नाम हर किसी का व्यक्तिगत अधिकार है और वह जब चाहे इसे बदल सकता है। यहां सामने सवाल यह ह
ै कि शादी के बाद लड़की सरनेम बदले या नहीं। सवाल इस बात का भी है कि परेशानी सरनेम बदलने से होती है या उस पर इस मकसद से पड़ने वाले दबाव से। कई लड़कियां शादी के बाद स्वेच्छा से अपना नाम बदल लेती हैं। जैसे पुष्पा सिन्हा को मैंने पुष्पा सिन्हा झा बनते देखा है। डॉक्टर बनने के बाद नाम से पहले डॉक्टर श्रीमती स्नेहलता वर्मा होते भी देखा है।
कुछ लड़कियों को अपने अंदर नाम को लेकर कोई अभिमान नहीं है। कुछ इस तरह का भाव है कि क्या फर्क पड़ता है, पति का सरनेम लग जाए तो भी कोई बात नहीं। वे शादीशुदा जिंदगी की सफलता के लिए स्वेच्छा से इन बातों पर ध्यान नहीं देतीं। आचार्य रजनीश ने कहीं कहा था, प्रेम की सफलता के लिए जरूरी है मैं का खत्म होना। कई लड़कियां जाने-अनजाने इसी बात को ध्यान में रखकर नाम बदलने या न बदलने को जीवन का अहम सवाल नहीं मानती हैं।
जो लड़कियां सरनेम बदलने के विरोध में हैं, उनका विरोध निश्चित तौर पर दबाव को लेकर है। उनकी समस्या सिर्फ नाम बदलना नहीं, बात-बात में उन पर पड़ने वाला दबाव है। यह दबाव सिर्फ सरनेम बदलने तक सीमित नहीं होता। अक्सर यह भी देखा गया है कि नाम बदलने का दबाव दुलहन को दूल्हे से ज्यादा ससुराल की महिलाओं की ओर से पड़ता है। वैसे दबाव किसी पुरुष सदस्य का भी हो, तो इसका विरोध किया जाना चाहिए।
आखिर में मेरा एक सवाल यह भी है कि सरनेम क्यों हो। मेरे हिसाब से यह नाम की स्वतंत्रता को किसी छाया में बांध देता है। जात-पात, कुल-खानदान, आदि की छाया। इन सामाजिक अभिशाप से मुक्त होने के लिए सरनेम खत्म ही हो जाना चाहिए। इसकी शुरुआत भी हो गई है। बड़ी संख्या में अभिभावक बच्चों का नाम सिर्फ मानव, हितेन आदि रख रहे हैं। शादी के बाद लड़की को अपना सरनेम बदलना चाहिए या नहीं, इस सवाल का जवाब देने से पहले मैं पर्सनल अनुभव के आधार पर सबसे यही गुजारिश करूंगा कि कानूनी पेचीदगियों से बचने के लिए जीवन में कभी भी अपना नाम न बदलें। एक बार जो नाम तय हो गया, उसमें मात्रा का भी फर्क मुसीबत में डाल सकता है।
मान लीजिए, बच्चे के जन्म पर म्यूनिसिपल सर्टिफिकेट में आपने उसका जो नाम लिखवाया, वैक्सिनेशन कार्ड पर उसे बदलकर नया नाम लिखवा देते हैं। इसका नतीजा आपको स्कूल एडमिशन के वक्त भुगतना पड़ेगा, जब स्कूल वाले खूब दौड़ाएंगे। जन्म ही नहीं, नाम बदलने पर मौत के बाद भी परेशानी होती है। इन केस में वारिस को पैसा मिलना टेढ़ी खीर हो जाता है।
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