैन, राजेश कोठारी स्वास्थ्य अधिकारी, चंद्रकांत कुमावत सब इंजीनियर नगर निगम इंदौर, जेपी शुक्ला प्रबंधक खादी ग्रामोद्योग, दिनेशकुमार जेई एमपीईबी बुरहानपुर, हबीब मेमन प्रबंधक सहकारी समिति खंडवा, रंजीत कुमार एसई एमपीईबी बुरहानपुर समेत 38 प्रकरण में अभियोजन स्वीकृति के मामले शासन स्तर पर लंबित है। भ्रष्टाचार करने वाले कुछ अधिकारी ऐसे हैं, जिनके खिलाफ अभियोजन की कार्रवाई 1998 में हो जानी थी। लेकिन शासन की मनमानी और इनको बचाने के फेर में प्रकरण दर्ज होने के बाद अभी तक अभियोजन की स्वीकृति नहीं मिल सकी है। कई मामले ऐसे है जो पिछले 15 साल से अभियोजन का इंतजार कर रहे हैं। इसमें इंदौर के नगर निगम में पदस्थ तत्कालीन एई दिलीप सिंह चौहान और एसई राकेश मिश्रा शामिल हैं। इन अधिकारियों के खिलाफ 1998 में प्रकरण दर्ज किया गया था। 2001 में भोपाल टीएंडसीपी में पदस्थ लेखाधिकारी के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया गया तो फॉरेस्ट अधिकारी टीएन भारद्वाज के खिलाफ 2007 में दर्ज प्रकरण को अभियोजन की स्वीकृति मिलनी है।
71 दागियों की फाइलें दबा दी गईं
लोकायुक्त संगठन द्वारा चाही गई 71 दागी अफसरों की अभियोजन स्वीकृति को लेकर संबंधित विभाग के आला अफसर टाल मटोल कर रहे हैं। लोकायुक्त पीपी नावलेकर की आपत्ति के बाद सामान्य प्रशासन विभाग ने सभी विभागों को पत्र लिखकर कहा है कि जिन अफसरों की अभियोजन स्वीकृति दी जाना है। इस संबंध में जीएडी ने 27 जनवरी को पत्र लिखा था, लेकिन संबंधित विभागों ने अभी तक जानकारी मुहैया नहीं कराई है। लोकायुक्त पीपी नावलेकर ने 17 जनवरी को पत्र लिखकर मुख्यमंत्री से कहा था कि भ्रष्ट लोक सेवकों के विरूद्घ सरकार को धारा 19 की अभिस्वीकृति दिया जाना आवश्यक है। उन्होंने यह भी कहा था कि आपके निर्देशों का पालन नहीं हो रहा है। 141 दागी अफसरों के मामले सरकार और अधीनस्थ संस्थाओं को भेजे जा चुके हैं। इनमें 71 मामले में तीन माह बाद भी दागी अफसरों की अभियोजन स्वीकृति नहीं मिली। जबकि अभियोजन की स्वीकृति तीन माह में अनिवार्य रूप से देना है। समय पर स्वीकृति न मिलने से अभियोजन योग्य महत्वपूर्ण साक्ष्यों के अभियोजन के पहले ही गायब होने की संभावना होती है।
इनकी दी जाना है अभियोजन स्वीकृति
पंचायत एवं ग्रामीण विकास:अनिल यादव सचिव जपं जबलपुर, आरसी जैन सीईओ जपं शाहपुर डिंडौरी, रामसुशील गौतम सब इंजीनियर, आरएल शर्मा सब इंजीनियर जपं मऊगंज रीवा, शशिधर शर्मा सचिव ग्रापं मऊगंज रीवा, शरीफ मंसूरी सचिव ग्रापं शाजापुर,नर्मदा प्रसाद कटारे सचिव जनपद पंचायत सागर, हरिओम पाटीदार सचिव जपं खरगोन, राधेश्याम शर्मा ग्रापं आगर जिला शाजापुर, अभिषेक चतुर्वेदी सब इंजीनियर जपं बड़ामलहरा छतरपुर, मगलेश दीक्षित सग्रे-2 जपं हरदा, कैलाश कुमावत सहायक विकास अधिकारी जपं जावरा रतलाम, कृपाशंकर पाठक सीईओ जपं नरसिंहपुर, विक्रम सिंह प्रजापति बीआरसी जनपद एजुकेशन सेंटर भोपाल, अहिल्या बाई सरपंच एवं विक्रम राठौर सचिव ग्रापं कडारिया धार एवं गुलाब सिंह सरपंच जपं सागर।
खनिज विभाग: सुखदेव निर्मल खनिज निरीक्षक रतलाम, कासमास केरकिट्टा खनिज निरीक्षक मुरैना एवं प्रेमशंकर मिश्रा जूनियर मैनेजर राज्य खनिज निगम हरदा।
वाणिज्यकर विभाग:भीमसिंह ठाकुर असिस्टेंट कमर्शियल ऑफिसर इंदौर, धनराज गौड़ सेल्स टैक्स अधिकारी ग्वालियर, माखनलाल पटेल पंजीयक अधिकारी इंदौर एवं प्रदीप कुमार सिंह उपायुक्त सेल्स टैक्स भोपाल।
