vinod upadhyay

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शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

संस्कृत को जर्मन की कड़ी चुनौती

जबलपुर। स्कूलों में जल्द ही तीसरी वैकल्पिक भाषा के रूप में जर्मन भाषा भी पढ़ाई जाएगी। केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड देशभर में इसकी शुरूआत केन्द्रीय विद्यालयों से करने जा रहा है। प्रयोग सफल रहने पर राज्यों के माध्यमिक शिक्षा बोर्ड भी इसे लागू कर सकेंगे।

इस समय तीसरी भाषा के रूप में संस्कृत पढ़ाई जा रही है। जर्मन भाषा को तीसरी भाषा के रूप में पाठ्यक्रम में शामिल करने से पहले केन्द्रीय विद्यालयों में रायशुमारी कराई जा रही है। रायशुमारी से मिले रूझान के मुताबिक संभावना जताई गई है कि वर्ष 2011-12 में इन विद्यालयों में जर्मन भाषा की पढ़ाई की शुरूआत हो जाएगी। यह विषय किसी छात्र पर थोपा नहीं जाएगा बल्कि छात्र की इच्छा पर ही उसे मिलेगा।

कक्षा छह से शुरूआत
सूत्रों के अनुसार जर्मन भाषा को संस्कृत के विकल्प के रूप में पढ़ाने की शुरूआत कक्षा छह से होगी। इसका सिलेबस सीबीएसई एवं एनसीईआरटी बोर्ड तैयार करेगा। जर्मन भाषा की फैकल्टी बनाने के साथ जरूरत के मुताबिक जर्मन भाषा के जानकार शिक्षकों को भी स्कूलों में नियुक्त किया जाएगा।

मप्र और छग की सहमति
केन्द्रीय विद्यालय संगठन के निर्देश के बाद मप्र और छत्तीसगढ़ रीजन से कक्षा छह से आठ के 3500 छात्रों ने जर्मन भाषा सीखने के लिए सहमति दी है। यहां के केन्द्रीय विद्यालयों संगठन के दिल्ली मुख्यालय को इसकी जानकारी भिजवा दी है। हालांकि यह अनुमान लगाया गया है कि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में जबलपुर, बालाघाट, छिंदवाड़ा, भिलाई, बिलासपुर, रायपुर, कोरबा, दुर्ग, रीवा के 64 केन्द्रीय विद्यालयों में कक्षा 6 से 8 में पढ़ने वाले 15 हजार छात्रों में 9 हजार छात्र जर्मन सीखने में रूचि लेंगे।

बढ़ती उपयोगिता को देख निर्णय
सूत्रों के मुताबिक जर्मन भाषा की उपयोगिता और इसकी पढ़ाई के लिए मिलने वाली आर्थिक मदद को देखते हुए इसे स्कूलों में पढ़ाने की तैयारी की जा रही है। विश्व में जर्मन भाषा की ट्रेनिंग, प्रचार-प्रसार में सक्रिय गोथी इंस्टीट्यूट के माध्यम से इसकी पढ़ाई की व्यवस्था होगी। दिल्ली, चंडीगढ़, बैंगलोर, अहमदाबाद में इसकी शाखाएं हैं।

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