सहकारिता विभाग: बीएस बास्केल संयुक्त पंजीयक सहकारिता भोपाल, हबीब मेमन प्रबंधक को-ऑपरेटिव खंडवा, राजीव लोचन शर्मा एमडी राज्य सहकारिता निगम भोपाल एवं हरपाल सिंह रजावत को-ऑपरेटिव बैंक भोपाल।
उर्जा विभाग: दिनेश कुमार जेई विद्युत कंपनी रीवा, आलोक वैश्य ईई पावर डेवलपमेंट लि. उज्जैन, पीके घोघ इंजीनियर विद्युत कंपनी बालाघाट एवं अरविंद कुमार सिंह एई विद्युत कंपनी रतलाम।
नगरीय प्रशासन: दिलीप सिंह चौहान सब इंजीनियर ननि इंदौर, राकेश मिश्रा सब इंजीनियर ननि इंदौर व चन्द्रकांत कुमावत सब इंजीनियर ननि इंदौर,विनोद कुमार शाक्य असिस्टेंट मैनेजर नगर तथा ग्राम निवेश छिंदवाड़ा, राजेश कोठारी स्वास्थ्य अधिकारी ननि इंदौर।
अरविंद-टीनू जोशी का रसूख अब तक कायम
आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में आईएएस अधिकारी दम्पती अरविंद जोशी और टीनू जोशी के खिलाफ केंद्रीय कार्मिक प्रशिक्षण मंत्रालय से केस चलाने की अनुमति मिल गई है। लोकायुक्त फिर आयकर ने फरवरी 2010 में जोशी दम्पति के यहां छापा मारा था। उनके यहां से करोड़ों की नगदी बरामद हुई थी। इसके बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया था। जोशी दम्पती ने अपने आय के ज्ञात स्त्रोतों से 3151 प्रतिशत अधिक सम्पत्ति जुटाई थी। इस मामले में लोकायुक्त स्थापना की विशेष पुलिस ने राज्य सरकार से इस आईएएस दम्पति के खिलाफ अभियोजन की अनुमति मांगी थी, जिसके आधार पर राज्य सरकार ने जुलाई 2013 में केन्द्र सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय से अभियोजन एवं दम्पति को हटाने के बारे में लिखा था। जोशी दम्पती के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 (1) एवं 13 (2) के प्रावधानों के तहत आरोप पत्र पेश किया जाएगा। वहीं अरविंद के पिता एचएम जोशी, मां नम्रता जोशी, सहयोगी एसपी कोहली, उसकी पत्नी एवं पुत्र, पवन अग्रवाल, श्रीदेव शर्मा, दिल्ली स्थित स्टॉम्प विक्रेता राजरानी, बीमा एजेंट सीमा जायसवाल सहित 15 आरोपियों के खिलाफ इस मामले में धारा 109 एवं धारा 120 के तहत आरोपपत्र प्रस्तुत होगा। उधर, इससे पहले विशेष न्यायाधीश अलका दुबे ने जोशी दम्पती की सम्पति जब्त करने संबंधी लोकायुक्त पुलिस के आवेदन को खारिज करने को लेकर अरविंद एवं टीनू जोशी के आवेदन को नामंजूर कर दिया था।
बर्खास्तगी से बचने की जुगत
जोशी दम्पती इसी साल जून में रिटायर्ड हो रहे हैं। इसलिए वे पूरी जुगत भिड़ाने में लगे हुए हैं कि किसी तरह यह मामला ऐसे ही लटका रहे। वे रिटायर्ड हो जाएं और बर्खास्तगी के कलंक से बच सके। इस दम्पती को आयकर विभाग के अलावा प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच से भी गुजरना पड़ा। पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच ने भी इस मामले की जांच-पड़ताल की। इन सभी ने दोनों को दोषी पाया। वेक्ट्रा रक्षा खरीद सौदे की जांच के दौरान सीबीआई को मालूम हुआ कि वेक्ट्रा के चेयरमैन रवींद्र ऋषि से इस दंपती के करीबी रिश्ते थे। इस सौदे में दलाली का एक हिस्सा अरविंद जोशी के भी पास जाने का अंदेशा जाहिर किया गया है। जांच में ऐसे संकेत मिले कि 1999-2004 के बीच रक्षा मंत्रालय में संयुक्त सचिव रहते हुए अरविंद जोशी ने ऋषि की पहुंच मंत्रालय तक कराई। यह वही वह समय था जब वेक्ट्रा समूह को हल्के हेलिकॉप्टर सप्लाई करने का सौदा मिला था।
अरबों की काली कमाई...
जोशी दम्पती काली कमाई के मामले में बदनाम होने के बावजूद खुद को बचाने कोई कसर नहीं छोड़ रहे। केंद्रीय कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने तो 30 अगस्त को 1979 बैच के इन अफसरों की बर्खास्तगी के लिए स्वीकृति दे दी थी। हालांकि दोनों की बर्खास्तगी पर आखिरी फैसला अब संघ लोक सेवा आयोग को लेना है। फरवरी, 2010 में डाले गए आयकर छापे में इस दंपती की अवैध तरीके से अर्जित 360 करोड़ रुपए की संपत्ति का खुलासा हुआ था। इसके बाद जनवरी 2011 में ईडी ने फेमा और मनी लांडरिंग एक के तहत मामला दर्ज किया गया था।
काली कमाई का खेल...
जोशी दम्पती ने रियल एस्टेट और शेयर बाजार में इतना अधिक पैसा लगा रखा था कि वे इस मामले में बड़े-बड़े धुरंधरों को भी धूल चटा सकते हैं। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव अवनी वैश और लोकायुक्त पीपी नावलेकर को सौंपी 7,000 पन्नों की रिपोर्ट में आयकर विभाग ने इस बात का पूरा ब्यौरा दिया है कि जोशी दंपती का पैसा कहां-कहां लगा है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, जोशी दंपती ने कान्हा और बांधवगढ़ नेशनल पार्क समेत रायसेन, बालाघाट, सीहोर और भोपाल में खेती और बिना खेती वाली जमीन बड़े पैमाने पर खरीद रखी है। उन्होंने 25 फ्लैट भी खरीद रखे थे, जिनमें से 18 तो गुवाहाटी की कामरूप हाउसिंग सोसाइटी में ही थे। इनके छह फ्लैट भोपाल और एक फ्लैट दिल्ली में था। रिपोर्ट की मानें तो 2007 से 2010 के बीच अरविंद ने शेयर बाजार में सटोरिया गतिविधियों और वायदा कारोबार वगैरह में 270 करोड़ रु. लगा रखे थे।
सब जगह गड़बड़झाला...
इतने बड़े करप्शन मामले के बावजूद लोकायुक्त और प्रवर्तन निदेशालय जोशी दम्पती को कोर्ट में नहीं ले जा पाया था। अब कहीं जाकर केस चलाने की अनुमति मिली है। लोकायुक्त पुलिस ने जोशी दंपती के सरकारी निवास पर फरवरी, 2010 को मारा था लेकिन उसे अपनी जांच पूरी करने में कई महीने लग गए। 8 अक्तूबर, 2012 को लोकायुक्त पुलिस ने इस प्रभावशाली दंपती के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (पीसीए) के तहत मामला चलाने के लिए डीओपीटी से अनुमति मांगी थी।
संपत्ति राजसात करने वाली संपत्ति का पुनर्गठन नहीं
भ्रष्टाचार के आरोपों में पकड़े जाने वाले अफसरों की संपत्ति राजसात करने के लिए राज्य सरकार ने रिटायर आईएएस एसडी अग्रवाल की अध्यक्षता में एक साल के लिए मई 2012 में एक कमेटी गठित की थी, लेकिन अग्रवाल का कार्यकाल मई 2013 में पूरा होने के बाद से सरकार ने न तो कोई नई कमेटी गठित की है और न ही उसका कार्यकाल बढ़ाया। जिसके कारण भ्रष्टाचार से जुड़ेे अफसरों के मामलों में एक भी प्रकरण संपत्ति राजसात करने का न्यायालय में नहीं भेजा गया है। अपने कार्यकाल के दौरान कमेटी ने लगभग एक दजर्न से ज्यादा भ्रष्ट अफसरों की संपत्ति राजसात करने न्यायालय को प्रकरण पेश कर उनकी संपत्तियां राजसात की थी, लेकिन मई 2013 के बाद से अग्रवाल कमेटी अस्तित्वहीन हो गई है। क्योंकि इस कमेटी का गठन मई 2013 तक किया गया था, मगर इसके बाद आठ महीने पश्चात भी सरकार को नई कमेटी गठित करने या उक्त कमेटी का पुनर्गठन करने की नहीं सुझी। इसके चलते पिछले आठ महीने से एक भी भ्रष्टाचार से जुड़ेे अधिकारी की संपत्ति राजसात करने का प्रकरण न्यायालय में पेश नहीं किया जा सका है, जबकि लोकायुक्त तथा ईओडब्ल्यू ने इस दौरान कई अफसरों के यहां छापे मार लाखों की नकद संपत्ति एवं करोड़ों की अचल संपत्ति का पता लगाया हैं। सरकार की इस तरह की कार्यप्रणाली के कारण प्रदेश में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगना दूर की कौड़ी नजर आ रहा है।

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